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यूपी में ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं उम्मीदवार

यूपी में ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं उम्मीदवार

चुनाव जैसे जैसे नज़दीक आता जा रहा है, उत्तर प्रदेश में तमाम पार्टियों में बग़ावत, असंतोष बढ़ता जा रहा है, पार्टियां उम्मीदवारों को ताश के पत्तों की तरह फेंट रही हैं। 

उत्तर प्रदेश में पहले दो चरणों के मतदान के लिए पर्चा भरने की आखिरी तारीख़ निकल चुकी है। बाक़ी चरणों के मतदान के लिए सभी पार्टियां अपने अपने हिसाब से उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर रही हैं। यूं तो हर चुनाव में कुछ सीटों पर आख़िरी वक़्त में उम्मीदवार बदले जाते हैं। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में टिकट देने और कटने के तमाम पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं। 

सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस में तो उम्मीदवारों के नाम ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं। उम्मीदवारों को टिकट देने और काटने का ऐसा सिलसिला चल रहा है कि सुबह को जहां एक उम्मीदवार का टिकट पक्का हो रहा है, वहाँ शाम होते होते दूसरे उम्मीदवार का नाम सामने आ जाता है।

कैसे कटा हसन का टिकट

टिकट बदलने का सबसे दिलचस्प उदाहरण मुरादाबाद में सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार को लेकर सामने आया है। सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से मुरादाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के डॉक्टर एस. टी. हसन का नाम पहले से तय माना जा रहा था। वह पहले भी दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद उन्हें 3,97,720 वोट मिले थे। लिहाजा उनका टिकट तय था। समाजवादी पार्टी में उनके सबसे बड़े पैरोकार आज़म खान हैं। लेकिन सबको हैरान करते हुए अखिलेश यादव ने बीते गुरुवार को वहां हसन के बजाय नासिर क़ुरैशी को टिकट दे दिया। नासिर क़ुरैशी को टिकट मिलने की ख़बर आते ही मुरादाबाद में अखिलेश यादव शायद कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान प्रतापगढ़ी को जिताना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने बेहद कमज़ोर उम्मीदवार उतारा है। मुरादाबाद के गली मोहल्लों में हो रही यह चर्चा शायद लखनऊ में अखिलेश यादव तक पहुंच गई। उन्होंने आनन फानन में क़ुरैशी का टिकट काटकर हसन को दे दिया।

नासिर कुरैशी का टिकट कटने और एसटी हसन को मिलने का वाक़िया बेहद दिलचस्प रहा। सूत्रों के मुताबिक नासिर क़ुरैशी शुक्रवार शाम को अपनी उम्मीदवारी का फॉर्म 'ए' और पार्टी निशान का फॉर्म 'बी' लेकर लखनऊ से सड़क के रास्ते मुरादाबाद के लिए निकले। वह हरदोई पहुंचे ही थे कि उनके पास सपा मुख्यालय से फोन आया और उन्हें फौरन लौटकर अखिलेश से मिलने का फ़रमान सुनाया गया। लिहाज़ा वह फौरन यू टर्न लेकर लखनऊ की तरफ रवाना हो गए। उधर सपा मुख्यालय से एसटी हसन को भी फ़ौरन लखनऊ बुलाया गया। वह उस वक्त बरेली में थे। वहीं से सड़क के रास्ते लखनऊ निकल गए। नासिर कुरैशी अखिलेश यादव से मिले तो अखिलेश यादव ने उनसे वापस ले लिया और उन्हें पार्टी के लिए काम करने की नसीहत देकर वापस भेज दिया। एसटी हसन भी देर रात लखनऊ पहुंच गए थे। लेकिन उनकी मुलाक़ात शनिवार सुबह अखिलेश यादव से हुई और उन्हें पार्टी का टिकट मिल गया। 

अखिलेश यादव ने मुरादाबाद में ठीक उसी अंदाज में उम्मीदवार बदला है, जैसे मायावती बीएसपी के उम्मीदवार बदलती रही हैंं।

