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क्या अगड़े नेताओं के प्रचार से पिछड़ों को जीतेगी बीजेपी?

क्या अगड़े नेताओं के प्रचार से पिछड़ों को जीतेगी बीजेपी?

यूपी के जातीय चक्रव्यूह में फँसी बीजेपी के लिए सहारा ग़ैर-यादव पिछड़े और ग़ैर-जाटव दलित नज़र आ रहे हैं। हालाँकि इस बिरादरी के चेहरे इस बार या तो नज़र नहीं आ रहे या उन्हें तवज्जो तक नहीं मिल रही।

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन के बाद बुरी तरह से जातीय चक्रव्यूह में फँसी बीजेपी के लिए ग़ैर-यादव पिछड़े और ग़ैर-जाटव दलित ही सहारा नज़र आ रहे हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि फिर पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह अति पिछड़े और अति दलितों के दम पर वह दिल्ली की सीढ़ी यूपी के रास्ते ही चढ़ लेगी।

हालाँकि पिछले चुनावों में बीजेपी के लिए पिछड़ों को गोलबंद करने में दिन-रात एक करने वाले इस बिरादरी के चेहरे इस बार या तो नज़र नहीं आ रहे या उन्हें तवज्जो तक नहीं मिल रही।

केशव को हेलिकॉप्टर नहीं, स्वामी बदायूँ में फँसे

लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने और पार्टी की जड़ों को मज़बूत करने के लिए जहाँ तमाम नेता दिन-रात रैली कर रहे हैं और चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं वहीं उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य को तीन दिन घर बैठना पड़ा। पार्टी ने उन्हें चुनावी दौरों के लिए हेलिकॉप्टर नहीं उपलब्ध कराया। वह भी ऐसे समय में जब बीजेपी के तमाम छोटे-बड़े नेता चार्टर्ड प्लेन से प्रचार पर हैं। यह सब भी तब हो रहा है जबिक प्रधानमंत्री मोदी और मायावती-अखिलेश में असली नक़ली पिछड़े को लेकर जंग छिड़ी है। इसी समय पिछड़ों के नेता मौर्य घर बैठे हैं। मंगलवार को ख़ासी छीछालेदर के बाद मौर्य को हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराकर बाराबँकी और शाहजहाँपुर प्रचार के लिए भेजा गया।

ग़ौरतलब है कि जब 2017 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए तो फूलपुर से लोकसभा सांसद केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। चौदह सालों से बीजेपी राज्य में सत्ता से बाहर थी। चुनाव ख़त्म होते होते मौर्य पिछड़ों के नेता बन गए। वह यूपी के उप-मुख्यमंत्री बनाए गए।

अकेले केशव प्रसाद मौर्य ही नहीं, प्रदेश बीजेपी के तमाम पिछड़े नेता भी चुनाव प्रचार में उस कदर सक्रिय नज़र नहीं आ रहे हैं जैसे कि पहले हुआ करते थे।

शाक्य, मुराव बिरादरी के असरदार नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी को बीजेपी ने बदायूँ से टिकट देकर महज एक संसदीय क्षेत्र तक सीमित कर दिया है। स्वामी प्रसाद अब तक प्रदेश में कहीं और प्रचार नहीं कर सके हैं।

कटियार और स्वतंत्रदेव की पूछ नहीं

अपना दल से गठबंधन के बाद बीजेपी कुर्मी वोटों को लेकर इस कदर आश्वस्त हुई है कि उसने अपनी पार्टी में इस समाज के नेताओं को कहीं प्रचार में ढंग से लगाया तक नहीं है। इस समाज के बीजेपी नेता विनय कटियार का कहीं आता-पता नहीं, जबकि मंत्री स्वतंत्रदेव भी कम ही नज़र आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में क़रीब आठ फ़ीसदी से ज़्यादा वोटों की हिस्सेदारी रखने वाले कुर्मी समाज के लोगों को सभी दलों ने जमकर टिकट दिया है। अपना दल के एक धड़े (अनुप्रिया की माँ वाले) के साथ तो बाकायदा कांग्रेस ने तालमेल कर तीन सीटें दे दी हैं जबकि मायावती ने प्रदेश की कई महत्वपूर्ण सीटों पर इस समाज के प्रत्याशी उतारे हैं। ख़ुद बीजेपी नेताओं का कहना है कि उनके पास इस बिरादरी के ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार, संतोष गंगवार और स्वतंत्रदेव सिंह जैसे असरदार नेता हैं पर उनका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

निषाद पार्टी का दाँव भी उल्टा पड़ा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपनी सीट गोरखपुर से उप-चुनाव में जीतने वाले सपा प्रत्याशी व निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण को अपने पाले में लाकर बीजेपी इस विरादरी को साधना चाहती थी। बीजेपी ने निषाद पार्टी को दो सीटें भी दे डाली जिसमें संतकबीरनगर और भदोही शामिल हैं। हालाँकि योगी का यह दाँव भी उल्टा पड़ता दिख रहा है। गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद को जूता कांड से चर्चा में आए शरद त्रिपाठी की जगह संतकबीरनगर से लड़ाने से पूर्वांचल के ब्राह्मण नाराज़ हो गए हैं तो भदोही में इस पार्टी को टिकट देने से स्थानीय भाजपाई नाराज़ हैं। एक अन्य निषाद प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति फतेहपुर में कांग्रेस के राकेश सचान के साथ कड़े मुक़ाबले में फँसी हैं। बीजेपी की काट के लिए अखिलेश यादव ने गोरखपुर से प्रभावी निषाद नेता रामभुवाल को टिकट दिया तो मछलीशहर के पूर्व सांसद रामचरित्र निषाद को भदोही से प्रत्याशी बना दिया। लगातार इस समाज के कई नेताओं को सपा अपने पाले में ला चुकी है।

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