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ग़रीबों को 10% आरक्षण पर कैबिनेट की मुहर

ग़रीबों को 10% आरक्षण पर कैबिनेट की मुहर

चुनाव के ऐन पहले कैबिनेट ने आार्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 फ़ीसद आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पर इससे जुड़े विधेयक को पारित होने में अभी लंबा समय लगेगा। 

नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दाखिले के लिए 10 फ़ीसद आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसमें सवर्ण समेत वे सभी लोग शामिल होंगे, जिन्हें अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। लेकिन इसका फ़ायदा वे लोग ही उठा सकेंगे, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम है। यह आरक्षण मौजूदा अधिकतम सीमा 50 फ़ीसद से ऊपर होगा। फ़िलहाल 49.5 प्रतिशत आरक्षण है, इसे बढ़ा कर 59.5 फ़ीसद करना होगा। कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर सोमवार को मुहर लगाई। 

मोदी सरकार का यह फ़ैसला आम चुनाव के ठीक पहले हुआ है। इसकी राजनीतिक वजह साफ़ है। समझा जाता है कि सवर्णों का बड़ा तबका भारतीय जनता पार्टी से नाराज़ है। यह नाराज़गी हिन्दी भाषी राज्यों में ज़्यादा मुखर हो सकती है। इस नाराज़गी को दूर करने की नीयत से कैबिनेट ने यह फ़ैसला लिया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी की हार के बाद कुछ लोगों का यह भी मानना था कि सवर्ण पार्टी से दूर हो गए। ऐसे में आम चुनाव के पहले कुछ करना ज़रूरी है। 

संविधान इजाज़त नहीं देता

समें एक बड़ा पेच फँसा हुआ है। संविधान में पिछड़े वर्गों के लिेए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। वहां आर्थिक आधार नहीं है। इसलिए कोई भी सरकार आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण दे ही नहीं सकती। इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। यह संशोधन भी संसद में दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। उसके बाद उस पर हर राज्य के विधानसभा की मुहर लगनी चाहिए। सवाल यह उठता है कि इतना सब कुछ क्या आम चुनाव की घोषणा से पहले किया जा सकता है। 

पर्यवेक्षकों का मानना है कि सत्तारूढ़ दल तमाम जातियों को साधने की जुगत में बुरी तरह फँस चुका है। एससी-एसटी उत्पीड़न निरोधक क़ानूून के मुद्दे पर ज़्यादातर सवर्ण नाराज़ हैं। इसके अलावा मोदी की आर्थिक नीतियों का असर शहर के मध्यम वर्ग पर पड़ा है। नोटबंदी से वे ख़ास तौर पर ग़ुस्से में थे। यह बीजेपी की 'कोर कॉन्सटीच्यूएन्सी' यानी वोट का मूल आधार है, पार्टी उसके छिटकने की आशंका से परेशान है। इसलिए वह उन्हें संतुष्ट करने के लिे यह आरक्षण लाने की बात कह रही है। 

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि यदि सरकार इसके लिए ज़रूरी संविधान संशोधन संसद में पेश करेगा तो उनकी पार्टी समर्थन करेगी, वर्ना यह समझा जाएगा कि मोदी सरकार चुनाव की वजह से ऐसा कर रही है। 

जुमला?

बीजेपी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके लेकिन फ़िलहाल नरेंद्र मोदी के ज़बरदस्त आलोचक यशवंत सिन्हा  ने इसे मोदी सरकार का एक और जुमला क़रार दिया है। उन्होंने कहा है कि इसमें ढेर सारी क़ानूनी पेचीदगियाँ हैं और सरकार चुनाव के पहले इसे दुरुस्त नहीं कर पाएगी। सरकार इससे पूरी तरह बेनक़ाब हो गई है। 

कांग्रेस का तंज

कांग्रेस के महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तंज करते हुए कहा, 'बहुत देर कर दी महरबान आते आते'। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे चाहे जो कर लें, जो जुमला ले आएँ, इस सरकार को कोई बचा नहीं सकता। 

साल 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन को लागू करने का ऐलान किया था, जिसके बाद देश के बड़े हिस्से में उसके पक्ष और विपक्ष में आंदोलन चल पड़ा। उसके बाद ही बीजेपी के लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली थी। इन दोनों ही घटनाओं का चुनाव पर असर पड़ा था। समझा जाता है कि बीजेपी अगले आम चुनाव के ऐन पहले एक मुद्दे को उछाल देना चाहती है, क्योंकि इसे पारित करवाने का समय पार्टी के पास नहीं है। वह सवर्णोें के बीच उनकी हितैषी होने का संकेत दे पाएगी, लागू करवाना तो बाद की बात है। ज़्यादातर पिछड़ी जातियाँ पहले से आरक्षण के तहत हैं। सवर्ण ही इससे बाह हैं, लिहाज़ा वह ग़रीबों के नाम पर सवर्णों को बताना चाहती है कि यह व्यवस्था उनके लिए ही है। 

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