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द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत 14 गुनी कैसे बढ़ी? जानें क्या है ऑडिट में

द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत 14 गुनी कैसे बढ़ी? जानें क्या है ऑडिट में

किसी भी परियोजना की लागत कितनी बढ़ सकती है? दोगुना, चार गुना या आठ गुना? द्वारका राजमार्ग की लागत आख़िर 14 गुना कैसे बढ़ गई?

द्वारका राजमार्ग चर्चा में है। इसलिए कि इसकी लागत बहुत ज़्यादा बढ़ गई है। ऐसा सरकार के ऑडिट में ही पता चला है। सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र की भारतमाला परियोजना चरण -1 के तहत निर्मित द्वारका राजमार्ग की लागत 14 गुना बढ़ गई है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति यानी सीसीईए द्वारा अनुमोदित राशि प्रति किलोमीटर 18.20 करोड़ रुपये थी। लेकिन इसको 250.77 करोड़ प्रति किलोमीटर की 'बहुत अधिक' लागत पर बनाया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली और गुरुग्राम के बीच एनएच-48 को समानांतर रूप से चलने वाले 14-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग में विकसित करके भीड़भाड़ कम करने को प्राथमिकता दी गई। सीएजी की इस रिपोर्ट के बाद मोदी सरकार पर राजनीतिक हमले होने लगे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा है कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के 75 वर्ष के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। 

रिपोर्ट में अप्रैल 2022 से इस पर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए कहा गया है, 'द्वारका एक्सप्रेसवे को अंतर-राज्यीय यातायात की सुचारू आवाजाही की अनुमति देने के लिए न्यूनतम प्रवेश निकास व्यवस्था के साथ आठ-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। यही ऊंची लागत का कारण बताया गया।'

लेकिन सीएजी ने कहा है कि 55,432 यात्री वाहनों के औसत दैनिक यातायात के लिए आठ लेन (एलिवेटेड लेन) की योजना-निर्माण का रिकॉर्ड पर कोई औचित्य नहीं था। 2,32,959 यात्री वाहनों के औसत वार्षिक दैनिक यातायात के लिए केवल छह लेन (ग्रेड लेन पर) की योजना बनाई गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एकमात्र राजमार्ग नहीं है जिसकी स्वीकृत लागत और वास्तविक लागत में अंतर है। एनडीटीवी ने सीएजी रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि इससे पता चला कि पूरे भारत में भारतमाला परियोजना के तहत वास्तविक लागत स्वीकृत लागत से 58 प्रतिशत अधिक थी।

26,316 किमी की परियोजना की स्वीकृत लागत 8,46,588 करोड़ रुपये यानी 32.17 करोड़ रुपये प्रति किमी थी, जबकि सीसीईए द्वारा अनुमोदित 34,800 किमी की लंबाई की लागत 5,35,000 करोड़ यानी 15.37 करोड़ रुपये प्रति किमी थी।

बढ़ती लागत के बावजूद, 34,800 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग 2022 की तय समय सीमा में पूरा नहीं हो पाया है। 31 मार्च 2023 तक केवल 13,499 किमी राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई पूरी की गई है, जो सीसीईए द्वारा अनुमोदित लंबाई का 38.79 प्रतिशत है। 

एनडीटीवी ने सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि विसंगतियाँ सिर्फ फंड प्रबंधन में ही मौजूद नहीं थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां तक कि सीसीईए द्वारा तय किए गए मूल्यांकन और अनुमोदन तंत्र का भी सख्ती से पालन नहीं किया गया। सीएजी ने कहा कि यहां सफल बोलीदाताओं द्वारा निविदा शर्तों को पूरा नहीं करने या फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बोलीदाताओं का चयन किए जाने के मामले थे। 

इसमें कहा गया है कि कार्यान्वयन एजेंसियां अभी भी अपेक्षित भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित किए बिना परियोजनाएं आवंटित कर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप परियोजनाओं का निर्माण शुरू होने और उनके पूरा होने में देरी हो रही है। इसके अलावा, कई भारतमाला परियोजनाएं निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए पर्यावरण मंजूरी के बिना कार्यान्वित की जा रही थीं।

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