अनुच्छेद 370 पर आलोचना करने वाली ब्रिटिश सांसद को एयरपोर्ट से क्यों लौटाया?
जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में बदलाव की आलोचना करने वाली ब्रिटेन की सांसद डेबी अब्राहम्स को नई दिल्ली एयरपोर्ट से वापस लौटा दिया गया। इसके बाद उन्हें दुबई भेज दिया गया। हालाँकि रिपोर्टों में सरकारी सूत्रों के हवाले से कारण बताया गया है कि उन्हें इसलिए एयरपोर्ट से वापस भेज दिया गया क्योंकि उनका ई-वीजा वैध नहीं था। जबकि डेबी ने दावा किया है कि पिछले अक्टूबर ही उनको वीजा दिया गया था और यह अक्टूबर 2020 तक के लिए वैध था। इस कार्रवाई को सरकार की आलोचना करने से जोड़कर देखा जा रहा है। बता दें कि वह ब्रिटेन में ऑल पार्लियामेंट्री ग्रुप फ़ॉर कश्मीर की अध्यक्ष हैं। इस समूह ने अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद आधिकारिक लेटर लिखा था। इसमें सरकार की आलोचना की गई थी।
डेबी ने ट्वीट कर कहा है कि वह भारत में अपने रिश्तेदारों से मिलने आ रही थीं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके साथ एक भारतीय सहयोगी भी थे। उन्होंने लिखा, 'मैं सभी के लिए सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए एक राजनेता बनी। जब अन्याय और दुरुपयोग को नियंत्रित नहीं किया जाएगा तो मैं अपनी सरकार के साथ दूसरों को भी चुनौती देती रहूँगी।'
In response to some of the comments I was planning to visit Indian family in Dehli accompanied by my Indian aide. I became a politician to promote social justice & human rights FOR ALL. I will continue to challenge my own Government & others while injustice & abuse is unchecked https://t.co/YvCOPDmfeB
— Debbie Abrahams (@Debbie_abrahams) February 17, 2020
अब्राहम्स सोमवार सुबह क़रीब नौ बजे जब एयरपोर्ट पर पहुँचीं तो एयरपोर्ट अधिकारियों ने उन्हें टोका। उन्होंने दावा किया कि इमिग्रेशन अधिकारी यह नहीं बता पाए कि उनका ई-वीजा क्यों रद्द किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि बाद में अधिकारी ने मुझसे चिल्लाकर कहा कि 'मेरे साथ आओ' और मुझे डिपोर्टी सेल के पास ले जाया गया। डेबी ने कहा कि मेरे साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार हुआ।
यह मामला सामने आने पर कांग्रेस ने सरकार पर हमला किया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, 'अगर कश्मीर में सब ठीक है तो क्या सरकार को आलोचना करने वालों को ख़ुद आगे बढ़कर बुलाना नहीं चाहिए ताकि उनकी आशंकाओं को दूर किया जा सके। सिर्फ़ दब्बू एमईपी और शिष्टाचारी एम्बेसडेर को टूर कराने से बेहतर होता कि विषय से जुड़े संसदीय ग्रुप के प्रमुख को यात्रा कराते'
If things are fine in #Kashmir, shouldn't the Govt encourage critics to witness the situation themselves to put their fears to rest Instead of conducting tours for pliant MEPs &polite Ambassadors alone, surely the head of a ParliamentaryGroup on the subject is worth cultivating https://t.co/vMtcAXCDb9
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) February 17, 2020
पाँच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से ही देश और देश के बाहर सरकार की आलोचना हो रही है। अभी भी राज्य में कई तरह की पाबंदी लगी है। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में यह इसलिए किया गया है ताकि देश के बाक़ी हिस्से के साथ राज्य को एकीकृत किया जा सके ताकि घाटी में पूरा विकास हो सके। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि इंटरनेट और सूचना के दूसरे संसाधनों पर लंबे समय से पाबंदी लगी होने और परिवहन व्यवस्था के ठप होने से जम्मू-कश्मीर में पूरा जीवन ही अस्त-व्यस्त हो गया है। विकास की तो बात ही दूर है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राज्य के सभी ज़िलों में इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दिया है।
राज्य में बड़ी संख्या में नेताओं को अभी भी जेल में बंद रखा गया है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती के ख़िलाफ़ सख्त क़ानून एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाया गया है जिसमें बिना कारण बताए लंबे समय तक जेल में रखा जा सकता है।
इसको लेकर भी सरकार की काफ़ी आलोचना हुई। मानवाधिकार उल्लंघन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी आलोचना हुई है। हाल ही में अमेरिका की मुख्य राजनयिक एलिस वेल्स ने भारत सरकार से कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर में नज़रबंद किये गये नेताओं को रिहा करे। संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी इस मामले को उठाया गया था।
इसी बीच सरकार ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संदेश देने के लिए जम्मू-कश्मीर के दौरे भी प्रयोजित किए हैं। पिछले हफ़्ते ही भारत सरकार ने कई राजनयिकों को जम्मू-कश्मीर की यात्रा कराई है। इससे पहले भी 15 देशों के राजनयिकों को यात्रा कराई गई थी। हालाँकि स्वतंत्र रूप से यात्रा करने की अनुमति नहीं दिए जाने के कारण कुछ यूरोपीय देशों और अन्य ने वहाँ जाने से इनकार कर दिया था।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर महीने में भी कुछ यूरोपीय सांसदों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था, लेकिन वे राजनयिक नहीं थे। उनका दौरा विवादों में रहा था। उस दौरे पर सवाल उठे थे कि क्या यूरोपीय संसद के 27 सदस्यों का कश्मीर दौरा प्रायोजित था ये सवाल इसलिए उठे थे क्योंकि इन 27 में से 22 सांसद अपने-अपने देश की धुर दक्षिणपंथी पार्टियों के थे। वे प्रवासी विरोधी, इसलाम विरोधी, कट्टरपंथी, फ़ासिस्ट और नात्सी समर्थक विचारों के लिए जाने जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी थी कि ये सभी सांसद निजी दौरे पर थे, वे यूरोपीय संघ या यूरोपीय संसद की ओर से नहीं भेजे गए थे। तब यह भी आरोप लगाया गया था कि सरकार जम्मू-कश्मीर में बेहद ख़राब स्थिति के बावजूद दुनिया में अच्छी तसवीर भेजने के लिए कथित तौर पर इस दौरे को प्रयोजित किया था।
इसी बीच डेबी अब्राहम्स के दिल्ली एयरपोर्ट से लौटा देने के मामले को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि ऐसे मामलों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि किस तरह की बनेगी