असम-बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले बनेंगे सीएए के नियम
पश्चिम बंगाल और असम में होने वाले विधानसभा चुनावों के ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार समान नागरिकता क़ानून में संशोधन पारित करवाने की तैयारी कर रही है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में मंगलवार को गृह मंत्रालय ने कहा कि सीएए में संशोधन लोकसभा में 9 अप्रैल तक और राज्यसभा में 9 जुलाई तक पारित करवाने का लक्ष्य रखा गया है। संसद ने 10 जनवरी 2020 को ही सीएए पारित कर दिया।
सीएए
समान नागरिकता क़ानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन और पारसियों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इसमें मुसलमानों को जानबूझ कर छोड़ दिया गया है। इस कारण पूरे देश में इसका विरोध हुआ, दिल्ली समेत कई जगहों पर इसके ख़िलाफ़ आन्दोलन हुआ, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों ने बुरी तरह कुचल दिया।
क्यों अहम है यह मुद्दा?
कांग्रेस के लोकसभा सांसद वी. के. श्रीकंदन ने गृह मंत्रालय से पूछा था कि क्या सीएए से जुड़े नियम-क़ानून, उपनियम वगैरह अभी तक पारित नहीं करवाए गए हैं जबकि यह क़ानून लागू किया जा चुका है। इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि यह काम जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।
नियम यह है कि किसी अधिनियम के पारित होने के बाद उसके नियम-उपनियम वगैरह छह महीने के अंदर बन कर लागू हो जाने चाहिए। लेकिन इस मामले में अब तक यह नहीं बना है।
गृह मंत्री अमित शाह ने दिंसबर में कहा कि कोरोना संकट की वजह से ये नियम-क़ानून व उपनियम अब तक नहीं बन पाए हैं।
सीएए के नियम- उपनियम संसद से पारित कराने का मामला अहम इसलिए है कि पश्चिम बंगाल और असम में यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है और इन दोनों राज्यों में चुनाव हैं।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एलान कर रखा है कि उनके राज्य में सीएए किसी कीमत पर लागू नहीं किया जाएगा। बीजेपी ने इसे एक मुद्दा बनाने का फ़ैसला कर लिया है। उसके स्थानीय नेता ही नहीं, बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार कहा है कि वे सीएए को हर कीमत पर लागू करेंगे। इस राज्य में इस मुद्दे पर दोनों में टकराव तय है।
पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत है और लगभग सौ सीटों पर वे चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। वहाँ बीजेपी इस मुद्दे को उठा कर ध्रुवीकरण कराना चाहती है ताकि उसे हिन्दुओं के वोटों का बड़ा हिस्सा मिल सके।
असम
असम में यह मुद्दा अधिक संवेदनशील इसलिए है कि बांग्लादेश से सटे इस राज्य में बहुत बड़ी तादाद में लोग आकर बसे हैं जो अलग-अलग समय में आए हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा चुनाव में बांग्लादेश से आए लोगों को दीमक क़रार दिया था।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक असम के 3.50 करोड़ में से मुसलमानों की आबादी 1.30 करोड़ यानी लगभग 37 प्रतिशत है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के 27 में से 9 ज़िले मुसलिम-बहुल हैं।
असम के बरपेटा, धुबड़ी, करीमगंज, गोआलपाड़ा, बनगोईगाँव, हैलाकांडी और नगाँव में मुसलिमों की आबादी 38.5 प्रतिशत तो मोरीगावँ में 47.6 और दरांग में 35.5 प्रतिशत मुसलमान हैं।
राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से कम से कम 70 सीटों में मुसलमान निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है ताकि वह हिन्दुओं का अधिक से अधिक वोट उसे मिल जाए और वह ज़्यादा से ज्यादा सीटें जीत ले।