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भाजपा vs मंडल 2.0 की जंगः देखिए कौन डर रहा था जाति जनगणना से

भाजपा vs मंडल 2.0 की जंगः देखिए कौन डर रहा था जाति जनगणना से

बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े सोमवार 2 अक्टूबर को जारी कर दिए गए और इसी के साथ देश की राजनीति में कोहराम मच गया है। मंडल के दौर की राजनीति की यादें ताजा हो रही हैं। यह मांग अब अन्य राज्यों में भी उठेगी। कहां भाजपा हिन्दुत्व की राजनीति में हर दल को उलझा रही है, वहीं अब कांग्रेस समेत सभी दल देशव्यापी जाति जनगणना की मांग के लिए दबाव बनाने जा रहे हैं। 

बिहार ने सोमवार 2 अक्टूबर को जाति जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। नीतीश और लालू ने इस बार भाजपा को फंसा दिया है। भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने इसका स्वागत किया। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा- ''जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश।'' लेकिन भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री के इस बयान की गहराई में जाइए। भाजपा का जाति जनगणना को लेकर शुरू से ही यही स्टैंड रहा है।  यह भाजपा का डर है। नब्बे के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद भाजपा हिन्दुत्व का एजेंडा ले आई थी। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी उसके नायक थे। लेकिन मंडल की राजनीति ने लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार जैसे नेता भी दिए और मंडल राजनीति ने काफी हद तक देश की राजनीति को प्रभावित किया। बाद में भाजपा ने भी ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातियां) में अपनी घुसपैठ बनाई। भाजपा ने ओबीसी नेताओं को अपने पाले में लाकर उन्हें हिन्दू नेता के रूप में स्थापित कर दिया। अब बिहार के इन्हीं नेताओं ने जाति जनगणना का मुद्दा छेड़कर मंडल 2.0 की इबारत लिख दी है। 

कथित राष्ट्रीय मीडिया ने 13 सितंबर को मुंबई में हुए एक प्रदर्शन का संज्ञान नहीं लिया। महाराष्ट्र में जब मराठा आरक्षण की मांग हुई तो 40 से ज्यादा ओबीसी संगठनों ने प्रदर्शन किया। उसी दिन ओबीसी कार्यकर्ताओं ने अपना गुस्सा जताने के लिए शोलापुर-धुले राष्ट्रीय राजमार्ग पर विरोध प्रदर्शन किया और अपने आरक्षण की सुरक्षा की मांग की। यानी उन्हें डर है कि मराठा आरक्षण उनके आरक्षण की कीमत पर दिया जाएगा। इस मौके पर मांग की गई कि महाराष्ट्र में जाति जनगणना कराई जाए। अगर यह मांग पूरी नहीं हुई तो जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन की श्रंखला शुरू होगी। 13 सितंबर के बाद 18 सितंबर को भी नागपुर और अन्य स्थानों पर ओबीसी संगठनों ने प्रदर्शन किए। 

महाराष्ट्र में ओबीसी संगठनों का प्रदर्शन एक बानगी थी। उसके बाद यही मांग कर्नाटक से उठी, तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने जाति जनगणना कराने का वादा अप्रैल में ही ओबीसी संगठनों से कर लिया था। लेकिन तेलंगाना में अब चुनाव होने वाले हैं और ये मांग अब कांग्रेस केसीआर की धोखाधड़ी के नाम पर फिर सामने लेकर आ गई है। पिछले दिनों जब हैदराबाद में सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई तो बैठक के बाद राहुल गांधी ने एक बहुत बड़ी रैली को संबोधित किया था। जिसमें राहुल ने जाति जनगणना की मांग करते हुए कहा था कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर वो जाति जनगणना कराएगी। केसीआर की तरह झूठ नहीं बोलेगी।

