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त्रिपुरा में बढ़ सकती है भाजपा की मुश्किलें

त्रिपुरा में बढ़ सकती है भाजपा की मुश्किलें

त्रिपुरा में 16 फरवरी को मतदान है। त्रिपुरा के पिछले चुनाव में बीजेपी ने सीपीएम को सत्ता से हटाया था लेकिन बीजेपी पिछले पांच साल सत्ता में रहते हुए अपना घर ठीक कर पाई। नतीजा ये निकल रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव 2023 में हालात उसके खिलाफ हैं।

त्रिपुरा का चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नाक और साख का सवाल बन गया है. वाम-कांग्रेस गठजोड़ और एक स्थानीय पार्टी टिपरा मोथा, जिसके किंग मेकर होने की संभावना जताई जा रही है, के उभार ने भगवा पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. यहां अबकी दिलचस्प चुनावी समीकरणों ने 60 सीटों वाली इस विधानसभा के चुनाव को राष्ट्रीय सुर्खियां दिला दी हैं. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राज्य के कई आदिवासी क्षेत्रों को 'स्वायत्तता' देने का वादा किया है. इससे इन क्षेत्रों को अपना प्रशासन पूरी तरह अपने हाथ में मिल जाएगा और उसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की संभावना नहीं रहेगी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे पूर्वोत्तर में अलगाववाद को बढ़ावा मिल सकता है.

एक ओर भाजपा ने जहां सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा दी है वहीं वाम-कांग्रेस गठबंधन अबकी उसे सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए जोर लगा रहा है. दूसरी ओर, शाही घराने के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन ने मुकाबले को तिकोना बना दिया है. राजनीतिक हलकों में धारणा बन रही है कि अबकी प्रद्योत की क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा किंगमेकर साबित हो सकती है.

टिपरा मोथा ने राज्य की 60 सीटों में से 42 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. उसने अपने चुनाव घोषणापत्र में राज्य के मूल निवासियों के लिए ग्रेटर टिपरालैंड नामक अलग राज्य का वादा किया है. पार्टी ने आदिवासी परिषद के लिए अलग पुलिस बल गठित करने, 20 हजार नई नौकरियां पैदा करने और हथियार डालने वाले उग्रवादियों के लिए एकमुश्त पैकेज का भी एलान किया है.

वर्ष 2021 के भिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. उनकी पार्टी ने 30 में से 18 सीटें जीत ली थी. अब भाजपा और विपक्षी गठबंधन से सीटों पर तालमेल की बातचीत फेल होने के बाद उसने अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया है. उसकी निगाहें राज्य की आदिवासी बहुल 20 सीटों पर है. पार्टी की दलील है कि बांग्लादेश से हिंदू बंगालियों की घुसपैठ बढ़ने की वजह से राज्य के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं.

भाजपा नेता बलाई गोस्वामी का दावा है कि तिकोना मुकाबले की स्थिति में भाजपा को बढ़त मिलने की संभावना है. इसकी वजह यह है कि भाजपा-विरोधी वोट टिपरा मोथा और वाम-कांग्रेस गठबंधन में बंट जाएंगे.

भाजपा के प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य कहते हैं, "यह समझौता एकदम ऊपरी स्तर से हुआ है. लेकिन सामान्य कार्यकर्ता और समर्थक नेताओं के साथ नहीं हैं." उनका दावा है कि नेताओं ने आम लोगों की राय के खिलाफ जाकर यह समझौता किया है. सीपीएम के कार्यकाल में कांग्रेस के जिन सामान्य कार्यकर्ताओं पर अत्याचार हुए हैं, उनके घरों को जलाया गया है, वे वाम मोर्चा उम्मीदवारों को वोट कैसे देंगे?

दूसरी ओर, सीपीएम के वरिष्ठ नेता पवित्र कर कहते हैं कि टिपरा मोथा और भाजपा की टक्कर में वाम-कांग्रेस गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है. आदिवासी इलाकों में अब भी सीपीएम के पास निष्ठावान कार्यकर्ता व समर्थक हैं.

भाजपा ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र, जिसे वह  संकल्प पत्र कहती है, जारी करते हुए राज्य के कई आदिवासी क्षेत्रों को 'स्वायत्तता' देने का वादा किया है. इससे इन क्षेत्रों को अपना प्रशासन पूरी तरह अपने हाथ में मिल जाएगा और उसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की संभावना नहीं रहेगी. लेकिन पर्यवेक्षकों की राय में पार्टी का यह वादा पूर्वोत्तर में अलगाववाद को बढ़ावा दे सकता है. इलाके में कई अन्य गुट भी इस तरह के स्वायत्त क्षेत्रों की मांग उठा सकते हैं.

पार्टी ने धार्मिक गुरु अनुकूल चंद्र के नाम पर सभी के लिए पांच रुपये की भोजन योजना शुरू करने के साथ ही अगरतला में एक क्षेत्रीय मेडिकल रिसर्च सेंटर की स्थापना का भी वादा किया है।

राजनीतिक विश्लेषक शुभोजित भट्टाचार्य कहते हैं कि चुनावी राजनीति में टिपरा मोथा का प्रवेश खासकर आदिवासी इलाकों में भाजपा की जीत की संभावना पर प्रतिकूल असर डाल सकता है.  

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