चीन-अमेरिकी व्यापार युद्ध का फ़ायदा उठा सकता है भारत?
चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने के हालिया अमेरिकी फ़ैसले से कई सवाल खड़े हो गए हैं। डोनल्ड ट्रंप ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि वह चीन से होने वाले आयात पर 5 प्रतिशत का अतिरिक्त आयात कर लगाने जा रहे हैं। उन्होंने पहले ही 25 प्रतिशत कर लगाने का एलान कर रखा था। इस तरह चीनी उत्पादों पर अमेरिका में 30 प्रतिशत आयात शुल्क लग गया। इससे चीनी उत्पादों का अमेरिकी बाज़ार में टिकना लगभग नामुमकिन हो गया है।
'चीन से बोरिया-बिस्तर समेटें अमेरिकी कंपनियाँ'
लेकिन डोनल्ड ट्रंप यहीं नहीं रुके। उन्होंने इसके थोड़ी देर बाद ही अमेरिकी कंपनियों से कहा कि वे अपना कामकाज चीन से समेटने की तैयार करें। उन्होंने कहा, 'हमारी महान अमेरिकी कंपनियों को तुरन्त यह आदेश दिया जा रहा है कि वे चीन का विकल्प ढूंढना शुरू कर दें, वे अपनी कंपनियों को घर लाने लाएँ और अमेरिका में अपने उत्पाद बनाएँ।'ट्रंप ने ट्वीट कर कहा, 'हमारे देश ने कई सालों में मूर्खतापूर्ण तरीके से खरबों डॉलर चीन के साथ गँवाया है। उन्होंने कहा कि हर साल अरबों डॉलर की हमारी बौद्धिक संपदा चीन ने चुरा ली है। मैं अब ऐसा नहीं होने दूँगा। हमें चीन की ज़रूरत नहीं है।'
Our Country has lost, stupidly, Trillions of Dollars with China over many years. They have stolen our Intellectual Property at a rate of Hundreds of Billions of Dollars a year, & they want to continue. I won’t let that happen! We don’t need China and, frankly, would be far....
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) August 23, 2019
भारत कहाँ खड़ा है?
सवाल यह है कि इस लड़ाई में भारत कहाँ खड़ा है? क्या दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की इस लड़ाई में भारत को फ़ायदा होगा? लेकिन इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत यह फ़ायदा उठा पाएगा या यूँ कहे कि क्या भारत फ़ायदा उठाने लायक है?
क्या 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का दावा करने वाली सरकार अपनी नीतियों में ऐसा बदलाव करेगी कि अमेरिकी कंपनियाँ चीन से बोरिया बिस्तर समेत कर भारत चली आएँ?
चीन हर साल 250 अरब डॉलर के उत्पाद अमेरिका को निर्यात करता है। इसका बड़ा हिस्सा कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिक उद्योग से जुड़े हुए उत्पादों का है। हाल ही में बड़ी अमेरिकी कंप्यूटर कंपनियों, डेल, एचपी, इन्टेल, एप्पल और सोनी ने राष्ट्रपति से कहा कि घरेलू कंपनियाँ चीनी कल पुर्जों पर पूरी तरह निर्भर हैं।
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उत्पादन कंपनियों को चीन से अमेरिका लाने या किसी तीसरे देश से माल खरीदने से सप्लाई लाइन बुरी तरह प्रभावित होगी, जितना टैक्स लगाया गया है, यह उससे भी महँगा साबित हो सकता है, क्योंकि वैसे भी अमेरिकी कंपनियाँ बेहद कम मार्जिन पर काम कर रही हैं।
माइक्रोसॉफ़्ट, सोनी और नाइनटेन्डो की रिपोर्ट
ट्रंप ने कहा, 'मैं चाहता हूँ कि एप्पल अपना संयंत्र अमेरिका में ही लगाए। मैं नहीं चाहता कि वे अपने उत्पाद चीन में बनाएँ।'
भारत को फ़ायदा?
अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग भी बुरे हाल में ही है। ट्रंप प्रशासन इस कोशिश में है कि डेस्कटॉप, स्मार्ट स्पीकर, टीवी, प्रिंटर और सॉलिड स्टेट मेमोरी ड्राइव के आयात पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगा दें।
क्या भारत इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की स्थिति में है, यह सवाल लाज़िमी है। क्या भारतीय इलेक्ट्रॉनिक उद्योग टेलीविज़न या उससे जुड़े उत्पादों, प्रिंटर, स्पीकर वगैरह अमेरिका को चीन से कम कीमत पर तैयार कर सकता है?
मुमकिन नहीं!
पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह मुमकिन नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर चीनी कंपनियाँ अभी भी सरकारी हैं या सरकारी नियंत्रण में हैं, जहाँ उन्हें कई तरह की मदद मिलती है, मसलन सस्ते में ज़मीन, बिजली, परिवहन। श्रम अभी भी चीन में सस्ता ही माना जाता है, हालाँकि वह पहले से महँगा हुआ है।क्या भारत इस स्थिति में है कि अमेरिकी कंपनियाँ मजबूरी में भी चीन छोड़ कर यहाँ आएँ? पर्यवेक्षकों का कहना है कि बेहद मुश्किल है, बहुत ही चुनौती भरा है। यह लगभग नामुमिकन है। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत में अभी भी व्यापारियों को कामकाज में दिक्कत होती है, यहाँ अभी नियम क़ानून बहुत अधिक 'बिज़नेस फ्रेन्डली' नहीं हैं। अधिकतर जगहों पर बिजली की कमी है, सड़कें अभी भी बहुत अच्छी नहीं हैं। बंदरगाों पर 'वेटिंग टाइम' बहुत अधिक होता है।
भारत के साथ एक बड़ी बात सस्ता श्रम है। इसके अलावा लोग अंग्रेजी जानते हैं, राजनीतिक स्थिरता है, क़ानून अभी भी पश्चिमी प्रणाली आधारित हैं। लेकिन इन्डोनेशिया, वियतनाम और फिलीपीन्स जैसे देशों में श्रम ज़्यादा सस्ता है। वियतनाम के बंदरगाह बेहतर हैं तो फ़िलीपीन्स के लोग अंग्रेजी जानते हैं।
लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी से फिसलती जा रही है, हर क्षेत्र में मंदी है, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग कम होती जा रही है। ऐसे में यहाँ कौन आए और क्यों आए, सवाल यह है। इसलिए भारत चाह कर भी चीन-अमेरिका लड़ाई का फ़ायदा नहीं उठा सकता है।