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पत्नी की संपत्ति का वारिस नहीं हो सकता दहेज हत्या का दोषी पति: हाईकोर्ट

पत्नी की संपत्ति का वारिस नहीं हो सकता दहेज हत्या का दोषी पति: हाईकोर्ट

वसीयतनामा विभाग ने तर्क दिया कि ससुराल वालों और पति को सिर्फ इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उन्हें दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है...। जानें इस दलील पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराए गए पति को मृतक पत्नी की संपत्ति विरासत में पाने के लिए अयोग्य माना जाएगा। वसीयतनामा विभाग हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 25 के तहत संपत्ति विरासत में पाने की पैरवी कर रहा था। लेकिन अदालत ने इसके तर्क को नहीं माना।

यह अहम आदेश बेटी की दहेज हत्या के शिकार एक पिता की याचिका पर आया है, जिसने यह घोषित करने की मांग की थी कि उसकी मृत बेटी के पति और ससुराल वाले उसकी बेटी की संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए अयोग्य हैं, क्योंकि वे उसकी दहेज हत्या के लिए दोषी हैं। उसके पति और ससुराल वाले वर्तमान में जेल में बंद हैं। 

हालांकि, वसीयतनामा विभाग ने पिता की याचिका पर इस आधार पर सवाल उठाया था कि ससुराल वाले और पति मृतक के कानूनी उत्तराधिकारी थे। विभाग ने तर्क दिया कि ससुराल वालों और पति को सिर्फ इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उन्हें दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है, क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम केवल उन लोगों को अयोग्य ठहराता है जो हत्या के लिए दोषी हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस निजामुदीन जमादार ने वसीयतनामा विभाग के तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 25 के तहत निर्धारित 'हत्यारे' के बराबर नहीं माना जा सकता, क्योंकि कानून केवल हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को अयोग्य ठहराता है।

रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अधिनियम की धारा 25 उस व्यक्ति को अयोग्य ठहराती है जो हत्या करता है या हत्या के लिए उकसाता है। इसने कहा कि इस अधिनियम के उद्देश्य को समझा जाना चाहिए, जो मृतक के हत्यारे को संपत्ति के हस्तांतरण को रोकना है।

जज ने 2 जुलाई को पारित आदेश में कहा, 'हत्या शब्द को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में परिभाषित नहीं किया गया है। आईपीसी की धारा 300 के तहत हत्या के अपराध की परिभाषा को हत्या शब्द की व्याख्या करने के लिए आसानी से आयात नहीं किया जा सकता है। उत्तराधिकार और उत्तराधिकार से संबंधित एक अधिनियम में इस्तेमाल शब्द की व्याख्या दंड विधान में प्रयुक्त समान शब्द की परिभाषा को आयात करके करना सही दृष्टिकोण नहीं है।'

पीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय दंड संहिता एक ही क्षेत्र में काम नहीं करते हैं। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, धारा 304-बी आईपीसी का हवाला दिया गया। अदालत ने कहा, 'यह पर्याप्त होगा यदि मृत्यु सामान्य परिस्थितियों के अलावा किसी अन्य तरीके से हुई हो, जिसका अर्थ है कि मृत्यु सामान्य तरीके से नहीं बल्कि संदिग्ध परिस्थितियों में हुई हो, भले ही यह जलने या शारीरिक चोट के कारण न हुई हो। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला की मृत्यु धारा 304-बी द्वारा बताई गई परिस्थितियों में हुई हो।'

न्यायाधीश ने दहेज मृत्यु के लिए एक अलग अपराध के प्रावधान में विधायी मंशा पर भी ध्यान दिया। न्यायाधीश ने कहा, 'यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि धारा 304-बी के तहत दंडनीय दहेज मृत्यु के अपराध को धारा 302 के तहत दंडनीय हत्या के अपराध की तरह मामूली अपराध नहीं कहा जा सकता है।' इसके अलावा, जज ने कहा, 'इस विचार का सार यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की दहेज हत्या का कारण बनता है, तो वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 25 के तहत निर्धारित अयोग्यता के दायरे में आता है, यदि वह तथ्य सिविल न्यायालय की संतुष्टि के लिए साबित हो जाता है।'

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