ब्लैक फंगस के शिकार बच्चे भी; मुंबई में 3 की आँखें निकालनी पड़ीं
अब तक अधिकतर शुगर के मरीज़ या फिर कोरोना की गंभीर बीमारी से उबरे व्यस्क लोगों के ब्लैक फंगस का शिकार होने की ख़बरें आती रही थीं, लेकिन अब लगता है कि बच्चों के लिए भी यह काफ़ी घातक है। महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्मिकोसिस से संक्रमित तीन बच्चों की आँखें निकालनी पड़ी हैं। ब्लैक फंगस हाल में तब काफ़ी ज़्यादा चर्चा में रहा जब डायबिटीज जैसे कोमोर्बिडिटीज वाले कोरोना के मरीज़ों में इसके काफ़ी ज़्यादा मामले आए। कोरोना से ठीक हुए ऐसे लोगों में ब्लैक फंगस का ख़तरा ज़्यादा होता है। तो इन तीनों बच्चों में ऐसी दिक्कतें कैसे आ गईं?
ब्लैक फंगस को तकनीकी भाषा में म्यूकोर्मिकोसिस कहा जाता है। लेकिन आम तौर पर यह ब्लैक फंगस के नाम से चर्चित है। यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर संक्रमण है। यह संक्रमण म्यूकोर्मिसेट नाम के एक फंगस से फैलता है। यह संक्रमण के शिकार किसी व्यक्ति से नहीं फैलता है, बल्कि म्यूकोर्मिसेट पर्यावरण में मौजूद होता है। यानी हर कोई सांस लेने पर इस फंगस के संपर्क में आ सकता है लेकिन संक्रमित वह व्यक्ति होता है जिसका शरीर इससे लड़ पाने में सक्षम नहीं होता है।
यह मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएँ हैं या वे दवाएँ लेते हैं जो शरीर की रोगाणुओं और बीमारी से लड़ने की क्षमता को कम करती हैं। सामान्य तौर पर यह फंगस मज़बूत इम्यून सिस्टम वाले व्यक्ति के लिए बड़ा ख़तरा नहीं पेश कर पाता है।
जिन तीन बच्चों की आँखें निकालनी पड़ी हैं उनमें से एक 4 साल, दूसरा 6 और तीसरा 14 साल का बच्चा है। वे तीनों कोरोना संक्रमित थे। 4 और 6 साल वाले बच्चे डायबिटीज के मरीज नहीं हैं जबकि 14 साल का बच्चा डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित था। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार इन तीनों बच्चों के अलावा 16 वर्ष का एक बच्चा भी ब्लैक फंगस का शिकार हुआ। डॉक्टरों के अनुसार वह कोरोना संक्रमण से पहले डायबिटीज से पीड़ित नहीं था, लेकिन कोरोना ठीक होने के बाद वह संक्रमित हो गया था। पेट में ब्लैक फंगस का इंफेक्शन था।
डॉक्टरों का कहना है कि 14 साल की लड़की की आँख 48 घंटे के अंदर काली पड़ गई और फंगस नाक की तरफ़ भी फैल रहा था। उन्होंने कहा कि ख़ुशकिस्मत रही कि दिमाग में संक्रमण नहीं फैला। उन्होंने कहा कि 16 साल का बच्चा एक महीने पहले तक स्वस्थ था लेकिन कोरोना से उबरने के बाद उसे डायबिटीज की बीमारी हो गई और फिर ब्लैक फंगस का संक्रमण हो गया था।
कोरोना संक्रमण के बाद ब्लैक फंगस का ख़तरा बढ़ गया है। जब देश में कोरोना संक्रमण के मामले हर रोज़ 4 लाख से ज़्यादा आ रहे थे उस दौरान देश में ब्लैक फंगस के मामले भी काफ़ी ज़्यादा आने लगे थे।
मई महीने के मध्य में तो तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों ने 'ब्लैक फंगस' संक्रमण को अधिसूचित बीमारी घोषित कर दी थी। महाराष्ट्र में 20 मई तक ब्लैक फंगस से 90 लोगों की मौत हो गई थी और हज़ारों लोग संक्रमित हो चुके थे।
कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने चिंता कितनी बढ़ा दी थी यह इससे समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय कोविड टास्क फोर्स के विशेषज्ञों ने तब इस बीमारी को लेकर सलाह जारी की थी।