यूपी में भाजपा समर्थक ओबीसी नेता सकते में

अब बिहार की जाति जनगणना रिपोर्ट ने कांग्रेस और तमाम क्षेत्रीय दलों को नया ईंधन दे दिया है। यूपी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर अभियान चलाने के लिए पूर्व मंत्री और प्रमुख ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में एक कमेटी भी बना दी थी। यानी यूपी में जाति जनगणना को विपक्ष पूरी गंभीरता से ले रहा है। चूंकि भाजपा को जब तक यूपी से चुनौती नहीं मिलेगी, तब तक क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस की स्थिति मुश्किल वाली रहेगी। 

लेकिन जरा ठहरिए। भाजपा के साथ यूपी में संजय निषाद की निषाद पार्टी, ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, कुर्मियों के नेतृत्व वाला अपना दल, बिहार में विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी ओबीसी की राजनीति के सहारे पहुंचे हैं। लेकिन भाजपा से हाथ मिलाने के बाद ये सारे क्षेत्रीय या जाति आधारित दल जाति जनगणना के लिए दबाव बनाने की राजनीति भूल गए। जब तक ये भाजपा के साथ नहीं थे, उठते-बैठते जाति जनगणना की मांग कर रहे थे। 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले संजय निषाद ने कुछ निषाद वर्ग की उपजातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया था। तमाम घोषणाओं के बाद कामयाबी नहीं मिली। बिहार की रिपोर्ट आने के बाद यूपी के ये सारे क्षेत्रीय क्षत्रप या तो कोमा में चले गए हैं या चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रहे हैं।


बात सपा या बाकी क्षेत्रीय दलों तक सीमित नहीं है। उत्तर भारत में लोहियावादी समाजवाद या अम्बेडकरवादी राजनीति की जमीन पर कई जाति आधारिक दल उभरे हैं। इसमें से हर जाति समूह अनुमानित जनसंख्या के आधार पर आरक्षण और राजनीति दोनों में हिस्सेदारी  चाहता है। यानी जिस समुदाय की तादाद जितनी ज्यादा होगी, उसका राजनीतिक प्रतिनिधित्व उतना ही अधिक होगा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महान दल जैसे छोटे से दल से भी 2022 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था। महान दल के केशव देव मौर्य का असर दो-तीन जिलों से ज्यादा नहीं था लेकिन इन्हीं छोटे दलों की वजह से ओबीसी राजनीति भी गरम रहती है। 

भाजपा की रणनीतिः जाति जनगणना पर ओबीसी आधारित दलों को दरअसल भाजपा ने ही आवाज उठाने का मौका दिया। भाजपा की दोहरी बात और दोहरे स्टैंड को मंडल आधारित पार्टियों ने खूब समझने के बाद ही जाति जनगणना की मांग को जिन्दा किया। हालाँकि भाजपा भी ओबीसी समर्थन की मदद से सत्ता में आई, लेकिन वह उस सोशल जस्टिस के मुद्दे का समर्थन करने से दूर रही जिसमें ओबीसी समुदाय अपनी तरक्की देख रहा है। भाजपा की दोरंगी नीति देखिए। एक तरफ तो भाजपा ने जाति जनगणना के विचार का समर्थन किया लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट में इसके लागू करने पर आपत्ति जताई। केंद्र की मोदी सरकार ने सितंबर 2021 में कोर्ट में तर्क दिया था कि जाति जनगणना "प्रशासनिक रूप से" संभव नहीं थी, और अदालत इसे लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती है, क्योंकि जाति गणना कार्यपालिका के दायरे में है। भाजपा इस स्टैंड से बेनकाब हो गई। शायद यह मुहावरा ऐसी ही राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ा गया होगा- मुंह में राम बगल में छूरी।

