एक सच जो शायद जनगणना से पता न पड़े
बरसों से अटकी हुई जनगणना के काम ने अब फिर रफ्तार पकड़ी है। साल 2025 आते ही जनगणना का वह काम शुरू हो जाएगा जो दरअसल चार साल पहले ही हो जाना चाहिए था। इसके साथ ही सरकार की तरफ से मीडिया को यह संकेेत भी दे दिए गए हैं कि जनगणना चक्र अब बदल जाएगा पहले यह हमेशा नए दशक के पहले साल में होती थी, जैसे 1991, 2001, 2011। अब यह 20025, 2035, 2045... में होगी।
वैसे यह जनगणना 2021 में ही हो जानी चाहिए थी। लेकिन कोविड के तर्क से इसे टाल दिया गया। अगली जनगणना कब होगी पिछले चार में इस पर स्पष्ट तौर पर कुछ कहा भी नहीं गया। और अभी भी इसके संकेत ही दिए गए हैं, आधिकारिक पुष्टि बाकी है।
यूनाइटेड नेशन पाॅपुलेशन फंड के अनुसार साल 2020 और 2021 में दुनिया के 150 देशों में जनगणना होनी थी और इन सभी पर कोविड का प्रभाव पड़ा। सिर्फ आस्ट्रेलिया ही अकेला ऐसा देश था जिसने नियत कार्यक्रम के अनुसार 2021 में अपनी जनगणना करवाई। वहां जनगणना का काम हर पांच साल बाद होता है। नियत समय पर जनगणना कराने का फायदा यह हुआ कि आबादी पर कोविड का असर समझने में मदद मिली।
बाकी बहुत से देशों ने कोविड का असर कम होने के साथ ही यह काम शुरू करवा दिया। मसलन अमेरिका में यह काम कोविड की वजह से देर से शुरू हो सका। लेकिन कोविड के दौरान अमेरिका की जनगणना करने वाली संस्था लगातार सक्रिय रही और जिन इलाकों में कोविड का प्रकोप ज्यादा था वहां के आंकड़े एकत्र कर के आबादी पर महामारी के असर को मापती रही।
बहुत ही कम देश ऐसे थे जिन्होंने जनगणना के काम को इतने लंबे समय तक के लिए टाल दिया। अगर कोविड महामारी के असर से उबरते ही जनगणना का काम करवाया जाता तो शायद बहुत सारी चीजें स्पष्ट हो सकती थीं।
अगर हमें महामारी के असर को आबादी के आंकड़ों से समझना हो तो हमें 1901 में हुई देश की जनगणना को देखना होगा। इस जनगणना से दो साल पहले देश में प्लेग की महामारी भयानक रूप से फैली थी। यह महामारी कितनी भयानक थी इसका कल्पना हम कोविड के अपने अनुभवों से नहीं कर सकते। इसका सबसे बड़ा दस्तावेज जनगणना के आंकड़े ही हैं। 1901 की जनगणना में देश की आबादी 1891 की जनगणना के मुकाबले पांच करोड़ कम हो गई थी। यह देश की पहली और आखिरी ऐसी जनगणना थी जिसमें देश की आबादी पिछली जनगणना के मुकाबले कम हुई थी। इस जनगणना ने अंग्रेज सरकार के बहुत से दावों की पोल भी खोल दी थी।
इसकी तुलना में कोविड का असर इतना ज्यादा भयानक नहीं था। हालांकि यह कितना भयानक था यह स्पष्टता अभी तक नहीं बन सकी है। बहुत से विवाद जरूर खड़े हुए हैं। सरकार के आंकड़े कहते हैं कि देश में कोविड ने लगभग पांच लाख लोगों की जान ली। दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि देश में कोविड के कारण होने वाली मृत्यु का आंकड़ा 41 लाख से भी ज्यादा था। यह अंतर आठ गुने से भी ज्यादा का है।
हालांकि हम इनमें से किसी भी आंकड़े को ले लें, जनगणना से मिली देश की आबादी की कुलजमा संख्या पर शायद इसका असर बहुत ज्यादा न दिखाई देता। लेकिन कोविड प्रभावित गांवों और वार्डों के आंकड़ों से इसे समझा जा सकता था। यह जरूर है कि इस तरह के विस्तृत आंकड़ें आने में तीन से चार साल तक का समय लग जाता, लेकिन तब भी इसके असर को समझने मेें कुछ हद तक मदद मिलती।
अगले साल जब जनगणना होगी तो ये वार्ड और गांव बहुत आगे निकल चुके होंगे। उनके आकड़ों से कोविड के असर को मापना बहुत आसान नहीं होगा। संख्याशास्त्र के कुछ माहिर हो सकता है कि इसका भी विश्लेषण कर ले जाएं। लेकिन जब तक ये आंकड़ें आएंगे वह राजनीतिक नैरेटिव निरर्थक हो चुका होगा जो कोविड और वैक्सीन के नाम पर देश में चलाया गया था।