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ऋषि सुनाक ब्रिटेन के पीएम: इंग्लैंड पर हिंदू राज!

ऋषि सुनाक ब्रिटेन के पीएम: इंग्लैंड पर हिंदू राज!

भारतीय मूल के ऋषि सुनाक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने पर नस्लीय टिप्पणियाँ क्यों की जा रही हैं और उनके धार्मिक 'कर्मकांड' की याद क्यों दिलाया जा रहा है? आख़िर वे कौन लोग हैं?  

कल से भारतीय सोशल मीडिया और मीडिया ऋषि सुनाक के इंग्लैंड में प्रधानमंत्री बन जाने पर एक नस्लीय जश्न में ओतप्रोत है। कुछ आलोचक सुनाक के पूर्वजों का शजरा खोलकर उसे वर्तमान के पाकिस्तानी हिस्से और पूर्व में ब्रिटिश हिंदुस्तान के इलाक़े का बाशिंदा बता रहे हैं। सुनाक के ऐसे सारे चित्र प्रचलन में आ गए हैं जिनमें वह कलावा बांध कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए नज़र आए हैं या गाय की पूजा कर रहे हैं।

ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय देशों की सेनाओं/व्यापारियों के हस्तक्षेप के चलते भारतीय मूल के असंख्य लोग पिछली सदियों में दुनिया के अनेक भूभागों में ले जाए गए/बसाए गए। हमारे समुद्र तटीय राज्यों केरल, तमिलनाडु, गुजरात से स्वयं भी व्यापारिक कार्यों के चलते असंख्य लोग पूर्वी एशिया और अफ्रीका में जा पहुंचे और जा बसे। इनकी आगे की पीढ़ियों ने तरक्की की पायदानों को फलांगा और मॉरीशस, ट्रिनिडाड टोबैगो, पुर्तगाल, मलेशिया, सुरीनाम, गुयाना आदि अनेक देशों में भारतीय मूल के लोग अनेकों बार शासनाध्यक्ष बने और बनते रहते हैं।

इंग्लैंड में ब्रिटिश हिंदुस्तान से गये अनेक पाकिस्तानी/भारतीय लंबे समय से अनेक राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर तैनात हुए हैं, प्रधानमंत्री पद पर पहुंचना इसी प्रक्रिया का क्रमिक विकास है। एक सभ्य और लोकतांत्रिक देश की यह नैतिक मज़बूरी भी थी। वहां भी धुर दक्षिणपंथियों को यह रास नहीं आया परन्तु भारत, पाकिस्तान आदि की तुलना में ब्रिटिश समाज में उनकी संख्या बेहद अल्पमत में है। 

आधुनिक शिक्षा और लोकतांत्रिक व्यवहार ने यूरोप के प्रमुख देशों में समाज के एक बड़े हिस्से में सहनशीलता और सौजन्यता को तार्किक आधार दिया है। मीडिया स्वतंत्र है और उसकी गुणवत्ता भी स्तरीय है। 

मानवीय मूल्यों में समाज की समझदारी भरी आस्था है इसलिए अतीत में चर्चिल के नस्लवादी उद्धरणों की मौजूदगी के बावजूद सुनाक के प्रधानमंत्री चुने जाने में कोई नस्लीय बाधा नहीं आई।

ऐसे मौक़े पर भारत में सोनिया गांधी के मामले में 2004-05 में भारतीय दक्षिणपंथी राजनयिकों और समाज की प्रतिक्रिया पर चर्चा का उभर आना स्वाभाविक ही है। हम घोषित तौर पर एक लोकतांत्रिक देश जरूर हैं लेकिन हमारे आचरण में लोकतंत्र अनुपस्थित है। हमारी सोच-समझ आचार-विचार सामंतवादी हैं। दकियानूसीपन, अफवाहबाजी, सामुदायिक घृणा, जातिगत विभाजन और कट्टरता हमारी मूल प्रवृत्ति है (सुनाक की जाति की खोज की मात्रा गूगल पर प्रमुख सर्च किया गया ऑप्शन है)! हमारे नेताओं में इन दुर्बलताओं को ख़त्म करने की लेशमात्र भी सदिच्छा नहीं है वरन् वे इससे राजनैतिक लाभ उठाने के सफल प्रतियोगी हैं।

सुनाक के लिए ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना एक पड़ाव है, प्रतिकूल परिस्थितियां हैं, आर्थिक और सामरिक चुनौती भयानक है, इसका सामना करने में सफल होना उन्हें स्थापित करेगा। 

फ़िलहाल भारत से हम सुनाक को दीपावली पर शुभकामनाएँ तो दे ही सकते हैं।

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