बता दें कि कोरोना महामारी से पहले अनियंत्रित मधुमेह यानी शुगर वाले रोगियों में म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा अधिक था। ऐसा इसलिए क्योंकि हाई ब्लड शुगर का स्तर फंगस के बढ़ने और जीवित रहने के लिए स्थिति बनाता है। इसके साथ उनकी कमजोर इम्यून सिस्टम संक्रमण से कम सुरक्षा प्रदान करता था। अब इस कोरोना महामारी के दौरान वायरस से संक्रमित होने पर इन रोगियों के लिए म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा दो कारणों से बढ़ जाता है। पहला यह है कि कोविड -19 उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को और ख़राब कर देता है और दूसरा, उन्हें उनके इलाज के लिए स्टेरॉइड वाली दवाएँ दी जाती हैं। इससे एक तो इम्यून सिस्टम सुस्त हो जाता है और उनके ब्लड शूगर के स्तर में वृद्धि होती है जिससे उनके म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा बढ़ जाता है।
जिन्हें मधुमेह, कैंसर है या जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है उनको इसका ज़्यादा ख़तरा होता है।
कैसे पहचानें ब्लैक फंगस संक्रमण?
कोविड से ठीक हुए मरीजों की देखभाल करने वालों को खतरे के संकेतों पर ध्यान देना चाहिए-
- नाक से असामान्य काले रंग की चीज का स्राव, काला धब्बा वाला ख़ून।
- सांस लेने में तकलीफ होना। खून की उल्टी की शिकायत।
- नाक बंद होना, सिरदर्द या आँखों में दर्द, आँखों के चारों ओर सूजन।
- धुंधली दृष्टि। आँखों का लाल होना, आँख बंद करने व खोलने में कठिनाई।
- बुखार, सिरदर्द, खांसी। चेहरे का सुन्न होना या सनसनाहट जैसा महसूस होना।
- मुँह चबाने या खोलने में कठिनाई।
- चेहरे की सूजन, विशेषकर नाक, गाल, आंख के आसपास।
- दाँतों का ढीला होना। काले क्षेत्र और मुँह, तालू, दाँत या नाक के अंदर सूजन।
कैसे करें संक्रमण से बचाव?
एम्स के डॉक्टरों सहित दूसरे विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि स्टेरॉइड वाली दवाओं का इस्तेमाल कम करें। यदि इसका इस्तेमाल करें तो डॉक्टर की सलाह से और इसमें यह काफ़ी अहम होता है कि किस समय इसका सेवन कर रहे हैं, कितनी मात्रा में और कितने समय तक सेवन कर रहे हैं। यदि आप धूल वाले निर्माण स्थलों पर जा रहे हैं तो मास्क का प्रयोग करें। बागवानी करते समय जूते, लंबी पतलून, लंबी बाजू की शर्ट और दस्ताने पहनें। स्वच्छता का ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान रखें।
क्या इलाज संभव है?
विशेषज्ञों के अनुसार ब्लैक फंगस का इलाज उपलब्ध है। इसका एंटी-फंगल दवा से इलाज किया जाना चाहिए। कुछ मामलों में सर्जरी की ज़रूरत हो सकती है। कुछ मामलों में यह ऊपरी जबड़े और कभी-कभी एक आँख को भी नुक़सान पहुँचा सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार, मधुमेह को नियंत्रित करने, स्टेरॉयड के उपयोग को कम करने और इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने वाली दवाओं को बंद करना अत्यंत ज़रूरी है। उपचार में कम से कम 4-6 सप्ताह लग सकते हैं और इसके लिए एम्फ़ोटेरिसिन बी और एंटी-फंगल दवाएँ दी जाती हैं।
लेकिन सबसे ज़रूरी है कि गंभीर स्थिति की संभावना को कम करने के लिए उपचार जल्दी और तुरंत दिया जाए।