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23 हज़ार करोड़ की बैंक धोखाधड़ी केस में सीबीआई का लुकआउट सर्कुलर

23 हज़ार करोड़ की बैंक धोखाधड़ी केस में सीबीआई का लुकआउट सर्कुलर

एबीजी शिपयार्ड उससे जुड़ा मामला है जिसमें जिसमें सीबीआई ने कथित बैंक घोटाले को लेकर एफ़आईआर दर्ज की है। यह कथित घोटाला 22842 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है।

देश का सबसे बड़ा बैंक घोटाला कहे जा रहे क़रीब 23,000 करोड़ रुपये के कथित बैंक धोखाधड़ी मामले में एबीजी शिपयार्ड के मालिकों और वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ लुकआउट सर्कुलर जारी किया गया है। लुकआउट सर्कुलर जारी होने का मतलब है कि जिनके ख़िलाफ़ यह जारी हुआ है वे लोग देश से बाहर नहीं जा सकते हैं।

इसका इस्तेमाल क़ानून को लागू करने वाले अधिकारियों द्वारा वांछित किसी भी व्यक्ति को हवाई अड्डों और सीमा पर देश छोड़ने से रोकने के लिए किया जाता है।

एबीजी शिपयार्ड उससे जुड़ा मामला है जिसमें जिसमें सीबीआई ने कथित बैंक घोटाले को लेकर एफ़आईआर दर्ज की है। यह कथित घोटाला 22842 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है। सीबीआई की एफआईआर में घोटाले के लिए गुजरात की एबीजी शिपयार्ड कंपनी और उसकी सहयोगी कंपनियों पर आरोप लगाया गया है। सीबीआई ने कंपनी के प्रबंध निदेशक, अन्य अधिकारियों और अज्ञात सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया है।

शिपिंग फर्म के निदेशकों में ऋषि अग्रवाल, संथानम मुथुस्वामी और अश्विनी कुमार शामिल हैं। सीबीआई ने कहा है कि एबीजी शिपयार्ड ने भारतीय स्टेट बैंक सहित 28 बैंकों के बकाया 22,842 करोड़ रुपये का ऋण नहीं चुकाया।

नामचीन वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया है, 'गुजरात स्थित उस एबीजी शिपयार्ड के बारे में तथ्य जिसने 28 बैंकों के साथ 22841 करोड़ रुपये की भारी धोखाधड़ी की है। यह आश्चर्यजनक है कि हालांकि इसे बहुत पहले दिवालिया घोषित कर दिया गया था और एसबीआई ने 2019 में धोखाधड़ी की शिकायत की थी, मालिकों और निदेशकों के गायब होने के बाद अब प्राथमिकी दर्ज की गई है।'

एबीजी शिपयार्ड एबीजी समूह की प्रमुख कंपनी है जो जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत में लगी हुई है। शिपयार्ड गुजरात के दहेज और सूरत में स्थित हैं।

सीबीआई ने कहा है, 'अप्रैल 2019 और मार्च 2020 के बीच कंसोर्टियम के विभिन्न बैंकों ने एबीजी शिपयार्ड के खाते को धोखाधड़ी वाला घोषित किया। धोखाधड़ी मुख्य रूप से एबीजी शिपयार्ड द्वारा अपने संबंधित पक्षों को भारी हस्तांतरण और बाद में उसके समायोजन की प्रविष्टियां करने के कारण हुई है।

सीबीआई ने कहा है, 'बैंक ऋणों को डायवर्ट करके इसकी विदेशी सहायक कंपनी में भारी निवेश किया गया था। इसके संबंधित पक्षों के नाम पर बड़ी संपत्ति खरीदने के लिए धन का उपयोग किया गया था।' इसने कहा है कि रिकॉर्ड और प्रारंभिक जांच में यह देखा गया है कि इसकी महत्वपूर्ण अवधि 2005-2012 थी।

तथाकथित यह धोखाधड़ी बहुचर्चित नीरव मोदी वाले घोटाले से भी बड़ा है क्योंकि उसमें घोटाले की रक़म क़रीब 12 हजार करोड़ रुपये थी। यह मामला बिल्कुल उसी तरह का है जैसा पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी, व्यवसायी नीरव मोदी और उसके चाचा मेहुल चोकसी से लेकर किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक विजय माल्या का बैंक ऋण वाला केस है। ये सभी भारत में प्रत्यर्पण की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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