बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका पर महाधिवक्ता की सहायता मांगी
राफेल विमानों की खरीदारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वादित टिप्पणी करने के मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर 26 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
इस याचिका में कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने अपने खिलाफ दायर मानहानि याचिका को रद्द करने की मांग की है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से कोर्ट की सहायता करने का अनुरोध किया है।
हाईकोर्ट ने इस केस के कानूनी पहलुओं पर महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल से राय मांगी है। इस केस में अब अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी, कोर्ट ने अगली सुनवाई तक राहुल गांधी को पहले से दी गई राहत को भी बढ़ा दिया है।
इस मामले में पिछली सुनवाई 2 अगस्त को हुई थी। तब बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस को राहुल के खिलाफ 26 सितंबर तक कड़ी कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था।
इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं
लॉ से जु़ड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के सदस्य महेश हुकुमचंद श्रीश्रीमल द्वारा मानहानि की शिकायत दायर करने के बाद 28 अगस्त, 2019 को गिरगांव में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा गांधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी।इसके बाद राहुल गांधी ने इसे रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था।
26 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान, एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसवी कोटवाल ने पाया कि याचिका में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए थे, जिसके लिए महाधिवक्ता की सहायता की आवश्यकता होगी।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। इसलिए, मैं महाराष्ट्र के महाधिवक्ता से इस मामले में शामिल सभी कानूनी मुद्दों पर अदालत को संबोधित करने का अनुरोध करना आवश्यक समझता हूं।
शिकायतकर्ता का आरोप था कि सितंबर 2018 में गांधी ने राजस्थान में एक रैली की थी और उस रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक बयान दिया था।
उक्त अपमानजनक बयान के कारण, मोदी को कथित तौर पर विभिन्न समाचार चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा ट्रोल किया गया था।मजिस्ट्रेट ने 28 अगस्त, 2019 को एक आदेश पारित किया जिसमें राहुल गांधी को उनके सामने पेश होने के लिए बुलाया गया था।
जुलाई 2021 में समन मिलने के बाद गांधी ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।अपनी रिट याचिका में राहुल गांधी ने कहा था कि शिकायत तुच्छ और कष्टप्रद थी और शिकायतकर्ता के गुप्त राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के एकमात्र उद्देश्य से प्रेरित थी।
मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी
गांधी के वकील सुदीप पासबोला और कुशल मोर ने सीआरपीसी की धारा 199(2) का हवाला दिया। जिसका प्रावधान निर्धारित करता है कि एक सत्र अदालत को उस अपराध का संज्ञान लेने की आवश्यकता होती है जहां किसी लोक सेवक के खिलाफ उसके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में आचरण के संबंध में अपराध का आरोप लगाया जाता है।उन्होंने तर्क दिया कि इस प्रावधान के मद्देनजर, शिकायतकर्ता महेश श्रीश्रीमाल पर शिकायत दर्ज करने पर कानूनी रोक है।
पासबोला ने यह भी तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत स्पष्टीकरण 2 के अनुसार, एक राजनीतिक दल को मानहानि याचिका दायर करने के लिए पात्र व्यक्तियों के समूह के रूप में पहचाना नहीं जाता है।उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए श्रीश्रीमाल प्रतिनिधि की हैसियत से शिकायत दर्ज नहीं करा सकते थे। इसलिए, पसबोला ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
श्रीश्रीमल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी शिकायत के समर्थन में गवाही देकर और साक्ष्य प्रस्तुत करके गांधी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाया है।
उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत सामग्री की जांच करने के बाद गांधी के खिलाफ आदेश जारी करने की प्रक्रिया पारित की।
श्रीश्रीमाल की ओर से पेश वकील नितिन प्रधान ने दलील दी कि शिकायतकर्ता खुद एक पीड़ित व्यक्ति है।उन्होंने बताया कि शिकायत भाजपा महाराष्ट्र प्रदेश समिति के सदस्य की हैसियत से दर्ज की गई थी।