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बिजली संकट: कोयले की कमी, पैसेंजर ट्रेन रद्द; यह कैसी तैयारी?

बिजली संकट: कोयले की कमी, पैसेंजर ट्रेन रद्द; यह कैसी तैयारी?

देश में बिजली संकट आने की वजह क्या भीषण गर्मी और बिजली की बेहिसाब ख़पत ही है? पहले से तैयारी नहीं होना और समय पर अलर्ट नहीं होना क्या इसकी बड़ी वजह नहीं है?

बिजली संकट की कितनी बड़ी समस्या आन खड़ी हुई है? इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बिजली की कमी, ब्लैकआउट के बीच कोयले की तेज गति से ढुलाई के लिए 42 ट्रेनों को अगले आदेश तक रद्द करना पड़ा है। दिल्ली में बिजली उत्पादन इकाइयों के पास एक दिन से भी कम का कोयला बचा है। सवाल है कि यदि समय पर कोयला नहीं मिला तो क्या राष्ट्रीय राजधानी में श्रीलंका जैसा ब्लैकआउट होने की संभावना तो नहीं है? श्रीलंका में हाल में बिजली का ऐसा संकट आया कि वहाँ चारों तरफ़ हाहाकार मच गया था और बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए थे। सवाल है कि अब भारत में ऐसे हालात कैसे बन गए कि बिजली इकाइयों के पास एक दिन से भी कम का कोयला बचा है और कोयले की ढुलाई के लिए यात्री ट्रेनों को रद्द करना पड़ रहा है?

जाहिर तौर पर इसका जवाब तो यह हो सकता है कि पहले से इस तरह के संकट आने से बचने की तैयारी नहीं थी। जब संकट आ भी गया तो हालात संभालने में देरी की गई। यदि ऐसा नहीं था तो दिल्ली के बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन ने यह क्यों कहा कि महत्वपूर्ण बिजली संयंत्रों में एक दिन से भी कम समय का कोयला बचा है। अब स्थिति ऐसी आ गई है कि बिजली गुल हो सकती है और मेट्रो और सरकारी अस्पतालों जैसी सेवाओं में रुकावट आ सकती है। क्या पूर्व तैयारी होती तो ऐसी नौबत आती?

नेशनल पावर पोर्टल की कोयला की हर रोज़ की रिपोर्ट के अनुसार, कई बिजली संयंत्र कोयले की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। इस महीने की शुरुआत से भारत के बिजली संयंत्रों में कोयले के भंडार में लगभग 17% की गिरावट आई है और यह ज़रूरी स्तर का मुश्किल से एक तिहाई है। यानी समस्या किसी एक-दो पावर प्लांट में नहीं, बल्कि देश भर के पावर प्लांटों में है। इस समस्या की तात्कालिक वजह क्या है?

इस सवाल का जवाब यह है कि सबसे बड़ा कारण तो मौसम है। इस बार अप्रैल में उस तरह की भीषण गर्मी पड़ रही है जैसी पहले मई और जून में पड़ती थी। मार्च के आख़िर से ही गर्मी ने जोर पकड़ना शुरू किया था। अप्रैल आते-आते तो हालात बेहद ख़राब हो गए। दिल्ली जैसे महानगरों की तो बात ही छोड़िए, छोटे-छोटे शहरों में भी पंखे और कूलर के अलावा एसी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। महानगरों में तो आम तौर पर हर घरों में एसी सामान्य बात है और इस वजह से बिजली ख़पत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। 

भारत के कई हिस्सों में तापमान बढ़ने से बिजली की मांग में उछाल आया है। बिजली की मांग में उछाल आने से कोयले की कमी होने लगी है। कोयला देश में बिजली उत्पादन में इस्तेमाल होने वाला प्रमुख ईंधन है और इस पर 70 फ़ीसदी निर्भर है।

बिजली मंत्रालय के अनुसार, भारत में बिजली की मांग गुरुवार को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई और अगले महीने इसके 8% तक बढ़ने की संभावना है। ऐसा इसलिए कि मौसम विभाग ने हीट वेव की चेतावनी दी है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अप्रैल के पहले 27 दिनों के दौरान बिजली की आपूर्ति 1.88 बिलियन यूनिट या 1.6% कम हो गई है और ऐसा बिजली कटौती की वजह से हुआ। जम्मू-कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश तक उपभोक्ताओं को 2 घंटे से लेकर 8 घंटे तक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। भारत में भीषण गर्मी के दौरान छह साल में इस बार बिजली की रिकॉर्ड कमी देखी जा रही है। भीषण गर्मी के साथ, देश के कई हिस्सों में ब्लैकआउट शुरू हो गया है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने भी कहा है कि देश भर के थर्मल प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं, जो देश में बिजली संकट का संकेत है।

वैसे, भीषण गर्मी के समय बिजली की ख़पत बढ़ना, यह पहली बार नहीं हो रहा है। हर साल ऐसी स्थिति आती है, लेकिन संकट इस स्तर तक नहीं बढ़ता है। पहले भी कई बार पावर प्लांटों में कोयले का स्टॉक कम पड़ने की ख़बर आती रही हैं। पिछले साल भी ऐसी ही ख़बर आई थी। लेकिन तब वह समय था जब मॉनसून आ चुका था। तब तर्क दिया गया था कि बारिश की वजह से कई जगहों में खदानों में पानी जमा हो गया और इस वजह से पर्याप्त रूप से कोयला खदानों से नहीं निकल पा रहा था। जून महीने में जब मानसून देश के कुछ हिस्सों में प्रवेश करता है तब भी भयंकर गर्मी होती है और उस समय भी कोयले का संकट होने की आशंका रहती है। 

 - Satya Hindi

बहरहाल, ब्लैकआउट के मौजूदा संकट ने एक बार फिर से तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क़रीब 2-3 हफ़्तों से कोयले का स्टॉक कम पड़ने की हल्की-फुल्की ख़बरें आने लगी थीं, फिर भी इससे निपटने में देरी हुई। और अब हालात ऐसे हो गए हैं कि पैसेंजर ट्रेनों को रद्द करना पड़ रहा है। वह भी तब जब गर्मी की छुट्टियों में लोग ट्रेनों से घर जाने की तैयारी में होंगे तो उन्हें अब ट्रेनें नहीं मिल पाएँगी। यानी एक संकट से निपटने के लिए दूसरे संकट को बुलावा! संकटों से निपटने की यह कैसी व्यवस्था है!

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