बलात्कारियों के साथ हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: राहुल गांधी
गुजरात सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बिलकीस बानो के साथ हुए बलात्कार के मामले में दोषी पाए गए 11 लोगों को रिहा किए जाने को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है। इसे लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया है। राहुल ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के साथ सिर्फ छल किया है। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि पीड़ित अगर मुसलिम है तो बीजेपी के लिए कोई भी अपराध गंभीर नहीं है।
लाल किले से महिला सम्मान की बात लेकिन असलियत में 'बलात्कारियों' का साथ।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 18, 2022
प्रधानमंत्री के वादे और इरादे में अंतर साफ है, PM ने महिलाओं के साथ सिर्फ छल किया है।
गुजरात सरकार ने बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था। दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं।
ये याचिकाएं सीपीएम की पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार रेवती और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा की ओर से दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि गुजरात सरकार द्वारा दायर किया गया जवाबी हलफनामा बहुत भारी भरकम है। अदालत इन याचिकाओं पर अब 29 नवंबर को सुनवाई करेगी।
जिन 11 लोगों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किया गया था, उनके नाम- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं।
बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी।
दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले का जमकर विरोध हुआ था। इस मामले में 6000 से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कहा था कि बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया जाए।
अच्छे व्यवहार को बताया वजह
गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि राज्य सरकार ने सभी दोषियों को उनके अच्छे व्यवहार की वजह से रिहा किया है। राज्य सरकार द्वारा रिहा किए जाने के बाद इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्वीकृति की भी जरूरत होती है। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में बताया है कि इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा इस साल 28 जून को केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा गया था जिसे 11 जुलाई यानी दो हफ्ते के भीतर मंत्रालय ने मंजूरी दे दी थी। जबकि सीबीआई और एक विशेष अदालत ने मंजूरी देने का विरोध किया था।
सीबीआई ने कहा था कि अभियुक्तों द्वारा किया गया अपराध जघन्य और गंभीर था, इसलिए अभियुक्तों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता और कोई नरमी नहीं दिखाई जा सकती। हलफनामे के मुताबिक, मार्च 2021 में, विशेष न्यायाधीश आनंद एल. यावलकर ने गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को समय से पहले दोषियों की रिहाई को लेकर अपने फैसले में लिखा था कि अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो दोषियों पर महाराष्ट्र का कानून लागू होगा, गुजरात का नहीं क्योंकि मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में चल रही थी।
1992 की नीति
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि इस मामले में अदालत के निर्देश के मुताबिक ही 1992 की नीति के तहत दोषियों की रिहाई की गई है। 1992 की नीति के अनुसार, उम्र कैद की सजा पाने वाले किसी भी शख्स को 14 साल की कैद के बाद रिहा किया जा सकता है, भले ही वह हत्या और सामूहिक बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों का ही दोषी क्यों ना हो। जिस वक्त इस मामले में दोषियों को सजा दी गई, वह साल (2008) का था और उस समय 1992 की नीति लागू थी। लेकिन 2014 के बाद जो नीति बनी, उसमें ऐसे कैदियों को सज़ा में छूट देने का प्रावधान हटा दिया गया।
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि कोई भी तीसरा पक्ष जनहित याचिका की आड़ लेते हुए आपराधिक मामलों में दखलंदाजी नहीं कर सकता। राज्य सरकार ने कहा कि इस संबंध में दायर तमाम याचिकाएं पीआईएल के अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग हैं।
जज ने उठाए थे सवाल
बिलकीस बानो के दुष्कर्मियों को सजा देने वाले जज ने भी दोषियों को रिहा करने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाए थे। सेवानिवृत्त हो चुके जस्टिस यूडी साल्वी ने कहा था, “सरकार को दोषियों को दी गई सजा, उनके द्वारा किए गए अपराधों और पीड़िता के बारे में भी विचार करना चाहिए था। मुझे नहीं लगता कि इनमें से कुछ भी किया गया है। मैंने सुना है कि छूट देते समय 1992 की नीति के दिशा-निर्देश का पालन किया गया है, न कि 2014 में बनाई गई नई नीति का। नई नीति में ऐसे अपराधों में छूट के प्रावधान नहीं हैं।”
गांव छोड़कर जा रहे परिवार
अगस्त महीने में खबर आई थी कि बिलकीस बानो के गांव में दहशत का माहौल है और कई मुसलिम परिवार गांव छोड़कर चले गए हैं। गांव में पुलिस तैनात की गई है। दाहोद जिला कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन में मुसलिम परिवारों ने कहा था कि रंधिकपुर के कई निवासी गांव से बाहर जा रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा का डर है, खासकर महिलाओं की। ज्ञापन में कहा गया था कि जब तक 11 दोषियों की गिरफ्तारी फिर से नहीं हो जाती, वे वापस नहीं लौटेंगे।
‘शांति से जीवन जीने का मेरा हक वापस दें’
गुजरात सरकार के फैसले के बाद बिलकीस बानो ने कहा था कि ऐसे हालात में किसी महिला को कैसे इंसाफ मिलेगा। मैंने सबसे बड़ी अदालत पर भरोसा किया। मैंने व्यवस्था पर भरोसा किया और मैं अपने साथ हुए हादसे के बाद धीरे-धीरे जीना सीख रही थी। उन्होंने कहा है कि उनका दुख और उनका डगमगाते भरोसे का मामला सिर्फ उनके लिए नहीं है बल्कि हर उस महिला के लिए है जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है।
फैसले पर सवाल
बिलकीस बानो को लेकर गुजरात सरकार के फैसले पर सोशल मीडिया में भी काफी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने गुजरात सरकार के इस फैसले की आलोचना की थी। सोशल मीडिया में सवाल उठाया गया है कि सामूहिक बलात्कार में दोषी करार दिए गए मुजरिमों को आखिर क्यों और किस आधार पर छोड़ दिया गया।