किताबः क्या अटल को मोदी के मुद्दे पर 'मजबूर' किया गया
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस समय अपनी असहमति दर्ज कराना चाहते थे, जब भाजपा संसदीय बोर्ड ने गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने की उनकी मांग को भारी बहुमत से खारिज कर दिया। पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की नई बॉयोग्राफी में यह बात लिखी गई है।
एस नागेश कुमार द्वारा लिखित वेंकैया नायडू: ए लाइफ इन सर्विस में गुजरात दंगों के बाद के राजनीतिक घटनाक्रम को याद किया गया है। लेखक का कहना है कि उस समय भाजपा के शीर्ष नेता मोदी के पीछे खड़े थे। इस किताब का विमोचन पीएम मोदी ने पिछले रविवार को किया था।
किताब के मुताबिक वाजपेयी उस समय 'मनाली में छुट्टियां मना रहे थे। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू से मनाली जाकर वाजपेयी से मिलने का अनुरोध किया गया। तब तक अटल का मीडिया में बयान आ चुका था कि मोदी को 'राज धर्म' के मार्ग का पालन करना चाहिए।उस समय भाजपा नेतृत्व का विचार था कि मोदी को हटाने का मतलब पार्टी पर "स्थायी धब्बा" और "अपराध स्वीकार करना" होगा। वेंकैया ने अटल की पार्टी लाइन की पूरी जानकारी दी।
पार्टी प्रमुख के रूप में नायडू भी मोदी के पक्ष में थे। मुंबई में 130 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इस रुख का समर्थन भी किया था। मनाली में जहां उन्होंने वाजपेयी से मुलाकात की, नायडू ने मीडिया से कहा कि मोदी से इस्तीफा मांगने का कोई सवाल ही नहीं है। किताब में दर्ज है कि “जब वाजपेयी दिल्ली लौटे, तो उन्होंने नायडू से कहा… कि वह एक पार्टी मंच पर अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं, क्या प्रधानमंत्री को अपनी राय बताने का अधिकार भी नहीं है?''
नायडू ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई थी। जहां वाजपेयी ने अपने विचार "दोहराए" जबकि अन्य सभी वरिष्ठ, लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और खुद नायडू ने कहा कि मोदी को बने रहना चाहिए। किताब के मुताबिक “उस बैठक में चर्चा के अंत में, वाजपेयी ने पूछा कि क्या मोदी पद पर बना रहेगा या जाएगा। हालाँकि, अधिकांश सदस्य (9 में से 8) आडवाणी और नायडू से सहमत थे कि मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर कायम रहना चाहिए। लेकिन वाजपेयी चाहते थे कि उनकी असहमति दर्ज की जाए।”
किताब में एक और महत्वपूर्ण बात कही गई है। जब आडवाणी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के पक्ष में नहीं थे तो नायडू ने उस समय मोदी का समर्थन किया। लेखक के मुताबिक “वेंकैया नायडू के दिमाग में जो बात मायने रखती थी वह पार्टी की जीतने की क्षमता थी। यह विडम्बना है कि आडवाणी के शिष्य मोदी का समर्थन पार्टी में ज्यादा था।''