केंद्र सरकार के बही-खातों से पैसे कहां गए? जानिए सीएजी की रिपोर्ट
केंद्र सरकार के बही-खातों पर सीएजी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। इसने कर्ज की राशि को बही-खातों में दिखाने में हेरफेर किए जाने से लेकर, रुपये प्राप्ति और ख़र्च में अंतर, नियमों की अनदेखी कर पब्लिक फंड का पैसा चालू खाते में रखने तक की रिपोर्ट दी है। इसने कहा है कि जिस मक़सद से लेवी और उपकर लगाकर जनता से पैसे उगाहे गए उसके लिए उस पैसे का इस्तेमाल नहीं किया गया। रिपोर्ट में यहाँ तक कहा गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार और उसके लेखाकारों ने सार्वजनिक धन के गुप्त भंडार के रूप में जगहें बना ली हैं।
पिछले महीने आई सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार के खातों में कुछ गड़बड़ है। इसने यह भी कहा है कि उस स्थिति को बहुत लंबे समय तक खराब रहने दिया गया है और गड़बड़ी को दुरुस्त करने का कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फंड को वित्त पोषित कार्यक्रमों और संसद द्वारा अनुमोदित नकदी निधि से उन उद्देश्यों के लिए निकाला गया है जिसके बारे में सरकार बताने से इनकार करती है। सीएजी ने पहले की रिपोर्टों में भी सरकार की बहीखाता प्रणालियों के बारे में कई तीखी टिप्पणियाँ की हैं।
टेलीग्राफ़ की रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए केंद्र सरकार के खातों से संबंधित सीएजी की रिपोर्ट संख्या 21 में 'खातों की गुणवत्ता और वित्तीय रिपोर्टिंग प्रथा' शीर्षक वाला 27 पेज का अध्याय केंद्र सरकार के खातों में अपनाए गए तौर तरीक़ों पर चौंकता है।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार सीएजी ने इसमें जो प्रमुख गड़बड़ियाँ बताई हैं उनमें कर्ज से जुड़ी रक़म से लेकर लेवी और उपकर के रुपये तक शामिल हैं-
- सरकार के खातों में हेराफेरी विदेशी कर्ज को लेकर शुरू होती है। इसकी गिनती पुराने विनिमय दर पर 4.39 लाख करोड़ रुपये की गई थी। यह 2003 के राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन यानी एफआरबीएम अधिनियम में दी गई परिभाषा के विपरीत है। इस परिभाषा के अनुसार मौजूदा विनिमय दर पर सरकार विदेशी ऋण का मूल्यांकन करती तो यह बढ़कर 6.58 लाख करोड़ रुपये हो जाता। इसका मतलब यह हुआ कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए सरकार के खातों में विदेशी ऋण का मूल्य 2.19 लाख करोड़ रुपये कम दिखाया गया।
- केंद्र द्वारा जुटाए गए लेवी और उपकर के पैसे या तो बेकार पड़े हैं या फिर अन्य दूसरे मक़सद के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। यह उन शर्तों का उल्लंघन है जिनके तहत उपकर को जुटाया जाता है। यह वह पैसा है जिन्हें केंद्र सरकार राज्यों के साथ साझा करने के लिए बाध्य नहीं है। उपकर एक खास मक़सद के लिए सरकार द्वारा लगाया गया एक अतिरिक्त कर है और शुरू में भारत के समेकित कोष में रखा जाता है।
- हेरफेर वाले लेखांकन, सरकारी खातों के बाहर धनराशि जमा करने और केंद्र के भुगतान दायित्वों को जानबूझकर कम देनदारी दिखाने के लिए दबाए जाने या फ़ुटनोट में छिपाए जाने के कई उदाहरण हैं। सीएजी का दावा है कि यह केंद्र सरकार के वित्त की पूरी तस्वीर का खुलासा नहीं करता है। 2021-22 में सरकार ने 258 फुटनोट का इस्तेमाल किया। इससे दो साल पहले 2019-20 में उसने 254 का इस्तेमाल किया था।
- सरकार यह नहीं जानती है या वह सीएजी को दिए गए दस्तावेज़ों में यह नहीं बताती है कि राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों की इक्विटी में कितना निवेश किया है और उनसे लाभांश के रूप में कितना जुटाया है। राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों में सरकार द्वारा रखे गए इक्विटी शेयरों की संख्या को लेकर चौंकाने वाला अंतर है। सीएजी को दिए गए वित्तीय खातों के विवरण और उन्हीं संस्थाओं द्वारा पेश वार्षिक खातों में यह अंतर पता चला है।
- दूरसंचार विभाग में भी अनियमितताएं दिखीं। टेलीकॉम ऑपरेटर सरकार को अपने समायोजित सकल राजस्व का 8 प्रतिशत राजस्व लाइसेंस शुल्क के रूप में भुगतान करते हैं। इसमें से 5 प्रतिशत एक सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि यानी यूएसओएफ को और 3 प्रतिशत सामान्य सरकारी खजाने को जाता है। सीएजी ने पाया कि सरकार ने टेलीकॉम लेवी से 10,376 करोड़ रुपये जुटाए लेकिन यूएसओएफ को केवल 8,300 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए। बाकी कहां गए? सरकार ने नहीं बताया।
अंग्रेजी अखबार ने कुछ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स से संपर्क किया लेकिन वे इस बात पर टिप्पणी करने से कतरा रहे हैं कि सरकार किस तरह अपना हिसाब-किताब रखती है। इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के एक पूर्व अध्यक्ष ने नाम न छापने की शर्त पर टेलीग्राफ़ से कहा, 'सीएजी के पास कंपनी अधिनियम की धारा 143(6)(ए) और उसकी टिप्पणियों सहित पूरक ऑडिट की मांग करने का अधिकार है। महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ, सरकारी कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट के साथ संसद के समक्ष रखी जा सकती हैं। इसके बाद विपक्ष इस मामले को उठा सकता है और सरकार से जवाब मांग सकता है।'