अफसरों की लड़ाई में हुए सीबीआई से जुड़े विस्फोटक खुलासे
सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक की निजी लड़ाई से इस जाँच एजेंसी की कलई खुल गई है। यह साफ़ हो गया है कि यह ब्यूरो का अंदरूनी मामला नहीं है। यह प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यशैली, उसके हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले उसके फ़ैसलों की पोल खोलता है। विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की शिकायत पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने निदेशक आलोक वर्मा से कुछ सवाल पूछे थे। उन्होंने अस्थाना के आरोपों के बिंदुवार जवाब दिए। अंग्रेजी वेबसाइट ‘द वायर’ ने इस पर एक रिपोर्ट छापी थी। आइए, जानते हैं कि इस रिपोर्ट में क्या था।‘द वायर’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, वर्मा ने पीएमओ, सीवीसी और दूसरे लोगों पर गंभीर आरोप लगाए।
वर्मा ने सीवीसी के सवालों के जो जवाब दिए, उनसे पीएमओ, उसके तहत आने वाले कार्मिक विभाग और स्वयं सीवीसी प्रमुख पर सवालिया निशान लगते हैं। इससे साफ़ होता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे भ्रष्ट अफ़सरों को ख़ास पसंद करता है, उनकी नियुक्ति करता है और उनका खुल कर बचाव करता है।
पीएमओ पर आरोप
‘द वायर’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, वर्मा ने सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय पर निशाना साधते हुए कहा कि साल 2017 में विशेष निदेशक के पद पर अस्थाना की नियुक्ति के समय ही उन्होंने चेताया था कि अस्थाना भ्रष्टाचार के कम से कम 6 मामलों में शामिल हैं। सीवीसी और पीएमओ ने उनकी एक न सुनी और अस्थाना की नियुक्ति कर दी गई। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, पर यह संकेत ज़रूर दिया कि ऊपर के किसी आदमी के कहने पर ऐसा हुआ था। वर्मा ने सीवीसी को दिए जवाब में अस्थाना के आरोपों का बिंदुवार उत्तर दिया।लालू मामले में पीएमओ का दबाव
विशेष निदेशक अस्थाना ने वर्मा पर आरोप लगाया था कि उन्होंने आईआरसीटीसी घोटाले में लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ सीबीआई का केस जान-बूझ कर ख़राब कर दिया था। वर्मा का ज़वाब है कि अस्थाना इस मामले में एक भी पुख़्ता सबूत नहीं जुटा सके और वर्मा सभी नियम-क़ानूनों का पालन कर ही कोई कर्रवाई करना चाहते थे।
सीबीआई निदेशक ने लालू मुद्दे पर पीएमओ पर गंभीर सवाल उठाए हें। उन्होंने कहा है कि पीएमओ के एक बड़े अफ़सर और बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ख़ास दिलचस्पी ले रहे थे और दबाव बना रहे थे। लेकिन सीबीआई के पास पुख़्ता सबूत नहीं थे।
अस्थाना पर पलटवार
अस्थाना का आरोप है कि वर्मा ने मोइन क़ुरैशी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सना बाबू सतीश को साक्षी बनाया न कि अभियुक्त और इस तरह उन्हें बचाया गया। सीबीआई निदेशक ने अपने जूनियर अफ़सर के इस आरोप के ज़वाब में कहा है कि पहले ही प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में सना सतीश को साक्षी बना दिया था। इसी कारण उन्होंने उसे अलग से अभियुक्त नहीं बनाया वरना क़ानूनी विवाद पैदा हो जाता। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि अस्थाना इस मामले को उलझाने के लिए ही सना को अभियुक्त बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं।वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत काम करने वाले कार्मिक विभाग को निशाने पर लेते हुए कहा कि आख़िर क्यों अस्थाना पर लगे आरोपों की जाँच कर रहे लोगों को रातोंरात तबादला कर जबलपुर भेज दिया गया।
सीबीआई प्रमुख ने पीएमओ पर आरोप लगाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अफ़सरों को ब्यूरो के ऊँचे पदों पर जान-बूझ कर बैठाया गया और इस बारे में उनकी चेतावनियों की अनदेखी की गई।
उन्होंने कहा कि ज्योति नारायण जैसे अफ़सरों की नियुक्ति के समय उन्होंने यह मुद्दा उठाया था पर ख़ुद सीवीसी और कार्मिक विभाग ने उनकी एक न सुनी।
सतकर्ता आयुक्त भी साफ़ नहीं
वर्मा ने सीवीसी चौधरी पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के छोटे-मोटे आरोपों का संज्ञान लेते हुए उनके (वर्मा के) ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू की मगर अस्थाना के बड़े घपलों को नज़रअंदाज़ किया ताकि उन्हें बचाया जा सके।
सबसे मज़े की बात तो यह है कि दूसरों पर नज़र रखने वाले सतर्कता आयोग के प्रमुख पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। के वी चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने सहारा-बिड़ला डायरी मामले में साक्ष्यों को जान-बूझ कर दबा दिया था।
साल 2017 में उनकी नियुक्ति को चुनौती दी गयी थी। पर उन पर आँच न आयी।