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केंद्र 2025 से जनगणना शुरू करेगा, जाति जनगणना पर सरकार की चुप्पी क्यों?

केंद्र 2025 से जनगणना शुरू करेगा, जाति जनगणना पर सरकार की चुप्पी क्यों?

सरकार ने जनगणना आयुक्त का कार्यकाल बढ़ा दिया है। इससे संकेत मिल रहा है कि सरकार अगले साल जनगणना करायेगी, जो 2021 से लंबित है। लेकिन सरकार ने जाति जनगणना पर चुप्पी साध रखी है। आरएसएस और भाजपा जाति जनगणना को जातियों के रूप में बांटने की साजिश देखते हैं, इसलिए वे अप्रत्यक्ष रूप से इसका विरोध कर रहे हैं। जबकि विपक्ष दल इसकी खुलकर मांग कर रहे हैं। जानिए ताजा घटनाक्रमः

इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से बताया कि केंद्र सरकार द्वारा 2025 में जनगणना शुरू करने और 2026 तक इसे पूरा करने की संभावना है। देश की जनसंख्या गिनने की कवायद चार साल की देरी से होगी। कांग्रेस ने जाति जनगणना पर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया। कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि एक तरफ जनगणना आयुक्त का कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है, दूसरी तरफ सरकार ने जाति जनगणना पर चुप्पी साध रखी है।

रिपोर्ट में कहा गया कि जनगणना पूरी होने के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार लोकसभा सीटों के परिसीमन की कवायद शुरू करेगी। समझा जाता है कि परिसीमन की कवायद शायद 2028 तक पूरी हो जायेगी।

जनगणना कराने की व्यापक रूपरेखा अभी सामने नहीं आई है। लेकिन कांग्रेस ने सोमवार को इसे लेकर सवाल उठाए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोमवार को एक्स पर लिखा-  रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यकाल के एक्सटेंशन को अभी-अभी अधिसूचित किया गया है। इसका मतलब है कि 2021 में होने वाली जनगणना, जो लंबे समय से विलंबित है, अब आख़िरकार जल्द ही करवाई जाएगी। लेकिन दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है। 

सर्वदलीय बैठक की मांग

जयराम रमेश ने दोनों मुद्दों को रखते हुए कहा कि 1951 से हर जनगणना में होती आ रही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना के अलावा क्या इस नई जनगणना में देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी? भारत के संविधान के अनुसार ऐसी जाति जनगणना केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा- क्या इस जनगणना का इस्तेमाल लोकसभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या निर्धारित करने के लिए किया जाएगा जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रावधान है (जो कहता है कि ऐसे किसी पुनर्गठन का वर्ष 2026 के बाद की गई पहली जनगणना और उसके रिजल्ट का प्रकाशन आधार होगा)? क्या इससे उन राज्यों को नुक़सान होगा जो परिवार नियोजन में अग्रणी रहे हैं? ऐसे में सबसे सही यही होगा कि इन दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्टता के लिए जल्द ही एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए।

अगले साल की जनगणना में सामान्य और एससी-एसटी श्रेणियों के भीतर उप-जातियों का सर्वेक्षण शामिल हो सकता है। इसमें सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की संख्या भी दर्ज की जाएगी। ऐसा संकेत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बहुत पहले दिया था। लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह का कोई आदेश या अधिसूचना जारी नहीं की गई है।

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कहा कि सरकार का जाति आधारित जनगणना कराने से इनकार करना ओबीसी समुदायों के साथ विश्वासघात है। उन्होंने एक्स पर लिखा-  "मोदी का जाति जनगणना कराने से इंकार करना ओबीसी समुदायों के साथ स्पष्ट विश्वासघात है। न्याय की मांग करने वाली आवाजों को नजरअंदाज करते हुए, वह हमारे लोगों को उनके उचित प्रतिनिधित्व से वंचित कर रहे हैं - यह सब राजनीतिक अहंकार के कारण। क्या आरएसएस, जेडीयू और टीडीपी लोगों के साथ खड़े होंगे या चुप रहेंगे?" 

राहुल गांधी लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। इसी तरह सपा और आरजेडी भी इसकी मांग कर रहे हैं। पिछले महीने, वाशिंगटन डीसी में जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत करते हुए, राहुल गांधी से पूछा गया था कि आरक्षण कब खत्म होगा तो राहुल ने कहा था कि जब तक भारत में अंतिम दलित व्यक्ति को समाज में उचित स्थान नहीं मिल जाता। उसके बाद ही इस पर सोचा जा सकता है। लेकिन दलितों तक सामाजिक न्याय अभी पूरी तरह पहुंचा भी नहीं है।

राहुल ने जाति जनगणना कराने की जरूरत भी दोहराई और कहा कि देश की 90 प्रतिशत आबादी - ओबीसी, दलित और आदिवासियों - को देश में उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि जाति जनगणना निचली जातियों, पिछड़ी जातियों और दलितों की भागीदारी का आकलन करने के लिए एक सरल अभ्यास है।

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