ब्राजील: बोल्सोनारो समर्थकों का उपद्रव, इमरजेंसी घोषित
ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थकों के उपद्रव के बाद बिगड़े हुए हालात को देखते हुए मुल्क में 31 जनवरी तक इमरजेंसी लागू कर दी गई है। राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने राजधानी के केंद्रीय हिस्से को भी अगले 24 घंटे तक बंद रखने का आदेश दिया है। इसमें वह इलाका भी स्थित है जहां अहम सरकारी दफ्तर हैं। बताना होगा कि बोल्सोनारो के समर्थकों ने रविवार को राजधानी ब्रासीलिया में जबरदस्त उपद्रव किया था। उनके समर्थक संसद, राष्ट्रपति आवास और सुप्रीम कोर्ट में घुस गए और उन्होंने वहां जमकर तोड़फोड़ की थी।
गवर्नर को हटाया
बोल्सोनारो के समर्थकों के उपद्रव के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ब्रासीलिया के गवर्नर को 90 दिनों के लिए उनके पद से हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि बोल्सोनारो के समर्थकों को 24 घंटे के अंदर सभी जगह से हटाया जाए और सभी सड़कों और इमारतों को खोला जाए।
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने इसे फासीवादी हमला बताते हुए इसकी जमकर निंदा की है।
उपद्रव करने वाले बोल्सोनारो के समर्थकों की संख्या 3000 के आसपास बताई गई है। पिछले साल हुए राष्ट्रपति के चुनाव में लूला डी सिल्वा ने बोलसोनारो को हरा दिया था। राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद बोल्सोनारो ने इस चुनाव को चुनौती दी थी। उनके समर्थकों ने ब्राजील की सर्वोच्च चुनावी अदालत में शिकायत की थी और चुनाव परिणाम का वेरिफिकेशन कराए जाने की मांग की थी।
क्या कहना है समर्थकों का?
बोल्सोनारो के समर्थकों का कहना है कि इस चुनाव में धोखाधड़ी हुई थी और इसकी समीक्षा की जाए। चुनाव में लूला डी सिल्वा को 50.9 फीसद वोट मिले थे जबकि बोल्सोनारो को 49.1 फीसद वोट मिले थे। चुनाव में हार के बाद बोल्सोनारो ने आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ ब्राजील की अदालतों और चुनाव अधिकारियों ने साजिश की।बेहद खराब हालात को देखते हुए राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने राजधानी में 31 जनवरी तक सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया है। उपद्रवियों को सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति आवास, संसद से बाहर निकालने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और उन्हें हिरासत में ले लिया।
सेना के साथ हुई झड़प
बोल्सोनारो के समर्थकों को राजधानी में उपद्रव मचाते देख सेना को बुलाना पड़ा और सेना के साथ भी बोल्सोनारो के समर्थकों की जबरदस्त झड़प हुई। इस हिंसा के बाद बोलसोनारो की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं क्योंकि वह पहले से ही कई मुकदमों का सामना कर रहे हैं।
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, राष्ट्रपति ने उपद्रव करने वाले लोगों को नाजी करार दिया और कहा कि इन लोगों ने वह काम किया है जो ब्राजील के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि उन्हें उनके किए गए काम की सजा दी जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वह ब्रासीलिया में हुई हिंसा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा है कि सभी को लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करना चाहिए।
Deeply concerned about the news of rioting and vandalism against the State institutions in Brasilia. Democratic traditions must be respected by everyone. We extend our full support to the Brazilian authorities. @LulaOficial
— Narendra Modi (@narendramodi) January 9, 2023
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस उपद्रव की निंदा की है और इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है। बाइडेन ने कहा कि ब्राजील के लोकतांत्रिक संस्थानों को अमेरिका का पूरा समर्थन है।
I condemn the assault on democracy and on the peaceful transfer of power in Brazil. Brazil’s democratic institutions have our full support and the will of the Brazilian people must not be undermined. I look forward to continuing to work with @LulaOficial.
— President Biden (@POTUS) January 8, 2023
कैपिटल बिल्डिंग में हिंसा
बोल्सोनारो के समर्थकों के उपद्रव के बाद 6 जनवरी, 2021 को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के समर्थकों के द्वारा की गई हिंसा की घटना की याद ताजा हो गई है। ट्रंप ने 2020 में राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद चुनाव नतीजों को मानने से इनकार कर दिया था और अपने समर्थकों को कैपिटल बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए उकसाया था।
जो बाइडन को जीत का प्रमाण पत्र मिलने से पहले ट्रंप ने वाशिंगटन में एक रैली में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था। ट्रंप के भाषण के बाद उनके समर्थकों ने कैपिटल बिल्डिंग में घुसने की कोशिश की थी और हिंसा हुई थी। इस हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई थी।
इसी तरह बीते साल श्रीलंका में महंगाई और जरूरी चीजों की किल्लत से जूझ रहे लोग राष्ट्रपति आवास और संसद में घुस गए थे। हालात यह बन गए थे कि गोटाबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था और साथ ही देश छोड़कर जाना पड़ा था। गोटाबाया राजपक्षे के भाई और प्रधानमंत्री रहे महिंदा राजपक्षे को भी अपना पद छोड़ना पड़ा था।