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मोदी सरकार के राज में राजनीतिक विरोधियों पर मुक़दमों की बाढ़: रिपोर्ट

मोदी सरकार के राज में राजनीतिक विरोधियों पर मुक़दमों की बाढ़: रिपोर्ट

एनडीटीवी की इस रिपोर्ट के बाद यह सवाल फिर से खड़ा हो गया है कि आख़िर जांच एजेंसियां किसके इशारे पर विपक्षी नेताओं और अन्य लोगों पर कार्रवाई करती हैं?

मोदी सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ केंद्रीय जांच एजेंसियों का ग़लत इस्तेमाल करती है। बीते कुछ सालों में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें सरकार का विरोध करने का खामियाजा उठाना पड़ा है। लेकिन एनडीटीवी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2014 में यानी जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों पर मुक़दमों की बाढ़ आ गई है। 

रिपोर्ट के मुताबिक़, 2014 के बाद से 570 लोग ऐसे हैं, जो जांच एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं। कुछ मामलों में तो संबंधित शख़्स के परिजनों तक भी ये एजेंसियां पहुंची हैं। इन एजेंसियों में सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स शामिल हैं। 

जबकि लोगों में ग़ैर एनडीए दलों के राजनेता, एक्टिविस्ट्स, वकील, स्वतंत्र मीडिया हाउस, पत्रकार, फ़िल्म जगत से जुड़े लोग और सरकारी अफ़सर भी शामिल हैं। 

हालांकि 39 लोग ऐसे भी हैं, जो बीजेपी या इसके सहयोगी दलों से जुड़े हैं और उन्हें केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। 570 लोगों की सूची में 257 राजनेता हैं जबकि उनके रिश्तेदार और सहयोगियों की संख्या 140 है। 

कांग्रेस के 75 नेताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज हुए हैं, जो सबसे ज़्यादा हैं। इसके बाद ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी है, जिसके 36 नेताओं के और फिर आम आदमी पार्टी के 18 नेताओं को मुक़दमों का सामना करना पड़ा है। इनमें पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं। 

 - Satya Hindi

एनडीटीवी की रिपोर्ट कहती है कि कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं रहा, जिसके ख़िलाफ़ इन केंद्रीय एजेंसियों ने कार्रवाई न की हो। इनमें कश्मीर के अब्दुल्लाह परिवार और महबूबा मुफ़्ती से लेकर तमिलनाडु की डीएमके तक शामिल है। 

इसके अलावा आरजेडी, बीएसपी, एसपी, एआईएडीएमके, सीपीएम से लेकर अकाली दल, राइजोर दल और तमाम दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ जांच एजेंसियों ने कार्रवाई की है।

राजनेताओं के अलावा फ़िल्म जगत से आने वाले तापसी पन्नू, अनुराग कश्यप, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज का नाम भी इस सूची में शामिल है। 29 मीडिया हाउस और पत्रकार हैं, जो एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं। 

340 फ़ीसदी ज़्यादा 

एनडीटीवी की रिपोर्ट कहती है कि यूपीए 2 की सरकार के मुकाबले मोदी सरकार के पिछले सात सालों में जो कार्रवाई एजेंसियों ने की है, वह 340 फ़ीसदी ज़्यादा है। यूपीए 2 की सरकार में 85 लोगों या समूहों को इस तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। 

किसान आंदोलन पर शिकंजा

दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन में भी केंद्रीय एजेंसियों ने आंदोलन का समर्थन करने वालों पर शिकंजा कसा। आढ़तियों, पंजाबी गायकों, लेखकों, पत्रकारों, व्यापारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को ईडी, इनकम टैक्स और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के नोटिस गए। 

किसके इशारे पर कार्रवाई?

एनडीटीवी की इस रिपोर्ट के बाद यह पुराना सवाल फिर से खड़ा हो गया है कि आख़िर सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स जैसी प्रतिष्ठित जांच एजेंसियां किसके इशारे पर विपक्षी नेताओं, उनके रिश्तेदारों, करीबियों को समन भेजती हैं या उनके घरों-दफ़्तरों में छापेमारी करती हैं क्योंकि केंद्र सरकार तो कहती है कि उसका छापेमारी से कोई लेना-देना नहीं है और एजेंसियां अपना काम कर रही हैं। 

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