ऐसे समझिए भाजपा का दोहरा स्टैंड

जाति जनगणना और आरक्षण का खेल यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से चल रहा है। 2017 में भाजपा भारी बहुमत से जीत कर आई। योगी आदित्यनाथ तमाम उठा पटक के बाद मुख्यमंत्री बने। हालांकि पार्टी ने ओबीसी समूहों के बीच संकेत दिया था कि केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाया जा सकता है। केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों ने दो दिनों तक लखनऊ में भाजपा दफ्तर पर प्रदर्शन किया। उन्होंने योगी को नेता मानने से इनकार कर दिया। बाद में आरएसएस नेताओं के दखल पर केशव प्रसाद मौर्य मान गए। इस तरह ओबीसी नेता की थाली उसके आगे से सरकाकर उच्च जाति वाले योगी आदित्यनाथ को परोस दी गई। 

मुख्यमंत्री बनते ही योगी ने जाति सर्वेक्षण कराने के लिए अपने ओबीसी सहयोगियों के दबाव को मान लिया। इसके बाद एक कमेटी ने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट पेश की। जिसमें ज्यादा जाति समूहों को ओबीसी लिस्ट में डालने का प्रस्ताव था लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। इसी मुद्दे पर ओम प्रकाश राजभर ने सत्तारूढ़ भाजपा को गरियाते हुए साथ छोड़ा था। उन्होंने रिपोर्ट लागू न करने को भाजपा का विश्वासघात बताया था। हालांकि वही राजभर अब फिर से एनडीए गठबंधन में लौट आए हैं और मोदी-योगी के कसीदे पढ़ रहे हैं।


दरअसल, बीच में भाजपा ने एक और दांव खेला था। उसने 'आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग' (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 फीसदी कोटा लागू किया था। लेकिन इससे साफ संकेत यह गया कि केंद्र सरकार ने इसके जरिए सिर्फ 'उच्च' जातियों को कोटा दिया है। इस घोषणा पर तमाम ओबीसी आधारित पार्टियों ने ऐतराज जताया था। उन्होंने फौरन जाति जनगणना का मुद्दा उठा दिया। दूसरी तरफ अनुसूचित जाति के लोग इस बात से डरे हुए हैं कि कहीं उनके कोटे के साथ कोई अप्रत्यक्ष खेल न हो जाए। इसलिए दबी जुबान से बसपा प्रमुख मायावती ने काफी पहले ही चेतावनी दे दी थी। 

यहां जाति जनगणा का एक महत्वपूर्ण तथ्य जानिए। बिहार में सीएम नीतीश कुमार ने जब जाति जनगणना कराने का ऐलान किया था तो बिहार भाजपा के नेताओं ने भारी दिल से उसका स्वागत किया लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने का विरोध किया। कांग्रेस ने भाजपा की इस नस को पकड़ लिया है। यही वजह है कि कांग्रेस इसकी राष्ट्रीय स्तर पर मांग कर रही है। 

जाति जनगणना का मुकाबला फिर हिन्दुत्व के एजेंडे से होगा?

 यह बताना जरूरी है कि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने 2018 में संसद में घोषणा की थी कि ओबीसी की गणना 2021 की जनगणना में की जाएगी। उस समय वो गृह मंत्री थे। मोदी सरकार 2019 का आम चुनाव जीतने के बाद इस ऐलान को भूल गई। उस समय राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने कहा ता कि जाति जनगणना नहीं होगी। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि जटिलताओं और समस्याओं के कारण जाति-आधारित जनगणना करना असंभव है। तमाम तथ्य बार-बार सिर्फ यही बता रहे हैं कि भाजपा जाति जनगणना से भागती रही है। लेकिन बिहार से मिली चुनौती ने भाजपा को पसोपेश में डाल दिया है। बहुत मुमकिन है कि भाजपा अपने हिन्दुत्व के एजेंडे का प्रचार तेज कर दे। इसकी एक झलक राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी ने दिखा दी है। उन्होंने उदयपुर में एक दर्जी की जघन्य हत्या का मामला उठाकर राजस्थान में ध्रुवीकरण की कोशिश शुरू कर दी है।

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