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कोरोना रोकने के लिए क्यों ज़रूरत पड़ी 125 साल पुराने क़ानून की?

कोरोना रोकने के लिए क्यों ज़रूरत पड़ी 125 साल पुराने क़ानून की?

कोरोना संक्रमण से बचने के लिए केंद्र सरकार ने महामारी क़ानून, 1897, लागू कर दिया है। 

कोरोना संक्रमण से बचने के लिए केंद्र सरकार ने महामारी क़ानून, 1897, को लागू करने का फ़ैसला किया है। कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। इस बैठक में सेना और इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस के आला अफ़सर मौजूद थे। 

एक सरकारी बयान में कहा गया है, 'सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को सलाह दी जाती है कि महामारी अधिनियम, 1897, की धारा 2 को लागू किया जाता है।' इसका मक़सद कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकना है। 

क्या है धारा 2 में

'यदि केंद्र सरकार इस बात से संतुष्ट हो जाए कि पूरे देश में या इसके किसी हिस्से में महामारी फैलने की आशंका है और उसे फैलने से रोकने के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं तो उसे यह अधिकार होगा कि वह किसी भी बंदरगाह पर आने वाले या किसी भी बंदरगाह से बाहर जाने वाले किसी भी जहाज़ को रोक कर उसकी जाँच कर सकती है।' 

यह नियम अंग्रेज़ों ने 19वीं सदी में प्लेग फैलने से रोकने के लिए लगाया था। 

धारा 3

इस क़ानून की धारा 3 में कहा गया है कि यदि कोई आदमी इसका पालन नहीं करता है तो उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है और उससे ज़ुर्माना वसूला जा सकता है। 

धारा 4

धारा 4 में कहा गया है कि इस नियम को लागू कराने के लिए सही मंशा से कोई भी काम करने वाले किसी आदमी के ख़िलाफ़ किसी अदालत में कोई मामला नहीं चलाया जा सकता है। 

इस क़ानून में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए किसी भी आदमी को कहीं भी जाने से रोका जा सकता है। किसी की आवाजाही पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि स्वास्थ्य राज्य के अधीन है, लेकिन इस क़ानून के लागू होने पर केंद्र हस्तक्षेप कर सकता है और इस क़ानून को पूरे देश में लागू कर सकता है। 

मंत्रियों के एक समूह को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वह इस मामले को देखे। इस समूह में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन, नागरिक विमानन मंत्री हरदीप पुरी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, जहाजरानी राज्य मंत्री मनसुख मांडवीय और स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे हैं। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस क़ानून का असली मक़सद राज्य के अधीन एक विषय को केंद्र के अधीन करना है। दूसरी बात यह है कि इसे न मानने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी क़ानूनी कार्रवाई की जा सकती है। 

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