+
एमपी: शिवराज का राज बरकरार, कांग्रेस को नुक़सान

एमपी: शिवराज का राज बरकरार, कांग्रेस को नुक़सान

राज्य की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने 19 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया।

मध्य प्रदेश में शिवराज और महाराज का जलवा बरकरार है। राज्य की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने 19 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया। उधर, सभी 28 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी का सपना संजो रही कांग्रेस केवल 9 सीटें ही हासिल कर पायी।

मध्य प्रदेश में पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की बगावत की वजह से कमलनाथ सरकार का पतन हो गया था। बगावत के बाद सिंधिया और समर्थक विधायक बीजेपी के साथ चले गये थे। कुल 25 विधायकों (सिंधिया समर्थकों के अलावा भी कई कांग्रेसी विधायकों) ने इस्तीफे दिये थे। जबकि तीन सीटें विधायकों के निधन की वजह से रिक्त हुई थीं।

नेताओं ने जमकर पसीना बहाया 

उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जमकर पसीना बहाया था। सत्ता में वापसी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। करीब डेढ़-दो महीने की जोरदार मेहनत के परिणाम मंगलवार 10 नवंबर को सामने आ गये।

बीजेपी 19 सीटों पर विजयी रही। पूर्व में उसके पास 107 विधायक थे। नई 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के विधायकों की संख्या बढ़कर 126 हो गई। विधानसभा में फिलहाल सीटों की कुल संख्या 229 है। दरअसल, दमोह से कांग्रेस विधायक ने हाल ही में इस्तीफा दिया है और उनके इस्तीफे के बाद से एक सीट रिक्त है।

मौजूदा 229 सीटों के हिसाब से सदन में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा 115 था। बीजेपी अपने दम पर इस जादुई आंकड़े से 11 नंबर आगे निकल कर 126 पर पहुंच गई। उधर, कांग्रेस 9 सीटें जीतकर भी 96 पर ही रुक गई।

सिंधिया को घाटा 

उपचुनाव के नतीजे कमलनाथ और कांग्रेस के लिए भारी नुक़सान वाले रहे। जिन 28 सीटों के लिए उपचुनाव हुए, विधानसभा के 2018 के चुनाव में इनमें से 27 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। एक आगर मालवा सीट पर ही बीजेपी जीत दर्ज कर पायी थी।

उपचुनाव में कांग्रेस को 9 सीट ही मिल पाने से खालिस तौर पर 19 सीटों का सीधा नुक़सान हुआ। बीजेपी को सीधे-सीधे 18 सीटों का फायदा हुआ।

इसी तरह, सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में जहां ग्वालियर में 16 सीटें हासिल की थीं, उन 16 में बीजेपी 7 सीटें हार गई। इन 7 सीटों में सबसे ज्यादा 5 चंबल संभाग में बीजेपी हारी। ग्वालियर और चंबल सिंधिया के गढ़ के तौर पर ख्यात रहे हैं। वहां हुई हार का सबसे बड़ा और सीधा घाटा सिंधिया को ही हुआ।

 - Satya Hindi

‘आइटम’ पर हुआ बवाल, इमरती हारीं

मंत्री इमरती देवी को कमलनाथ द्वारा ‘आइटम’ कह दिये जाने पर खूब बवाल मचा था। बीजेपी ने आसमान सिर पर उठा लिया था। नाथ को चुनाव आयोग ने नोटिस दिया। बाद में उनका स्टार प्रचारक का दर्जा भी छीना गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से नाथ जीतकर आ गये। तमाम उठापटक और जुबानी जंग पूरे उपचुनाव में चली।

तमाम समीकरणों के बावजूद सिंधिया और बीजेपी, इमरती देवी को ‘आइटम’ कहने पर बहुचर्चित हो गई डबरा सीट पर नहीं जिता पाये। कांग्रेस के प्रत्याशी और इमरती देवी के समधी सुरेश राजे ने 7 हजार 971 वोटों से इमरती देवी को हराकर इस सीट को कांग्रेस के लिए जीत लिया।

 - Satya Hindi

ये सीटें हारे सिंधिया और बीजेपी

अपने गढ़ ग्वालियर-चंबल में सिंधिया और बीजेपी सुमावली, मुरैना, दिमनी, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भांडेर और करैरा सीट पर हार गये। उधर, राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट को बरकरार रखने में भी कांग्रेस सफल रही। यह सीट कांग्रेस विधायक के असामयिक निधन से खाली हुई थी।

