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जाति सर्वे रिपोर्ट ने बढ़ाई सिद्धारमैया सरकार की मुश्किल

जाति सर्वे रिपोर्ट ने बढ़ाई सिद्धारमैया सरकार की मुश्किल

कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की परेशानियों को इन दिनों वहां पिछले वर्षों में कराये गये जाति सर्वे की रिपोर्ट ने काफी बढ़ा दिया है। राज्य के दो सबसे बड़े समुदाय माने जाने वाले समूह इसका विरोध कर रहे हैं। 

कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की परेशानियों को इन दिनों वहां पिछले वर्षों में कराये गये जाति सर्वे की रिपोर्ट ने काफी बढ़ा दिया है।

 एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेता विभिन्न राज्यों में जाति गणना या सर्वे कराने की बात कह रहे हैं। वह राष्ट्रीय स्तर पर भी जाति गणना की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ कर्नाटक सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वह राज्य में कई वर्ष पूर्व हुई जाति गणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक करे। 

अब संकट यह है कि इस रिपोर्ट को अगर सिद्धारमैया सरकार सार्वजनिक करती है तो राज्य के दो बड़े जाति समुदाय लिंगायत और वोक्कालिगा नाराज हो सकते हैं। वह इसलिए कि इस रिपोर्ट को लेकर दावा किया जा रहा है कि इसकी लीक हुई सूचना के मुताबिक इस सर्वे में यह बताया गया है कि राज्य का सबसे बड़ा जातीय समूह अनुसूचित जातियों का है।

दूसरे स्थान पर मुसलमान हैं। इसके बाद जाकर तीसरे स्थान पर लिंगायों की आबादी है। राज्य में आबादी के लिहाज से वोक्कालिगा चौथे स्थान पर है। 

अब इस जानकारी के लीक होने के बाद राज्य के दो बड़े जाति समुदाय लिंगायत और वोक्कालिगा मांग कर रही हैं कि जाति सर्वे की इस रिपोर्ट को सरकार स्वीकार नहीं करे। ये दोनों समुदाय कर्नाटक की आबादी के दो सबसे बड़े जाति समुदाय माने जाते रहे हैं। ये दोनों राजनैतिक रुप से काफी ताकतवर हैं। जिनकी आबादी अब तक के दावे के मुताबिक क्रमशः 17 और 14 प्रतिशत होने की बात कही जाती है। 

माना जा रहा है कि जाति सर्वे की नयी रिपोर्ट सामने आती है तो ये दोनों समुदाय कर्नाटक में आबादी के लिहाज से दूसरे और तीसरे स्थान से हटकर तीसरे और चौथे स्थान पर चले जायेंगे। इसलिए ही ये पूरी ताकत से कोशिश कर रहे हैं कि यह सर्वे रिपोर्ट सरकार जारी ही नहीं करें। इसे रोकने की कोशिश में ये दोनों समुदाय हैं। 

वहीं अनुसूचित जाति और मुस्लिम समुदाय की मांग है कि करोड़ो रुपये खर्च कर करवाए गये इस सर्वे की रिपोर्ट को जारी किया जाना चाहिए। 

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के लिए अब संकट यह है कि अगर वह इस रिपोर्ट को स्वीकार करती है तब और नहीं भी स्वीकार करती है तब भी दोनों ही स्थिति में राजनैतिक नुकसान हो सकते हैं। इसके कारण राज्य सरकार की परेशानी बढ़ चुकी है। 

सरकार इसे लोकसभा चुनाव तक रोक सकती है

जाति सर्वे की यह रिपोर्ट सिद्धारमैया की पिछली सरकार में भी सार्वजिक नहीं हो पायी थी। इसके बाद कई मुख्यमंत्री आये और गये लेकिन किसी ने भी इस रिपोर्ट को लागू करने का साहस नहीं दिखाया है। सभी सीएम जानते थे कि इस रिपोर्ट को स्वीकार करने का मतलब कर्नाटक लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को नाराज करना होगा।

आज के समय में ये दोनों सबसे बड़े समुदाय ही नहीं माने जाते हैं जो कि चुनावों को काफी प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि कोई भी राजनैतिक दल इन्हें नाराज नहीं करना चाहता है। 

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस जाति गणना को राष्ट्रीय मुद्दा बना रही है ऐसे में कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार के लिए इसे रोकना आसान नहीं होगा। अधिक से अधिक सिद्धारमैया सरकार इसे लोकसभा चुनाव तक रोक सकती है। इसके बाद इसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करना ही पड़ेगा। 

2015 से 17 तक कर्नाटक में हुआ था यह सर्वे

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को बीसी पैनल द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली सर्वेक्षण रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए पिछड़े और कमजोर समूहों के दबाव का भी सामना करना पड़ रहा है, जो पिछले सिद्धारमैया शासन के समय से ही लटकी हुई है। इस की रिपोर्ट कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। 

दूसरी ओर, राज्य के पिछड़े और कमजोर माने जाने वाले समुदायों के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी भी सिद्धारमैया सरकार पर रिपोर्ट को स्वीकार करने और इसके निष्कर्षों को सार्वजनिक करने के लिए दबाव डाल रही है।

सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया यह राज्यव्यापी सर्वे 2017 में पूरा किया गया था। वहीं इसे 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।  

उनके बाद आयी एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जनता दल (सेक्युलर)-कांग्रेस गठबंधन सरकार और बीएस येदियुरप्पा और बाद में बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने भी इसे सार्वजनिक करने से परहेज किया। 

दोनों जातीय समूहों के संगठन कर चुके हैं बैठक

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि पिछले हफ्ते, वोक्कालिगरा संघ ने बेंगलुरु में एक बैठक की है जिसमें उसने सरकार से जाति सर्वे रिपोर्ट को खारिज करने का आग्रह किया। बैठक में उपमुख्यमंत्री और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार, जो वोक्कालिगा समुदाय से हैं, उपस्थित थे।

वोक्कालिगरा संघ के इस कार्यक्रम में सभी दलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ प्रमुख मठों के संतों ने भी भाग लिया। संघ ने अपनी मांगों के साथ सीएम सिद्धारमैया से मिलने के लिए विभिन्न मठों के प्रमुखों के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है। 

इसके साथ ही एक हफ्ते बाद बीते गुरुवार को, लिंगायत निकाय, अखिल भारतीय वीरशैव महासभा ने भी बेंगलुरु में एक बैठक की, जिसमें सरकार से जाति सर्वे रिपोर्ट को स्वीकार न करने की मांग की गई है।  

वीरशैव महासभा के अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा ने आरोप लगाया है कि सर्वेक्षण "अवैज्ञानिक" था और इसमें कई "खामियां" थीं। “यह (सर्वेक्षण) वैज्ञानिक नहीं है। उन्होंने यहां बैठकर रिपोर्ट लिखी है। उन्होंने किसी भी घर का दौरा नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि सर्वेक्षण आठ साल पहले केएससीबीसी द्वारा आयोजित किया गया था। अब हमारी राय यह है कि एक नई जनगणना कराई जानी चाहिए।

162 करोड़ की लागत से हुआ था यह सर्वे

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के पिछड़ा वर्ग मंत्री शिवराज तंगदागी ने कहा कि सरकार पहले अपने निष्कर्षों पर गौर करने के लिए रिपोर्ट का इंतजार करेगी। "राज्य में सभी समुदायों की शैक्षिक और आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए जनगणना की गई थी।

मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान 162 करोड़ रुपये की लागत से एच कंथाराज की अध्यक्षता में यह जाति आधारित सर्वे किया गया था। इसकी रिपोर्ट का जारी होना तब से अधर में लटका हुआ है क्योंकि क्रमिक सरकारें लिंगायत और वोक्कालिगा का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं और विधायकों की कड़ी प्रतिक्रिया से सावधान रही हैं। 

 ये दोनों समुदाय राज्य के सबसे प्रभावशाली समुदाय माने जाते हैं। जहां लिंगायतों की मध्य और उत्तरी कर्नाटक में बड़ी आबादी है, वहीं वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक में केंद्रित हैं।  

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