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अखिलेश को CBI ने कल पूछताछ के लिए बुलाया, इसका क्या अर्थ है?

अखिलेश को CBI ने कल पूछताछ के लिए बुलाया, इसका क्या अर्थ है?

अखिलेश यादव और सपा को कांग्रेस से गठबंधन बहुत महंगा पड़ रहा है। राज्यसभा चुनाव में सपा विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके अखिलेश की साख पर चोट कर दी। सपा ने आरोप लगाया कि भाजपा किसी भी तरह सपा-कांग्रेस तालमेल को बर्दाश्त नहीं कर पा रही। यूपी के घटनाक्रम के बाद सीबीआई ने अखिलेश को समन भेजकर गुरुवार को पूछताछ के लिए बतौर गवाह तलब किया है। ये सारे घटनाक्रम किस तरफ इशारा कर रहे हैंः

कांग्रेस और सपा का कहना है कि भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन होने से घबराई हुई है। इसलिए वो पार्टियों को तोड़ने और केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए परेशान करने के स्तर पर उतरी हुई है। यह भाजपा और केंद्र सरकार की हताशा को साफ बता रहा है। सपा और कांग्रेस के इन आरोपों को बुधवार को हुए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम से जोड़ कर देखा जा सकता है। केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से एक पुराने माइनिंग घोटाले के संबंध में बतौर गवाह समन भेजकर तलब किया है। करीब छह साल से यूपी में भाजपा सरकार है लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी को पुराने मामले की याद अब आई है।

यूपी में अवैध खनन मामले में ई टेंडरिंग प्रक्रिया में कथित उल्लंघन का आरोप लगने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहुत पहले जांच के आदेश दिए थे। सीबीआई को अब उस केस की याद आई। उसने अखिलेश यादव को गुरुवार 29 फरवरी को गवाह के तौर पर तलब किया है। 

सीबीआई ने सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस जारी किया, जिसमें अखिलेश यादव को गुरुवार को दिल्ली में पूछताछ के लिए संघीय एजेंसी के सामने पेश होने के लिए कहा गया। यह धारा एक पुलिस अधिकारी को जांच में गवाहों को बुलाने की अनुमति देती है। 

यह मामला 2012-16 का है जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। आरोप है कि उनकी सरकार ने अवैध खनन की अनुमति दी और खनन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा प्रतिबंध के बावजूद अवैध रूप से लाइसेंस का नवीनीकरण किया।

आरोप है कि यूपी के अधिकारियों ने खनिजों की चोरी होने दी। अधिकारियों ने पट्टाधारकों और ड्राइवरों से पैसे वसूले। खनिजों के अवैध खनन के मामले की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने 2016 में सात मामलों की जांच की थी और रिपोर्ट दी थी।

सीबीआई का आरोप है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यालय ने एक ही दिन में 13 परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। अखिलेश यादव के पास कुछ समय के लिए खनन विभाग भी था। उनकी सरकार ने ई-टेंडरिंग प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए 14 पट्टों को मंजूरी दी थी, जिनमें से 13 पट्टों को 17 फरवरी 2013 को मंजूरी दे दी गई थी।


एफआईआर के मुताबिक, 2012 से 2017 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव के पास 2012-13 के दौरान खनन विभाग था, जिससे जाहिर तौर पर उनकी भूमिका संदेह के घेरे में आ गई। सीबीआई की एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि अन्य लोगों को अवैध रूप से लघु खनिजों की खुदाई करने, लघु खनिजों की चोरी करने और पट्टाधारकों के साथ-साथ लघु खनिजों का ट्रांसपोर्ट करने वाले वाहनों के चालकों से पैसे वसूलने की अनुमति दी गई थी।

अखिलेश का हमलाः समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुधवार को भाजपा पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि भाजपा इंडिया गठबंधन से घबरा गई है। इसीलिए वो अन्य पार्टियों को तोड़ने का का काम कर रही है। यादव ने मंगलवार को राज्यसभा चुनाव में भाजपा को क्रॉस वोटिंग करने वाले बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की कसम खाई है।

यही आरोप कांग्रेस का भी है। उसने हिमाचल और यूपी का हवाला देते हुए कहा कि भाजपा और मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से इतने डरे हुए हैं कि विपक्षी पार्टियों के विधायकों को खरीदकर पार्टियों को तोड़ रहे हैं। उनका यह कदम भाजपा की हताशा बता रहा है। इसका अर्थ यह भी है कि भाजपा साफ सुथरी राजनीति में यकीन नहीं करती है।

राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 10 सीटों में से 8 पर जीत हासिल की, जबकि एसपी ने दो सीटें जीतीं। मुकाबला तब प्रभावित हुआ जब भाजपा ने पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ के रूप में आठवां उम्मीदवार खड़ा किया, जो अंततः 7 सपा विधायकों के क्रॉस वोटिंग के बाद जीते। हालांकि इसमें सपा के अगड़ी जातियों के विधायकों की मुख्य भूमिका रही।

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