शहीद सैनिक के माता-पिता और पत्नी में बीमा, पीएफ़, पेंशन का बँटवारा कैसे?
दिवंगत कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता चाहते हैं कि निकटतम परिजन नीति यानी एनओके नीति में बदलाव हो ताकि सैनिक की मौत होने पर वित्तीय सहायता और सम्मान सिर्फ पत्नी को ही न दी जाएं बल्कि उसमें माता-पिता को भी शामिल किया जाए। उनकी इस मांग के बाद इसपर बहस शुरू हो गई है। लेकिन अब जो ख़बर सामने आ रही है उसमें कहा गया है कि मौजूदा व्यवस्था में ही माता-पिता को भी आर्थिक सहायता मिलती है।
मीडिया रिपोर्टों में सेना के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि 1 करोड़ रुपये का आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड यानी एजीआईएफ़ उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच बाँटा गया, जबकि पेंशन सीधे जीवनसाथी को जाती है। सेना के एक सूत्र ने बताया कि नीति के अनुसार, एक बार जब कोई अधिकारी विवाहित हो जाता है, तो उसकी पत्नी पेंशन के लिए नामित होती है। सूत्रों ने बताया कि अधिकारी की पत्नी को कुछ लाभ मिल रहे हैं, क्योंकि उन्हें वसीयत में नामित किया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 50 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की थी, जिसमें से 35 लाख रुपये उनकी पत्नी को और 15 लाख रुपये उनके माता-पिता को दिए गए। द हिंदू ने सेना के सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता सेना में सेवानिवृत्त जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) हैं और खुद पेंशनभोगी हैं और पूर्व सैनिक के रूप में अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं।
अधिकारियों का कहना है कि सेना में कमीशन प्राप्त करने वाला अधिकारी आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड, प्रोविडेंट फंड और किसी भी अन्य चल या अचल संपत्ति से लेकर बीमा तक का बंटवारा एनओके में नामित वसीयत के अनुसार होता है। इन सभी के लिए कई नामांकित व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन पेंशन के लिए ऐसा कोई विकल्प नहीं दिया जाता है। चूंकि कमीशन प्राप्त करने के समय अधिकारी ज्यादातर अविवाहित होते हैं, इसलिए माता-पिता को नामित किया जाता है और शादी के बाद, अधिकारियों को इसे अपडेट करने के लिए कहा जाता है। तभी आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड, प्रोविडेंट फंड और अन्य संपत्तियों के लिए पत्नी और माता-पिता के बीच बँटवारे का प्रतिशत परिभाषित किया जा सकता है। एक अधिकारी ने कहा कि सेना उसी के अनुसार धन और पेंशन वितरित करती है।
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नितिन कोहली ने बीबीसी से कहा कि हर सर्विस पर्सन को सर्विस के दौरान अपने निकटतम परिजन यानी एनओके को घोषित करना पड़ता है। उन्होंने कहा, 'एनओके को सरकार या सेना तय नहीं करती है, ये व्यक्ति को खुद करना पड़ता है। अगर किसी की शादी नहीं हुई है तो आम तौर पर उसके माता-पिता निकटतम परिजन के तौर पर दर्ज होते हैं, वहीं शादी की स्थिति में यह बदलकर जीवनसाथी हो जाता है।' नितिन कोहली कहते हैं कि अगर सैन्यकर्मी के पास पर्याप्त कारण हैं तो वह अपना एनओके बदल सकता है लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने कहा कि अगर अंशुमान की पत्नी को लाभ मिल रहा है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपनी वसीयत में उन्हें नामित किया था। उदाहरण के लिए, कैप्टन सिंह के मामले में एजीआईएफ का प्रतिशत उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच 50% का था और पीएफ के लिए यह उनकी पत्नी के लिए 100% था।
कैप्टन अंशुमान सिंह को मार्च 2020 में आर्मी मेडिकल कोर में कमीशन दिया गया था। पिछले साल जुलाई में सियाचिन में अपने साथियों को बचाते हुए कैप्टन अंशुमान शहीद हो गए थे।
उनके वीरतापूर्ण कार्य के लिए, उन्हें मरणोपरांत देश के दूसरे सबसे बड़े शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित रक्षा अलंकरण समारोह में उनकी पत्नी स्मृति सिंह और मां मंजू सिंह को दिया।
कैप्टन अंशुमान सिंह और स्मृति सिंह की शादी को केवल पाँच महीने हुए थे, हालाँकि वे उससे पहले आठ साल तक रिश्ते में थे। पुरस्कार समारोह के कुछ दिनों बाद उनके माता-पिता रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह ने आरोप लगाया कि उन्हें कीर्ति चक्र को छूने का भी मौका नहीं मिला और उन्होंने वित्तीय सहायता के लिए भारतीय सेना के निकटतम परिजन यानी एनओके मानदंडों में बदलाव की मांग की।
कई सेवारत अधिकारियों ने घटनाओं को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर द हिंदू से कहा, 'नामांकन पूरी तरह से अधिकारी की पसंद है। पति या पत्नी की इसमें कोई भूमिका नहीं है। वह एक दुखी पत्नी के रूप में हकदार है।' उन्होंने कहा कि ऐसी समस्याएं अक्सर आती हैं। अधिकारी ने कहा, 'अक्सर यूनिट द्वारा मुद्दों का समाधान किया जाता है, लेकिन इस मामले में यह विशेष रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि अधिकारी के पिता स्वयं एक पूर्व सैनिक हैं।'