फ़ेसबुक इंडिया की डायरेक्टर आंखी दास के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ में मुक़दमा दर्ज
फ़ेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ में मुक़दमा दर्ज हो गया है। मुक़दमे में आंखी दास पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और लोगों को भड़काया है।
अमेरिकी पत्रिका 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' की इस ख़बर के बाद कि फ़ेसबुक ने बीजेपी से जुड़े लोगों की नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट को नहीं हटाया, आंखी दास चर्चा में हैं। इस रिपोर्ट को लेकर भारत में जोरदार सियासी बवाल हो रहा है।
आंखी दास के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पत्रकार आवेश तिवारी की शिकायत पर मुक़दमा दर्ज किया गया है। तिवारी पर आंखी दास को धमकी देने का आरोप है। आंखी दास ने सोमवार को पुलिस को दी शिकायत में कहा था कि उन्हें ऑनलाइन मैसेज के जरिये जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने अपनी शिकायत में तिवारी के अलावा पांच लोगों के नाम लिखे हैं।
जबकि तिवारी की शिकायत में आंखी दास के अलावा छत्तीसगढ़ के ही मुंगेली के रहने वाले राम साहू, मध्य प्रदेश के विवेक सिन्हा का भी नाम है।
पीटीआई के मुताबिक़, तिवारी ने अपनी शिकायत में कहा है कि उन्होंने ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के बीजेपी वाले आर्टिकल पर एक पोस्ट लिखी तो राम साहू और विवेक सिन्हा आंखी दास के समर्थन में कूद पड़े और पोस्ट पर कमेंट किया, ‘वह (आंखी दास) हिंदू है और वह अपने धर्म के हित में बात कर रही है।’ तिवारी ने शिकायत में लिखा है कि राम साहू ने बेहूदे और सांप्रदायिक फ़ोटो पोस्ट किए और उसे धमकाया।
तिवारी ने यह भी कहा है कि पोस्ट लिखने के बाद उन्हें धमकी भरे कॉल और मैसेज आ रहे हैं। पीटीआई के मुताबिक़, उन्होंने इन मैसेजों के स्क्रीनशॉट पुलिस के सामने जमा कराए हैं।
इससे पहले, आंखी दास ने पुलिस को दी शिकायत में कहा था कि वह उन्हें मिल रही धमकियों से बहुत परेशान हैं और अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
ख़बर पर बवाल क्यों?
‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ की ख़बर में यह कहा गया है कि दास ने पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनावी मुद्दों पर सहयोग दिया। ख़बर के अनुसार, आंखी दास की भूमिका उस टीम की निगरानी करने की थी जो यह तय करती है कि फ़ेसबुक पर कौन सी सामग्री की अनुमति दी जाए और कौन सी की नहीं। रिपोर्ट में फ़ेसबुक के पूर्व और वर्तमान कर्मचारियों के हवाले से कहा गया है कि इसी के दम पर दास ने बीजेपी और हिंदुत्व समूहों से जुड़े नेताओं की नफ़रत वाली पोस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में बाधा डाली।
अख़बार ने अपनी ख़बर में उन नेताओं की पोस्ट का ज़िक्र भी किया है जिन्हें लेकर कथित तौर पर फ़ेसबुक के कर्मचारियों ने आपत्ति की थी, लेकिन इन आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया था। इसके अलावा फ़ेसबुक के कर्मचारियों ने बीजेपी विधायक टी. राजा सिंह द्वारा भड़काऊ पोस्ट करने का मामला भी उठाया था।
इस ख़बर के सामने आने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था, ‘बीजेपी-आरएसएस भारत में फेसबुक और वॉट्सएप का नियंत्रण करते हैं। इस माध्यम से ये झूठी ख़बरें व नफ़रत फैलाकर वोटरों को फुसलाते हैं।’
ख़ुद को घिरता देख बीजेपी ने केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और तमाम प्रवक्ताओं को इसका जवाब देने के लिए टेलीविजन चैनलों के मोर्चे पर तैनात किया हुआ है।
विवाद बढ़ने के बाद फ़ेसबुक ने इस पर सफाई दी और कहा है कि वह ऐसी सामग्री जिससे ‘नफ़रत को बढ़ावा मिलता हो’ या ‘हिंसा को उकसावा मिलता हो’ उसे रोक देता है।
बीजेपी विरोध में उतरी
अब इसमें ताज़ा विवाद खड़ा हो गया है कांग्रेस सांसद और सूचना प्रोद्यौगिकी (आईटी) से संबंधित संसद की स्थायी समिति के चेयरमैन शशि थरूर के एक बयान के बाद। थरूर ने कहा है कि वह 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' की ख़बर को लेकर फ़ेसबुक के अधिकारियों को तलब कर सकते हैं।
थरूर के बयान पर झारखंड से बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने ट्वीट कर कहा, ‘शशि थरूर को फ़ेसबुक अधिकारियों को तलब करने का दावा करने से पहले संसद की स्थायी समिति में इसे लेकर चर्चा करनी होगी। इन मुद्दों को वे समिति के नियमों के मुताबिक़ ही उठा सकते हैं।’
दुबे ने तीख़ा हमला करते हुए कहा, ‘शशि थरूर को यह समझना चाहिए कि संसद की स्थायी समिति संसद का ही एक अंग है और यह कांग्रेस पार्टी नहीं है।’ उन्होंने कहा कि संसद के नियमों के मुताबिक़, केवल स्पीकर ही निजी क्षेत्र के लोगों को बुला सकते हैं।