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…वर्ना हम सभ्य कहलाने का हक़ पूरी तरह से खो देंगे!

…वर्ना हम सभ्य कहलाने का हक़ पूरी तरह से खो देंगे!

मुसलिम महिलाओं के ख़िलाफ़ अभद्र और ओछी टिप्पणियां जारी हैं। पिछले साल सुल्ली डील के बाद अब बुल्ली डील एप के जरिये उनकी नीलामी का काम किया जा रहा है। 

अगर हमने सोचा था कि नया साल शुभ और सुंदर के भावों के साथ उदित होगा तो हम भूल कर रहे थे। हमने नए साल में गए सालों की कीच और गंदगी में लिथड़ी हुई आत्मा के साथ ही प्रवेश किया है। नवीनता की ख़ुशफ़हमी हम न पाल लें, यह निश्चित करने के लिये एक गिरोह ने ट्विटर पर मुसलमान औरतों की नई नीलामी शुरू कर दी। मैं इस नीलामी का नाम नहीं लिखना चाहता लेकिन हमें अपनी अश्लीलता का सामना करना ही चाहिए। 

नई इसलिए कहा कि पिछले साल भी इसी तरह की एक नीलामी चलाई गई थी। पिछले साल यह सुल्ली डील के नाम से चलाई गई थी, इस बार बुल्ली डीलनाम दिया गया है।

जो सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर मुखर रहती हैं, ऐसी युवा मुसलमान महिलाओं के चित्रों, या विकृत चित्रों के साथ यह नीलामी लगाई गई थी। हिंदुओं को यह कहते हुए कि ये महिलाएँ उनके लिए उपलब्ध हैं। जाहिरा तौर पर यह दिमाग़ी ऐय्याशी है। पोर्नोग्राफ़ी में सुख हासिल करनेवाले ही यह कर सकते हैं। लेकिन यह सिर्फ़ वह नहीं है।

यह कोई यों ही लफ़ंगों का छुट्टा गिरोह नहीं कर रहा है। और यह सिर्फ़ पोर्नोग्राफ़ी नहीं है। यह हिंदुत्व की हिंसक राजनीति में विश्वास करनेवाले और उसमें पूरी तरह सक्रिय लोगों के द्वारा किया जा रहा है। यह इससे ज़ाहिर है कि जिन औरतों की नीलामी लगाई जा रही है, वे सब मुसलमान हैं। उतना ही नहीं। वे सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर मुखर और सक्रिय हैं। उनमें से ज़्यादातर हिंदुत्व की राजनीति के विरुद्ध अपने अपने तरीक़े से संघर्ष कर रही हैं। उनमें पत्रकार हैं, छात्र, शोधार्थी हैं और राजनीतिक कार्यकर्ता भी। इनके चित्र सार्वजनिक करके हिंदुओं को यह बतलाना कि वे उनके लिए हैं, यह उन्हें सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने के लिए किया जा रहा है। 

शाहीन बाग़ पर टिप्पणी

यह भी न भूलिए कि शाहीन बाग़ आंदोलन  के समय मुसलमान औरतों के ख़िलाफ़ भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने घटिया प्रचार अभियान चलाया था। मीडिया ने उनका साथ दिया था। कहा गया था कि मुसलमान औरत 500 रुपए और बिरयानी लेकर शाहीन बाग़  धरने में शामिल हो रही हैं। इस प्रचार की अश्लीलता को भी गंभीरता से नहीं लिया गया था।

यह सब कुछ एक सुनियोजित हमला है। और उसी हिंदुत्व के सांगठनिक दायरे से किया जा रहा है जो मुसलमानों पर हिंसा के नए नए तरीक़े खोजता रहता है। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का आशीर्वाद प्राप्त है।

 - Satya Hindi

पत्रकारों ने बतलाया है कि यह हमला दूसरे ढंग से भी होता है। इसके पहले ख़ुद को नरसिंहानंद का शिष्य कहने वाले किसी कुणाल शर्मा ने अनेक मुसलमान लड़कियों, औरतों के फ़ोन नंबर सार्वजनिक करके  हिंदुओं को कहा कि वे उनके लिए उपलब्ध हैं। उसपर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। पकड़े जाने के भय से उसने कहना शुरू किया कि वह मानसिक रोगी है। संप्रदायवाद या मुसलमान विरोध मानसिक रोग है लेकिन वह अपराध भी है।

