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कटारिया को बाहर भेज वंसुधरा को मनाने की कोशिश ?

कटारिया को बाहर भेज वंसुधरा को मनाने की कोशिश ?

राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन उससे पहले ही दोनों ही मुख्य राजनीतिक दल अंतरकलह से जूझ रहे हैं। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही आपसी खींचतान जगजाहिर है, लेकिन विपक्षी भाजपा भी इससे अछूती नहीं है।

रविवार को हुई नए राज्यपालों की नियुक्ति में कई चौंकाने वाले फैसले किए गये। राज्यपालों के नाम वाली लिस्ट में जिस एक नाम ने सबसे ज्यादा चौंकाया वह था गुलाबचंद कटारिया का। कटारिया राजस्थान की वर्तमान विधानसभा नेता प्रतिपक्ष के तौर पर काम कर रहे थे। उन्हें साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के अगले मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था।

राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन उससे पहले ही दोनों ही मुख्य राजनीतिक दल अंतरकलह से जूझ रहे हैं। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही आपसी खींचतान जगजाहिर है, लेकिन विपक्षी भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदल जाने के इतिहास को देखते हुए माना जा रहा है कि इस बार सरकार बनाने की बारी भाजपा की है। इसलिए उसके नेताओं की लड़ाई काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

कटारिया पूर्व मुंख्यमंत्री वंसुधरा राजे के धुर विरोधी माने जाते हैं। यह बात उनके पक्ष में भी थी, क्योंकि वसुंधरा राजे की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ लड़ाई जगजाहिर है। उसके बाद भी राजे अभी भी राजस्थान भाजपा की सबसे बड़ी नेता मानी जाती हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि इस बार कटारिया को मौका मिल सकता था। लेकिन ऐसा कुछ होता उससे पहले ही उन्हें राज्यपाल बनाकर कर राज्य की राजनीति से दूर कर दिया गया। इसे वंसुधरा राजे की पार्टी की अंदरूनी लड़ाई में जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

वंसुधरा राजे, राजस्थान की राजनीति और भाजपा के चुनिंदा पुराने नेताओं में से एक हैं जिन्होंने मोदी शाह की भाजपा में खुलकर उनकी मुखातपत की है, और सरकार में रहते हुए अपने मन से सरकार चलाई। और शीर्ष नेतृत्व को लगातार चुनौती दी। ऐसा करके उन्होंने मोदी और शाह की नाराजगी मोल ली। उसके बाद भी वे अपना कार्यकाल पूरा करने में सक्षम रहीं।

हालांकि वंसुधरा उसके बाद से नेपथ्य में हैं और अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। कटारिया को बाहर भेजे जान के बाद उनकी वापसी के संकेत दिए जा रहे हैं। क्योंकि राजे के बिना राज्स्थान में भाजपा की राह बहुत मुश्किल है।

साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में दोनों ही दल आपसी खींचतान से जूझ रहे हैं। राज्य की राजनीति के जानकार मान रहे हैं, कि गुलाबचंद कटारिया को राज्य की राजनीति से बाहर कर, कांग्रेस में गहलोत और पायलट खेमे के बीच चल रही आपसी लड़ाई में पायलट के बगावत करने के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर उनके लिए जगह बनाई जा रही है। इससे भाजपा की राजनीति के सभी पुराने और मुख्य चेहरों को दूर किया जा रहा है ताकि पायलट अगर बगावत करने के बाद इधर की तरफ आते हैं तो उनके खिलाफत करने वाला कोई बड़ा चेहरा न रहे। मध्य प्रदेश में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आए थे तो उन्हें दबी जुबान से ही सही लेकिन विरोध झेलना पड़ा था।

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