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जनगण मन और वंदे मातरम का दर्जा बराबरः केंद्र

जनगण मन और वंदे मातरम का दर्जा बराबरः केंद्र

केंद्र सरकार ने शनिवार को हाईकोर्ट में कहा कि जनगण मन और वंदे मातरम का दर्जा बराबर का है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट बहुत पहले ही कह चुका है कि संविधान ने सिर्फ जनगण मन को राष्ट्र गान के रूप में मान्यता दी है। 

केंद्र की बीजेपी सरकार की नजर में राष्ट्र गान जनगण मन...और वंदे मातरम् का दर्जा एक जैसा है। केंद्र सरकार ने शनिवार को दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि राष्ट्रीय गीत भारत के लोगों की भावनाओं और जनता में एक विशेष स्थान रखता है। राष्ट्रगान 'जन गण मन' और 'वंदे मातरम' दोनों का समान स्तर है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2017 के आदेश में इस मुद्दे पर चीजों को स्पष्ट कर दिया है। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने यह बात शनिवार को हाईकोर्ट में अलग नजरिया पेश किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-

संविधान का अनुच्छेद 51 ए (ए) 'राष्ट्रीय गीत' का उल्लेख नहीं करता है क्योंकि यह केवल राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को संदर्भित करता है। राष्ट्रगीत को लेकर किसी भी वाद-विवाद में न पड़ें।


- सुप्रीम कोर्ट, 17 फरवरी, 2017 को

इस मुद्दे पर वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक पीआईएल दाखिल की थी। उसके जवाब में, गृह मंत्रालय ने कहा कि सरकार इस संबंध में अदालत के किसी भी निर्देश का पालन करेगी, क्योंकि उसने इस मामले को प्रतिकूल नहीं माना है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत के बीच समानता और राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग की थी, जिससे इसे भारत के राष्ट्रगान के समान सम्मान और दर्जा दिया जा सके। सरकार ने कहा कि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत दोनों की अपनी पवित्रता है और वे समान सम्मान के पात्र हैं। लेकिन यह कभी भी अदालत का विषय नहीं हो सकता है।

बहरहाल, केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में शनिवार को लिखित जवाब में कहा- "जन गण मन' और 'वंदे मातरम' दोनों एक ही दर्जा है और देश के हर नागरिक को दोनों के लिए बराबर सम्मान दिखाना चाहिए। सरकार ने यह भी बताया कि 24 नवंबर, 1950 को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष ने 'जन गण मन' को भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया था। "भारत के राष्ट्रगान से संबंधित आदेश' नाम के निर्देश राष्ट्रगान को बजाने या गाए जाने के तरीके और परिस्थितियों के संबंध में जारी किए गए थे। 

वर्ष 1971 में, राष्ट्रगान के गायन को रोकने या बाधा डालने की कार्रवाई को अधिनियम, 1971 के माध्यम से दंडनीय अपराध बनाया गया था। इसमें कहा गया है, राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के मामले में भी इसी तरह के दंडात्मक प्रावधान नहीं किए गए हैं और ऐसी परिस्थितियों को निर्धारित करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है जिसमें इसे गाया या बजाया जा सकता है।

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में 'वंदे मातरम' गाया था। दक्षिण चरण सेन ने पांच साल बाद 1901 में कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम गाया। 1905 में बनारस कांग्रेस अधिवेशन में सरला देवी चौदुरसंग ने वंदे मातरम गाया। लाला लाजपत राय ने लाहौर से वंदे मातरम नामक पत्रिका शुरू की थी।

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