हम सब जानते हैं कि युद्ध या सामूहिक हिंसा के दौरान अपने दुश्मन समुदाय पर अपनी आख़िरी जीत साबित करने का पुराना तरीक़ा, जो आधुनिक युग में भी नहीं छोड़ा गया, उस समुदाय की औरतों पर क़ब्ज़ा करने का था। 

लेकिन इतना ही नहीं। उन्हें उस समुदाय के मर्दों के सामने अपमानित करके मर्दों को यह बतलाया जाता है कि तुम कितने लाचार हो कि यह देखने  को बाध्य कर दिए गए हो। इसे पूरे समुदाय का सर नीचा करने का आख़िरी कारगर तरीक़ा माना जाता रहा है।

आपको याद हो कि जम्मू कश्मीर को तोड़ देने और उसका राज्य का दर्जा छीन लेने के बाद पूरे भारत में हिंदुत्व में यक़ीन करनेवाले संगठनों ने यह प्रचार किया कि अब पूरे भारत के हिंदू कश्मीर में ज़मीन ख़रीद सकते हैं और कश्मीरी लड़कियों से शादी कर सकते हैं। 

ज़मीन की तरह ही औरत को एक निष्क्रिय वस्तु मानना जो आपके पैसे और बाहुबल पर हासिल की जा सकती है, यह घटिया विचार ही है इसके पीछे। लेकिन इसमें मुसलमान औरतों पर क़ब्ज़े का घिनौना ख़याल छिपता भी नहीं।

हिंदुओं में एक यौन हीन भावना कोई सौ साल से भी ज़्यादा के प्रचार से भर दी गई है। मुसलमान मर्द अधिक ताकतवरऔर वीर्यवान होते हैं और इसलिए हिंदू लड़कियाँ उनकी तरफ़ आकर्षित हो जाती हैं, ऐसा कहने और लिखने वाले आपको मिल जाएँगे। बहुत से हिंदू इसमें यक़ीन भी करते हैं। टी वी की एक चर्चा में हिंदुत्ववादी संगठनों में से एक एक प्रवक्ता ने जब कहा कि वे अपने सुंदर जवान हमारी लड़कियों पर डोरे डालने को भेजते हैं तो मैं हैरान रह गया। लेकिन शायद वे इसपर विश्वास भी करते हों। 

यह ख़याल कि ज़्यादा हिंदू लड़कियाँ उधर चली जाती हैं, बदले की भावना को जन्म देता है। अगर ऐसे नहीं तो आभासी तौर पर ही मुसलमान औरतों पर अपना क़ब्ज़ा दिखलाया जा सकता है। यही नहीं उन्हें चौराहे पर बेचा जा सकता है।

यह यौन असुरक्षा, हीनभाव और विकृति इस राजनीति से अभिन्न है। लेकिन जो अभी इंटरनेट पर किया जा रहा है, वह एक राजनीतिक हिंसा है। इसमें वैसी मुसलमान औरतें निशाना बनाई गई हैं, जो अपने समाज की तरफ़ से आत्मविश्वासपूर्वक बोल और लिख रही हैं। 

इस कुत्सित अभियान से बतलाया जा रहा है कि हिंदुत्व की राजनीति का विरोध करने का क्या नतीजा हो सकता है।

कई लोग इसे कुछ सरफिरों की करतूत मानकर नज़रअंदाज़ करने का मशविरा देते हैं। लेकिन जिसका अपमान हुआ है, वह यह मानकर ख़ामोश नहीं हो सकती। अगर वह ऐसा करे भी तो राज्य इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। यह अपराध है और अपराध की एक बार अनदेखी करने पर वह दुहराया जाता है। पिछले साल जब यह नीलामी हुई, दिल्ली पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। ध्यान दीजिए यह वही दिल्ली पुलिस है जिसने इंटरनेट पर टूलकिट साझा किये जाने  पर बंगलुरु जाकर गिरफ़्तारी कर ली थी। लेकिन मुसलमान औरतों के साथ इस सार्वजनिक दुराचार की खुद कोई नोटिस पुलिस ने नहीं ली। 

