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बुलडोजरः सुप्रीम कोर्ट के 3 पूर्व जजों ने कहा - यह कानून का मजाक है, कोर्ट दखल दे

बुलडोजरः सुप्रीम कोर्ट के 3 पूर्व जजों ने कहा - यह कानून का मजाक है, कोर्ट दखल दे

सुप्रीम कोर्ट तीन पूर्व जजों, हाईकोर्ट के पूर्व जजों और कई कानूनविदों ने बुलडोजर से प्रदर्शनकारियों के घर गिराने का विरोध किया है। उन्होंने भारत के चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में इस मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया है। विरोधी की शुरुआत इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर के उस बयान से हुई थी, जिसमें उन्होंने सत्य हिन्दी के साथ बात करते हुए इसे गैरकानूनी बताया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों ने बुलडोजर से लोगों के घर गिराने की कार्रवाई को खारिज कर दिया है। इन तीन पूर्व जजों के अलावा 9 जाने-माने कानूनी विशेषज्ञों और एक्टिविस्टों ने इस कार्रवाई को कानून का मजाक बताया है। इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है। प्रयागराज में जेएनयू की छात्र नेता आफरीन फातिमा की मां परवीन फातिमा का घर गिराने के बाद देशभर में तमाम हस्तियों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। बुलडोजर राजनीति की शुरुआत यूपी से हुई, जिसे बीजेपी शासित एमपी, गुजरात, असम, त्रिपुरा आदि में अपनाया गया।

सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों और 9 प्रमुख लोगों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वो मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ राज्य के अधिकारियों द्वारा जिस तरह हिंसा और दमन का रास्ता अपनाया जा रहा है, उस पर दखल दें। उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारियों के घरों को तोड़ा जाना नामंजूर है। देश में कानून का शासन है। सुप्रीम कोर्ट से खुद संज्ञान लेने का अनुरोध किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इन पूर्व जजों में बी. सुदर्शन रेड्डी, वी. गोपाल गौड़ा और ए.के. गांगुली के अलावा, हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों और छह वकीलों के हस्ताक्षर हैं। यह पत्र 14 जून को लिखा गया है। 

प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने रविवार को जावेद अहमद की पत्नी के घर को बुलडोजर से गिरा दिया था। आरोप है कि जावेद कथित तौर पर 10 जून को नूपुर शर्मा की विवादास्पद टिप्पणी के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल थे। सहारनपुर में भी दंगा करने के आरोपी दो लोगों की कथित रूप से अवैध संपत्तियों को बुलडोजर से उड़ा गिरा दिया गया था।

जिस तरीके से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मिलकर कार्रवाई की है, उससे स्पष्ट है कि आरोपियों को न्यायिक दायरे से बाहर जाकर सजा (extra-judicial punishment) दी गई है।


- सुप्रीम कोर्ट के 3 पूर्व जज और 9 कानून विशेषज्ञ

यूपी पुलिस ने आठ जिलों से 333 लोगों को गिरफ्तार किया है और 10 जून के विरोध प्रदर्शन के लिए 13 एफआईआर दर्ज की हैं।

चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि पुलिस हिरासत में युवकों को लाठियों से पीटे जाने, प्रदर्शनकारियों के घरों को बिना किसी नोटिस या कार्रवाई के किसी कारण ध्वस्त किए जाने और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों को पुलिस द्वारा पीछा किए जाने और पीटे जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं, जो देश के दिल को हिला रहे हैं। 

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कथित बयानों में कार्रवाई को मंजूरी देना साबित करता है कि प्रदर्शनकारियों को प्रताड़ित करने के लिए अधिकारियों और पुलिस को प्रोत्साहित किया गया।


-सुप्रीम कोर्ट के 3 पूर्व जज और 9 कानून विशेषज्ञ

पूर्व जजों और कानूनविदों ने सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाया है कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में न्यायपालिका की योग्यता की परीक्षा होती है। न्यायपालिका अतीत में लोगों के अधिकारों की संरक्षक के रूप में विशिष्ट तौर पर उभरी है। पत्र में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेने वाली कार्रवाई के उदाहरणों का हवाला दिया गया है। जैसे 20202 में प्रवासी श्रमिकों को घर भेजने के लिए मजबूर किया गया था। लॉकडाउन और पेगासस स्पाइवेयर मामला।

इस पर हस्ताक्षर करने वालों में जस्टिस ए.पी. शाह, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और भारत के विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष शामिल हैं। छह वरिष्ठ वकील भी अपील का हिस्सा हैं - जिसमें पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, प्रशांत भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंद्र उदय सिंह, श्रीराम पंचू और आनंद ग्रोवर।

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