सीएजी ने रफ़ाल पर अपनी रिपोर्ट ऑनलाइन शेयर क्यों नहीं की?
कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटल जनरल (सीएजी) की रफ़ाल सौदों पर बनी रिपोर्ट में ऐसा क्या है जो सरकार इसे आम जनता से छुपा रही है आख़िर क्या वजह है कि संसद में पेश होने और इसके आम जनता के बीच रखे जाने के दावे के बावजूद सीएजी ने इसे ऑनलाइन नहीं किया है सीएजी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर तमाम रिपोर्टें डाल रखी हैं, पर सबसे ज़्यादा विवादों में रहने वाली रिपोर्ट वहाँ नहीं है। जिस रिपोर्ट में लोगों की दिलचस्पी सबसे अधिक है, वही सीएजी की वेबसाइट से ग़ायब है तो ये सवाल उठना लाज़िमी है।
1572 रिपोर्ट, रफ़ाल नहीं
सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में विपक्ष के विरोध और शोरशराबे के बीच 59 हज़ार करोड़ रुपये के लड़ाकू विमान सौदे से जुड़ी रिपोर्ट पेश कर दी। इसके साथ ही यह दस्तावेज़ आम हो गया। अब देश का कोई भी नागरिक इसे देख सकता है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि इस दस्तावेज़ को उस जगह रखा जाए जहां तक आम जनता की आसान पहुँच हो। ज़ाहिर है, वह जगह सीएजी की वेबसाइट है। सीएजी की वेबसाइट पर इस समय 1572 रिपोर्टें हैं, बस सबसे ज़रूरी रिपोर्ट नहीं है।रफ़ाल और सीएजी: रफ़ाल पर सीएजी, एजी को बुला कर पूछेंगे - खड़गे
सीएजी ने बीते साल अक्टूबर में एक आंतरिक दिशा-निर्देश जारी कर पहले से अपोलड रक्षा विभाग से जुड़ी कुछ रिपोर्टों के कुछ पैराग्राफ़ हटा देने को कहा था। उसने यह आदेश भी दिया था कि रक्षा विभाग से जुड़ी प्रेस रिलीज़ और दूसरे काग़ज़ात भी हटा दिए जाएँ। उसके बाद से रक्षा विभाग से जुड़ी कोई रिपोर्ट सीएजी की वेबसाइट पर नहीं डाली गई है।
सीएजी के सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय ने सीएजी से कहा है कि वह उससे जुड़ी रिपोर्ट ऑनलाइन न करे। इसकी वजह देश की सुरक्षा बताई गई और यह कहा गया कि संवेदनशील जानकारियाँ आम न हों।
रक्षा मंत्रालय ने सीएजी से यह जिस समय कहा और सीएजी ने उसकी सलाह पर अपनी वेबसाइट पर रिपोर्ट नहीं डालने का निर्देश जिस समय जारी किया, वह बेहद दिलचस्प है। यह वह समय था जब रफ़ाल सौदा राजनीतिक रूप ले चुका था, कांग्रेस ने इसे हाथोंहाथ लपक लिया था और राहुल गाँधी इस मुद्दे पर बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री को घेरने लगे थे। लगभग इसी समय राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री पर रफ़ाल सौदे में निजी तौर पर भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप भी लगाया था। उन्होंने इसी समय 'चौकीदार चोर है' और 'मेरा पीएम चोर है' जैसे नारे उछाल दिए थे।
तो क्या रफ़ाल से जुड़ा कच्चा चिट्ठा आम जनता तक न पहुँचे, इसके लिए पहले ही सरकार ने देश की सुरक्षा का हवाला देकर सीएजी पर दबाव बना लिया था, यह सवाल अहम है।
शर्मिदा करने वाली जानकारियाँ छुपाएँ
यह सवाल महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि जो जानकारियाँ सरकार के दावों की पोल खोलती हों और उसे शर्मिंदा करती हों, वे आम जनता तक न पहुँचें, इसके लिए इस सरकार ने निष्पक्ष समझी जाने वाली संस्थाओं और एजेंसियों पर भी दबाव डाले। भारतीय रिज़र्व बैंक ने नोटबंदी के ढाई साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आज तक यह नहीं बताया है कि नोटबंदी की वजह से कितना पैसा सर्कुलेशन के बाहर रह गया, जो काला धन था। इसी तरह सरकार की किसी एजेन्सी ने यह नहीं बताया है कि बीते चार साल में कुल कितना काला धन विदेशों से लाया गया है। किसी एजेन्सी ने यह भी नहीं बताया है कि स्विस बैंक में किन भारतीयों के खाते हैं और उनमें कितने पैसे फँसे पड़े हैं।संस्थानों पर दबाव: अब रिज़र्व बैंक को भी 'सरकारी तोता' बनाने की कोशिश
हद तो तब हो गई जब वाणिज्य-व्यवसाय से जुड़े अख़बार 'बिज़ेस स्टैंडर्ड' ने यह ख़बर दी कि बेरोज़गारों की तादाद देश में 45 साल में सबसे ज़्यादा है। अख़बार ने नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस और सांख्यिकी आयोग का हवाला देते हुए यह ख़बर की थी। उसके तुरन्त बाद नीति आयोग ने कह दिया कि सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट अंतिम नहीं है, सिर्फ मसौदा है। नीति आयोग के कहने का मतलब यह था कि चूँकि यह संख्या अंतिम रिपोर्ट का हिस्सा नहीं है, इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन नीति आयोग के इस बयान से सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष पी.सी. मोहनन इतने आहत हुए कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जब रिपोर्ट को सरकार ने स्वीकार कर लिया तो वह अंतरिम या मसौदा नहीं रह गई, वह अंतिम हो गई। इसी मुद्दे पर सांख्यिकी आयोग की जे. वी. मीनाक्षी ने भी मोहनन के साथ ही अपना इस्तीफ़ा सरकार को सौंप दिया।
सरकार झूठी है : बेरोज़गारी के आँकड़े ड्राफ़्ट नहीं फ़ाइनल रिपोर्ट के थे, मोहनन ने कहा
सीएजी की रिपोर्ट को संसद में पेश करना सरकार की मजबूरी है, वह संविधान से बँधी हुई है, वह ऐसा करने से इनकार नहीं कर सकती है। इसलिए सरकार ने इसे संसद में पेश किया। पर उसने यह तब पेश किया जब मौजूदा संसद का कामकाज ख़त्म होने को है। बजट सत्र के अंतिम दिन के एक दिन पहले इसे पेश किया गया और बजट सत्र के बाद मार्च में चुनाव की घोषणा होने के आसार हैं, यानी ग्रीष्मकालीन सत्र की संभावना बेहद कम है। सरकार ने इस पर कोई बहस नहीं होने दी और शोरशराबे के बीच मामला दब गया।
ऐसे में सीएजी की वेबसाइट पर इस रिपोर्ट को तो होना ही चाहिए था ताकि लोग वहां जाकर आसानी से देख सकें। सीएजी की वेबसाइट पर अभी भी रक्षा मंत्रालय से जुड़ी 46 रिपोर्टे पड़ी हुई हैं। ये थल सेना, नौसेना, वायु सेना, कोस्ट गार्ड, पेंशन, समेत तमाम विषयों पर हैं। बस रफ़ाल पर कुछ नहीं है!