राष्ट्रीय महिला आयोग को यह आपत्तिजनक नहीं लगा। वह आयोग जो छोटे से छोटे बयान पर नोटिस जारी करता है, निष्क्रिय है। मानवाधिकार आयोग को इसमें मुसलमान औरतों के किसी अधिकार का हनन नज़र नहीं आया। मुसलमान औरत को मुसलमान होने और औरत होने के चलते यह सहना होगा, यह भारत की राजकीय संस्थाएँ कह रही हैं और यह भी कि  वे उसके साथ नहीं हैं।

जो तीन तलाक़ वाले क़ानून की तारीफ़ में लगे थे कि वह मुसलमान मर्दों के अत्याचार से मुसलमान औरतों की रक्षा के महान विचार से प्रेरित है उन्हें भी मुसलमान औरतों के इस सरेआम बेइज़्ज़ती में कुछ ख़ास ध्यान देने लायक़ बात नज़र नहीं आ रही है। जो इसमें ख़ुद मज़ा नहीं ले रहे, वे इसे सड़क पर होनेवाली शोहदेबाज़ी मानते हैं। 

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यह भी हम ध्यान  दें कि इस अश्लील हिंसक अभियान के पीछे उसी राजनीतिक दल के लोग हैं जो कहते  फिरते हैं कि अपनी बहू, बहन, बेटियों की विधर्मियों से रक्षा की राजनीति कर रहे हैं। जिन विधर्मियों के ख़िलाफ़ उनकी राजनीति है, उन समुदायों की औरतों के जीवन के अधिकार से उन्हें क्या लेना देना? 

मुसलमानों की मानवीयता को खंडित करने का और उन्हें हीन दिखलाने के जो हज़ार शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तरीक़े इस्तेमाल किए जा रहे हैं, यह उनमें से एक है। उन्हें गाली देने, गला काट देने, उनके धार्मिक ग्रंथ के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ करने के साथ इसे मिलाकर देखें। इसमें अवश्य ही स्त्री विरोध है, पितृसत्तात्मक दिमाग़ इसके पीछे है, लेकिन असल बात है मुसलमान विरोधी हिंसक दिमाग़। 

हम यह न कहें कि इसका विरोध इसलिए किया जाना चाहिए कि ये लोग हिंदू औरतों को भी ऐसे ही निशाना बनाएँगे। अगर ऐसा होगा भी तो हिंदू उसे बर्दाश्तकर लेंगे जैसा हाल में देखा गया जब कुछ हिंदू संतों ने भारतीय जनता पार्टी की महिला नेताओं के ख़िलाफ़ अश्लील भद्दी बातें कहीं।उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्योंकि मुसलमानों  के ख़िलाफ़ हिंसा का अधिक महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं। उसके लिए कुछ बर्दाश्त करना हो तो किया जा सकता है।

पुलिस पर सवाल 

पुलिस शायद अभी भी संविधान से प्रतिबद्ध है, मुसलमान विरोधी राजनीति से नहीं। अगर पुलिस तर्क दे रही है कि इस दुष्प्रचार का स्रोत पता करना मुश्किल है तो मान लेना चाहिए कि वह अयोग्य और निकम्मी है। लेकिन उसकी चुस्ती दूसरे अवसरों पर हम देख चुके हैं। इसका मतलब यह है कि वह इसे उसी तरह ध्यान देने लायक नहीं मानती जैसे मुसलमानों पर हिंसा को वह बुरा नहीं मानती। जैसे उसने खामोशी से मुसलमानों के जनसंहार के नारे सुने, उसके लिए रैली और सभा करने दी वैसे ही वह यह हिंसा भी होने दे रही है।

भारत सरकार ने क्या ट्विटर से कुछ कहा है? उसी सरकार ने, जिसने पिछले सालों में अपनी आलोचकों के खाते बंद करने के लिए ट्विटर को नोटिस दी थी, उसके अधिकारी पर मुक़दमा तक कर डाला था?

लेकिन भारत सरकार तो ऐसे राजनीतिक दल के हाथ है जो खुलेआम मुसलमानों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता हैं। उससे क्या उम्मीद? फिर भी पुलिस और न्यायपालिका के बारे में अब तक यह मानने को जी नहीं करता कि वे हिंदुत्ववादी हो चुकी हैं। 

मुसलमान औरतों के ख़िलाफ़ इस कुत्सा अभियान का हम सबको हर स्तर पर विरोध करना होगा। वरना हम सभ्य कहलाने का अधिकार पूरी तरह खो बैठेंगे। 

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