अखिलेश से मिले बीएसपी के 9 विधायक, एसपी में हो सकते हैं शामिल
उत्तर प्रदेश में 7 महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी प्रमुख मायावती अकेली पड़ती जा रही हैं। मंगलवार को हुए एक अहम सियासी घटनाक्रम में बीएसपी के 9 विधायकों ने एसपी मुखिया अखिलेश यादव से मुलाक़ात की। हालांकि ये सभी विधायक बीएसपी से निलंबित चल रहे हैं। इन विधायकों का जल्द ही एसपी में शामिल होना तय माना जा रहा है।
इन विधायकों के नाम असलम राइनी, असलम अली चौधरी, मुजतबा सिद्दीकी, हकीम लाल बिंद, हरगोबिंद भार्गव, सुषमा पटेल, वंदना सिंह, रामवीर उपाध्याय और अनिल सिंह हैं। 2017 में 19 विधायक वाली बीएसपी के पास उत्तर प्रदेश विधानसभा में महज सात विधायक रह गए हैं। इससे समझा जा सकता है कि मायावती ने किस रफ़्तार से विधायकों को निलंबित किया है।
वर्मा, राजभर को निकाला
सिर्फ़ विधायक ही नहीं बीएसपी प्रमुख ने बड़ी संख्या में वरिष्ठ नेताओं के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की है। हाल ही में उन्होंने विधानमंडल दल के नेता रहे लालजी वर्मा और पूर्व मंत्री राम अचल राजभर को निलंबित कर दिया था।
विधायक असलम राइनी ने एएनआई से कहा कि उन्हें मायावती से दिक़्कत नहीं है बल्कि पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा से है जिन्होंने राम अचल राजभर और लालजी वर्मा के साथ बुरा व्यवहार किया है।
राइनी ने कहा, “हम सभी लोग लाल जी वर्मा को अपना नेता मानते हैं और हम अभी 11 विधायक हैं, अगर एक और विधायक हमारे साथ आता है तो हम अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं।”
लालजी वर्मा जेपी आंदोलन के समय से ही राजनीति में सक्रिय हैं। लालजी वर्मा बीते दो दशक से बीएसपी में थे और माया सरकार में संसदीय कार्य मंत्री के पद पर भी रह चुके हैं जबकि राजभर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष और कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं। लालजी वर्मा व राजभर के निकाले जाने से अवध के इलाके में बीएसपी को बड़ा झटका लगा है।
कब शुरू हुआ था विवाद?
उत्तर प्रदेश में बीते साल राज्यसभा चुनाव के दौरान सात विधायकों ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का आरोप बीएसपी पर लगाया था और बीएसपी के राज्यसभा प्रत्याशी रामजी गौतम के नामांकन से नाम वापस ले लिया था। इन विधायकों ने रामजी गौतम के नामांकन पत्र पर बतौर प्रस्तावक हस्ताक्षर किए थे। हालांकि तब बीजेपी की मदद से बीएसपी एक राज्यसभा सीट झटकने में कामयाब हो गयी थी।
उसी दौरान मायावती ने एसपी के साथ मिलीभगत रखने के आरोप में विधायक असलम राइनी, असलम अली, विधायक मुजतबा सिद्दीकी, हाकिम लाल बिंद, हरगोविंद भार्गव, सुषमा पटेल और वंदना सिंह को निलंबित कर दिया था। तब भी ये विधायक अखिलेश यादव से मिले थे।
मायावती की राह मुश्किल!
मायावती ने एलान किया है कि उनकी पार्टी विधानसभा का चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी। 2019 के चुनाव में एसपी और आरलएडी के साथ मैदान में उतरने वालीं मायावती के लिए 2014 लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद ख़राब रहे हैं। हालांकि 2019 में उन्होंने गठबंधन की बदौलत 10 लोकसभा सीटें हासिल कर ली थीं।
लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीजेपी से मिलने वाली कठिन चुनौती को देखते हुए एक ओर अखिलेश यादव जहां कई छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं मायावती लगातार विधायकों-पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही हैं। कोई ऐसा दल भी नहीं है, जिसकी ओर मायावती गठबंधन के लिए हाथ बढ़ा सकें। ऐसे में उनकी सियासी राह मुश्किल नज़र आती है।
बता दें कि अखिलेश यादव ने एक बार फिर से गठबंधन की दिशा में क़दम बढ़ाया है। अखिलेश इससे पहले बीएसपी और कांग्रेस के साथ भी गठबंधन कर चुके हैं। आरएलडी के साथ चल रहे अपने गठबंधन में उन्होंने आज़ाद समाज पार्टी के अलावा कुछ और छोटे राजनीतिक दलों को जोड़ने की कवायद शुरू की है। क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि बीजेपी को हराने के लिए वोटों के बंटवारे को रोकना बेहद ज़रूरी है और यह काम गठबंधन ही कर सकता है।