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केंद्र ने संसद में किस आधार पर कहा- ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं?

केंद्र ने संसद में किस आधार पर कहा- ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं?

मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोरोना की दूसरी लहर में एक समय भले ही देश भर में हाहाकार मच गया था, मौत की ख़बरें आ रही थीं, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई भी मौत नहीं हुई है। 

मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोरोना की दूसरी लहर में एक समय भले ही देश भर में हाहाकार मच गया था, मौत की ख़बरें आ रही थीं और सरकार के मंत्री ऑक्सीजन एक्सप्रेस, प्लांट और कंसंट्रेटर की तसवीरें और वीडियो पोस्ट कर रहे थे, लेकिन अब इसी सरकार के मंत्री ने मंगलवार को संसद को बताया है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई भी मौत नहीं हुई है। केंद्र ने कहा है कि राज्यों से ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।

देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में, कर्नाटक और गोवा के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मौत की ख़बरें आईं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों से भी ऐसी रिपोर्टें आईं। दिल्ली हाई कोर्ट केंद्र को बार-बार फटकार लगाता रहा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं करना अपराध है और यह किसी तरह नरसंहार से कम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को फटकार लगाई। यहाँ तक कि इसने कहा था कि ऑक्सीजन वितरण प्रणाली में पूरे बदलाव, इस पूरी व्यवस्था के ऑडिट किए जाने और ज़िम्मेदारी तय किए जाने की ज़रूरत है। 

लेकिन केंद्र सरकार ने संसद में जो बयान दिया है वह चौंकाने वाला है। इसने कहा है कि कोविड महामारी के दौरान ऑक्सिजन की कमी से किसी के मरने की कोई सूचना किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश से नहीं है। उसने यह जवाब राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया। जवाब भी लिखित में है। फ़िलहाल संसद का मानसून सत्र चल रहा है। सरकार की ओर से स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर भारती प्रवीण पवार ने लिखित जवाब में कहा कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और उनकी ओर से कोविड से हुई मौत की सूचना दी जाती है लेकिन इसमें भी ऑक्सिजन की कमी से किसी मौत की सूचना नहीं है।

केंद्र सरकार की मानें तो राज्यों ने कोरोना संक्रमण के दौरान ऑक्सीजन की कमी से मौत की ख़बर नहीं दी है। क्या सच में ऐसा है कि मौतें नहीं हुई हैं? क्या कोरोना की दूसरी लहर में हर रोज़ जब 4 लाख से ज़्यादा केस आ रहे थे और गंगा नदी में शव तैरते हुए दिख रहे थे तब भी क्या इसमें कोई संदेह रह जाता है? यदि ऐसा है तो राज्यों में मौत की जो ख़बरें आ रही थीं क्या वे ग़लत थीं?

दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के बीच 24 घंटे में 25 मरीज़ों की मौत हो गई थी। अस्पताल ने ही 23 अप्रैल को यह बयान जारी किया था।

बाद में 1 मई को दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से एक डॉक्टर समेत आठ लोगों की मौत की ख़बर आई थी। इससे पहले ख़बर आई थी कि दिल्ली स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 20 कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी। 

मई महीने के मध्य में ख़बर आई थी कि गोवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज में चार दिनों में 74 मरीजों की मौत ऑक्सीजन के स्तर में कमी के कारण हो चुकी थी। मई महीने की शुरुआत में ही कर्नाटक के चामराजनगर स्थित एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से दो घंटे में 24 लोगों की मौत हो गई थी। अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की थी।

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दिल्ली में अप्रैल महीने में जब ऑक्सीजन कम पड़ने की ख़बरें आ रही थीं तब दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि उसके लिए मानव जीवन की कोई कीमत नहीं है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था, 'भीख माँगो, किसी से उधार लो या चोरी करो, लेकिन ऑक्सीजन दो।' कोर्ट उस मामले में सुनवाई कर रहा था जिसमें मैक्स अस्पताल समूह ने दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा था कि उसके अस्पतालों में ऑक्सीजन का स्तर ख़तरनाक स्तर पर गिर चुका है, उसे तुरन्त ऑक्सीजन चाहिए। कोर्ट द्वारा सप्लाई बढ़ाने के आदेश देने के बाद भी जब दिल्ली को पूरी आपूर्ति नहीं की गई थी तो अदालत ने अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी भी दी थी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं होने पर कड़ा रुख अपनाते हुए इससे जुड़े सरकारी अधिकारियों को जो़रदार फटकार लगाई थी और कहा था कि इसकी आपूर्ति नहीं करना अपराध है और यह किसी तरह नरसंहार से कम नहीं है।

लखनऊ और मेरठ ज़िलों में ऑक्सीजन की कमी से कुछ लोगों की मौत होने से जुड़ी ख़बरों पर प्रतिक्रिया जताते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की और जाँच का आदेश दे दिया। उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी ऑक्सीजन की कमी से 7 कोरोना मरीजों की मौत की ख़बर आई थी। 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिया था। वह ऑक्सीजन आवंटन पर सरकार की योजना को लेकर सुनवाई कर रहा था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा था कि बेड की संख्या के आधार पर केंद्र के मौजूदा फ़ॉर्मूले को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है। पूरे देश में फ़िलहाल अस्पताल बेड, आईसीयू के इस्तेमाल के हिसाब से ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, 'जब आपने फ़ॉर्मूला तैयार किया था तो हर कोई आईसीयू में नहीं जाना चाहता था। कई लोगों को घर में ऑक्सीजन की आवश्यकता है। केंद्र के फ़ॉर्मूले में परिवहन, एम्बुलेंस और कोरोना-देखभाल सुविधाओं को ध्यान में नहीं रखा गया है।'

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बता दें कि ऑक्सीजन की मांग कोरोना की पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई थी। पहली लहर में जहाँ 3095 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग थी वह दूसरी लहर में बढ़कर क़रीब 9000 मिट्रिक टन तक पहुँच गई थी। ऑक्सीजन की कमी पर जब देश-दुनिया में हंगामा मचा था तब ऑक्सीजन एक्सप्रेस तक चलाई गई थी। इसके प्लांट लगाने की बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की गई थीं। दुनिया भर के कई देशों से सहायता में कंसेंट्रेटर और ऑक्सीजन टैंकर भेजे गए। अब यदि ऐसे हालात में केंद्र ने कहा है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई भी मौत नहीं हुई है तो सवाल उठना लाजिमी है। 

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