सिंधिया समर्थक मंत्री की बड़ी जीत 

ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक शिवराज काबीना के सदस्य प्रभुराम चौधरी ने 63 हजार 809 वोट से सबसे बड़ी जीत रायसेन जिले की सांची सीट पर दर्ज की। पिछला चुनाव वे कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। बीजेपी के कद्दावर नेता गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार को उन्होंने हराया था। 

इस बार शेजवार परिवार के कथित जान-बूझ कर पार्टी को नुक़सान पहुंचाने के क़दम के बावजूद उनकी सबसे बड़ी जीत बीजेपी संगठन की चाक-चौबंद रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। यहां बता दें, बीजेपी ने शेजवार और उनके बेटे को कारण बताओ नोटिस भी दिया है।

उपचुनाव में सिंधिया के एक और समर्थक मंत्री तुलसी राम सिलावट ने इंदौर जिले के सांवेर में 53 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल करते हुए दूसरी सबसे बड़ी जीत अपने और बीजेपी के नाम की।

सागर जिले की सुर्खी सीट को लेकर प्रेक्षकों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। सिंधिया समर्थक गोविंद राजपूत इस सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे। बीजेपी छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं पारूल साहू की स्थिति पूरे चुनाव में मजबूत मानी जाती रही। लेकिन नतीजे उलट रहे। इस सीट को गोविंद राजपूत ने 40 हजार से ज्यादा वोटों से अपने और बीजेपी के नाम किया।

बीजेपी के चार उम्मीदवार 30 हजार और इससे ज्यादा वोटों से चुनाव जीते। एक अन्य बीजेपी प्रत्याशी की जीत 29 हजार 440 वोट से हुई।

त्रिकोणीय मुकाबले वाली भांडेर सीट सबसे कम अंतर 171 वोट से बीजेपी प्रत्याशी रक्षा सरोनिया ने अपने नाम की। उन्होंने कांग्रेस के फूलसिंह बरैया को हराया। बीएसपी ने भी यहां अच्छे-खासे वोट बटोरे।

नहीं खुला बीएसपी-एसपी का खाता

उपचुनाव के लिए पड़े वोटों की गिनती के वक्त सुबह से दोपहर तक ग्वालियर-चंबल संभाग की तीन सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवारों ने कुछ देर के लिए बढ़त ली, लेकिन जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ी ये प्रत्याशी पीछे होते चले गये।

विधानसभा के 2018 के चुनाव में 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ा दल बनने वाली कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार बनवाने वाले बीएसपी के दो, एसपी के एक और चार निर्दलियों के ‘हाथों से बाजी निकल गई।’ असल में नाथ सरकार को इन्होंने खूब उंगलियों पर नचाया था। जब नाथ की सरकार गई तो इनमें से अधिकांश विधायक बीजेपी का 'झंडा' उठाते नजर आये।

चूंकि अब बीजेपी अपने दम पर सत्ता में आ चुकी है, लिहाजा अब इन विधायकों (बीएसपी, एसपी और निर्दलियों) की पूछ-परख पहले जैसी होने की संभावनाएं कम हो गई हैं। हालांकि कांग्रेस और कमलनाथ पर हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आरोप मढ़ा कि उनके विधायकों को तोड़ने की कोशिश कांग्रेस का खेमा और नाथ कर रहे हैं। शिवराज ने यह भी कहा, ‘नाथ लाख प्रयास करें, बीजेपी के विधायक कांग्रेस के खेमे में नहीं जायेंगे।

नहीं चला गद्दार, बिकाऊ-टिकाऊ

कांग्रेस ने उपचुनाव को ‘गद्दार’ और ‘बिकाऊ-टिकाऊ’ पर फोकस किया था लेकिन ये दोनों ही जुमले कांग्रेस के काम नहीं आये। कांग्रेस के साथ दगाबाजी करने और कथित तौर पर बीजेपी के हाथों बिक जाने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक अबकी बार बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में सफल हो गये।

सिंधिया का दबदबा बरकरार 

उपचुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के भोपाल हेड-क्वार्टर पर मनाये गये जश्न में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की शान में कसीदे काढ़कर ये संकेत दे दिये कि ‘महाराज’ को अभी बीजेपी पूरी तवज्जो देगी।

कैबिनेट के विस्तार को लेकर भी शिवराज से सवाल हुआ। वे टाल गये। मगर यह तय है कि नये सिरे से काबीना का गठन और विभागों का बंटवारा शिवराज के लिए आसान नहीं होगा। काबीना के विस्तार के अलावा खाली पड़े राजकीय खज़ाने की सेहत सुधारना भी शिवराज सरकार के लिए आने वाले दिनों में बेहद बड़ी चुनौती साबित होने वाला है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें