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अखिलेश के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट मामले में 42 जगहों पर सीबीआई छापे

अखिलेश के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट मामले में 42 जगहों पर सीबीआई छापे

सीबीआई ने इस गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में एक नया केस दर्ज किया है। इसके साथ ही एजेंसी ने इस मामले में उत्तर प्रदेश में 40 सहित कुल 42 जगहों पर छापे मारे हैं। इससे राज्य में राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो सकता है। 

उत्तर प्रदेश में कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट पर नया राजनीतिक तूफ़ान खड़ा होने के आसार हैं। सीबीआई ने इस गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में एक नया केस दर्ज किया है। इसके साथ ही एजेंसी ने इस मामले में उत्तर प्रदेश में 40 सहित कुल 42 जगहों पर छापे मारे हैं। राजस्थान और पश्चिम बंगाल में एक-एक जगह पर छापे मारे गए हैं। 

गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी। इसको 2015 में लॉन्च किया गया था। इस मामले में अनियमितता के आरोप लगाए गए। इसमें एक एफ़आईआर पहले ही 2017 में दर्ज की जा चुकी है। एफ़आईआर में अखिलेश यादव का नाम नहीं है। अब सीबीआई ने इसी मामले में दूसरी एफ़आईआर दर्ज की है। 

इसी को लेकर सुबह तड़के छापेमारी शुरू हुई। परियोजना के तीन मुख्य अभियंताओं और छह अधीक्षण अभियंताओं के परिसरों पर भी छापेमारी चल रही है। रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में लखनऊ के अलावा, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा और आगरा में सीबीआई ने कार्रवाई की है। 

सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन शाखा ने 1500 करोड़ रुपये के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में कथित घोटाले में क़रीब दर्जन भर लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की थी।

एफ़आईआर के आरोपियों में से एक फ्रांसीसी कंपनी एक्वाटिक शो भी है। सीबीआई के अनुसार, आरोपी अधिकारियों ने सरकार से उचित अनुमति लिए बिना गोमती नदी पर म्यूजिकल फाउंटेन वाटर शो की आपूर्ति और डिजाइन के लिए 55.95 लाख यूरो का एक्वाटिक शो के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में राज्य द्वारा नियुक्त एक समिति ने 16 मई 2017 की अपनी रिपोर्ट में परियोजना में प्रथम दृष्टया अनियमितताओं का संकेत दिया था।

प्रदेश में 2017 में बीजेपी सरकार आने पर मामले की जाँच की बात कही गई थी जिसके बाद से कई अफ़सरों के ख़िलाफ़ अब तक एफ़आईआर दर्ज की जा चुकी है।

बीजेपी सरकार के आने के चार साल में अब तक इस मामले में ज़्यादा प्रगति नहीं हो पाई है। पहले उतनी तेज़ी से इस मामले की जाँच नहीं की जा सकी। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि 2017 में पहली एफ़आईआर दर्ज किए जाने के बाद दूसरी एफ़आईआर दर्ज करने में 4 साल से ज़्यादा लगे। 

अब कार्रवाई में तेज़ी लाने से यह राजनीतिक मुद्दा भी बन सकता है क्योंकि राज्य में अगले कुछ महीनों में ही विधानसभा के चुनाव हैं। अब कार्रवाई तेज़ की गई है तो इस गोमती रिवर फ्रंट मामले का असर चुनावी प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप के रूप में हो सकता है। 

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