मामला राज बब्बर का

ग़ौरतलब है कि पहले मुरादाबाद में कांग्रेस ने राज बब्बर को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया था, राज बब्बर को कहीं ना कहीं डर था कि अगर सपा-बसपा गठबंधन शासन चुनाव मैदान में आता है तो वह शायद यहां अपनी जमानत भी नहीं बचा पाएंगे। पिछले चुनाव में रात भर के साथ गाजियाबाद में भी ऐसा ही हुआ था। वह बीजेपी के वी. के. सिंह के सामने दो लाख से ज्यादा लाए थे, लेकिन उनकी ज़मानत भी नहीं बच पाई थी। चार-पांच साल में जज्बाती शायरी के ज़रिए मुसलमानों में लोकप्रिय हुए इमरान प्रतापगढ़ी मुरादाबाद से चुनाव लड़ना चाहते थे। इमरान प्रतापगढ़ी को यह गुमान है कि जैसे 2009 में कांग्रेस के टिकट पर अज़हरुद्दीन हैदराबाद से आकर मुरादाबाद से चुनाव जीते थे, उसी तरह मुरादाबाद की जनता उन्हें भी सर आंखों पर बैठेगी। इमरान की इच्छा देखते ही उनके लिए सीट छोड़ी और ख़ुद फ़तेहपुर सीकरी के लिए निकल लिए।

बिजनौर में यह चर्चा आम है कि सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद बसपा में इस टिकट के लिए बोली लग रही थी। लिहाज़ा जिसकी बोली ऊपर पहुंची उसी को टिकट मिल गया। बीएसपी ने बिजनौर की बगल वाली अमरोहा लोकसभा सीट पर भी इसी तरह के उम्मीदवार बदले हैं। वहां जियाउद्दीन अंसारी पिछले एक साल से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन आख़िरी वक़्त में मायावती ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के क़रीबी कुंवर दानिश अली को इस सीट से बसपा का उम्मीदवार बना कर चुनाव मैदान में उतारा है।

मायावती का बार-बार उम्मीदवार बदलने का पुराना रिकॉर्ड रहा है। इस बार भी उन्होंने ज़्यादातर सीटों पर कई बार उम्मीदवार बदले हैं। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन होने के बाद बीएसपी में टिकट माँगने वालों में होड़ मची हुई है।

दिलचस्प बात यह है कि बिजनौर में 40% मुसलिम मतदाता हैंं। यहां मुसलिम समाज ने गठबंधन पर मुसलमान उम्मीदवार उतारे जाने का दबाव बनाया था। मुसलमानों की इसी भावना को भुनाने के लिए कांग्रेस ने कभी बसपा में दिग्गज नेता रहे नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को चुनाव मैदान में उतारा है, हालांकि इससे पहले कांग्रेस ने इंदिरा भाटी को टिकट दिया था। जब कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा कि मुसलिम उम्मीदवार उतार कर यहां मुसलमानों का वोट लिया जा सकता है, तो उन्होंने ने ऐन वक़्त पर इंदिरा भाटी का टिकट काटकर नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को चुनाव लड़ने भेज दिया। कांग्रेस ने शुक्रवार को जारी की गई स्ट में उत्तर प्रदेश में एक और टिकट बदला है। महाराजगंज सीट पर पहले तनुश्री त्रिपाठी को टिकट दिया गया था, अब उनका टिकट काट कर यहां सुप्रिया श्रीनेत को टिकट दिया गया है।

उम्मीदवार बदलने के मामले में बीजेपी भी पीछे नहीं रही है बीजेपी ने जहां अपने दर्ज़न भर से ज्यादा सांसदों के टिकट काटे हैं, वहींं मेनका गांधी और वरुण गांधी की सीट आपस में बदली है। इसे लेकर भी सियासी गलियारों में काफी चर्चा है। सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस में इस बार जिस तरह आखिरी वक़्त में उम्मीदवार बदले जा रहे हैं। उससे इन दोनों में बेचैनी साफ झलकती है। हालांकि इससे यह गलत संदेश जा रहा है की सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस के पास बीजेपी को हराने की को ठोस रणनीति नहीं है। दोनो ही उम्मीदवारों के जातीय गणित पर ज्यादा तवज्जो दे रहे हैंं। इसीलिए आखिरी वक़्त में उम्मीदवारों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जा रहा है। कई सीटों पर आख़िरी समय उम्मीदवारों बदलना इन दोनों को भारी भी पड़ सकता है।

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