'केन्द्रीय एजेंसियाँ स्वतंत्र काम नहीं करेंगी तो लोकतंत्र होगा ख़तरे में!'
केन्द्रीय एजेंसियों की मनमानी और सत्ता के इशारे पर काम करने के आरोपों के बीच बंबई हाईकोर्ट ने जाँच एजेंसियों को राजधर्म याद दिलाया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता एकनाथ खडसे के ख़िलाफ़ भष्ट्राचार के आरोप को खारिज करने की माँग की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि, “सीबीआई, ईडी, आरबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसियाँ अगर स्वतंत्र तौर पर अपने काम को अंजाम नहीं देंगी तो लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाऐगा।”
एकनाथ खडसे पर पिछले मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री रहते हुए पुणे में ज़मीन खरीदने के मामले में राजकोष को करीब 62 करोड़ का चूना लगाने का आरोप है।
इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने खड़गे के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है, जिसे खारिज कराने के लिए एकनाथ खड़गे ने बंबई हाईकोर्ट में शरण ली है। फिलहाल एकनाथ खडसे की गिरफ़्तारी पर अदालत ने अगले सोमवार तक के लिए रोक लगा दी है।
निष्पक्षता नहीं तो लोकतंत्र खतरे में!
पिछले कई सालों से लगातार पक्षपातपूर्ण और सत्ता के इशारे पर काम करने का आरोप सह रही केन्द्रीय एजेंसियों को लेकर बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि, “केन्द्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी, आरबीआई को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। इन ज़िम्मेदारियों के निर्वहन में उन से उम्मीद की जाती है कि वे पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतंत्र तौर पर कार्य करें।”
इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने न्यायापालिका के रोल पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि, “जिस तरह केन्द्रीय एजेंसियों को पूरी निष्पक्षता के साथ काम करना होगा उसी तरह न्यायपालिका को भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष होना पड़ेगा। तभी हम लोकतंत्र की असल मायने में रक्षा कर पायेंगे।
कोर्ट की आपत्ति!
एनसीपी नेता एकनाथ खडसे की गिरफ़्तारी और अंतरिम राहत न दिए जाने पर आमादा ईडी के वकील से हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ जिसमें जस्टिस एस. एस. शिंदे और मनीष पटाले शामिल थे, ने कहा कि,
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“आखिर जाँच एजेंसी को गिरफ़्तारी की इतनी जल्दी क्या है, यदि कोई अभियुक्त जाँच एजेंसी के साथ पूरा सहयोग करने को तैयार है तो जाँच एजेंसी धैर्य का प्रदर्शन क्यों नहीं करना चाहती।”
बंबई हाई कोर्ट
हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि, “क्या आसमान टूट पड़ेगा अगर अभियुक्त को कुछ दिन की मोहलत दे दी जाऐ, हम हमेशा विश्वास करते हैं कि न्यायपालिका और केन्द्रीय एजेसियाँ (सीबीआई, ईडी, आरबीआई) को पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतंत्र तौर पर काम करना चाहिए”।
जस्टिस एस. एस. शिंदे ने कहा कि, “अगर आरोपी जाँच एजेंसी के साथ पूरा सहयोग करने को तैयार है तो एजेंसी को भी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ औपचारिक बयान दर्ज कराना चाहिए कि वह अभियुक्त को गिरफ़्तार नहीं करेगी”। हाईकोर्ट ने यह बात एकनाथ खडसे के वकील की उस आपत्ति पर कही कि जाँच एजेंसी ईडी को कोर्ट के सामने यह बयान रिकार्ड करना चाहिए कि वो खडसे को गिरफ़्तार नहीं करेगी। ईडी के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर सभी अभियुक्तों को इसी तरह से अदालतों से संरक्षण मिलेगा तो इसका भविष्यगामी परिणाम बुरा होगा।
यह पहली बार नहीं है कि केन्द्रीय जाँच एजेंसियों पर अदालत ने कड़ी टिप्पणियाँ की है। 2-जी घोटाले के मामले में तो सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई जैसी केन्द्रीय को 'पिंजड़े में बंद तोता' तक कह दिया था।
केन्द्रीय सरकारों पर लगातार जाँच एजेंसियों के माध्यम से अपने राजनैतिक हितों को साधने के आरोप लगते रहे हैं। वर्तमान मोदी सरकार पर भी विपक्ष लगातार केन्द्रीय एजेंसियों के माध्यम से विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही कराने का आरोप लगाता है।
एनसीपी नेता पर क्या थे आरोप?
अक्टूबर 2020 में बीजेपी से एनसीपी में शामिल हुए एकनाथ खडसे पर राजकोष को करीब 62 करोड़ का चूना लगाने का आरोप है। आरोपों के मुताबिक़, बतौर राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे के इशारे पर पुणे में सस्ते रेट से करीब 3.75 करोड़ में ज़मीन खरीदी गयी। जिसे बाद में महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन को अधिग्रहण करना था। इस अधिग्रहण से खडसे को मोटी रकम कॉरपोरेशन से मिलनी थी। इस पूरे आरोप पर ईडी ने मामला दर्ज किया था और 15 जनवरी को खडसे ईडी के सामने पेश भी हुए थे। हालांकि एकनाथ खडसे का दावा है कि ये जमीन उनकी पत्नी मंदाकिनी खड़गे और दामाद गिरीष चौधरी ने खरीदी थी जिससे उनका कोई लेना देना नहीं था।
'न्यायपालिका ने हथियार डाले'
सुप्रीम कोर्ट में वकील और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति का सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी कहते हैं, "यह केवल मोदी सरकार की ही बात नहीं है, पिछली सरकारों के कार्यकालों में भी केन्द्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के उदाहरण मौजूद हैं। लेकिन महत्वपूर्ण मसला यह है कि आज तो न्यायपालिका ने भी सरकारों के सामने अपने अस्त्र डाल दिए हैं। न्यायपालिका हो या ब्यूरोक्रेसी दोनों ने ही संविधान की रक्षा की शपथ ली है, अगर दोनों ही संविधान के दायरे में चले तो निष्पक्षता और स्वतंत्रता दोनों वापिस आ सकते हैं।
वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी आगे कहते हैं, “न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर उठे सवालों का सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में चल रहा किसान आंदोलन है जहां देश का किसान ही न्यायपालिका की शरण में नहीं जाना चाहता क्योंकि उसे ये विश्वास हो गया है कि उसे निष्पक्ष न्याय नहीं मिलेगा।”