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बीजेपी से सीट शेयरिंग में निषाद पार्टी और अपना दल को घाटा?

बीजेपी से सीट शेयरिंग में निषाद पार्टी और अपना दल को घाटा?

बीजेपी निषाद पार्टी और अपना दल के बीच सीट शेयरिंग में किसे फायदा हुआ और किसे नुक़सान? पिछले एक महीने से बातचीत का क्या नतीजा निकला?

निषाद पार्टी और अपना दल से बीजेपी का सीट शेयरिंग फ़ॉर्मूला तय हो गया है। उसने दोनों दलों को 33 सीट दी है। लेकिन इन दोनों दलों के चार-पाँच प्रत्याशी बीजेपी चुनाव चिह्न पर लड़ेंगे। इस फ़ॉर्मूले की औपचारिक घोषणा 29 जनवरी को हो सकती है।

तकनीकी रूप से देखा जाए तो ओबीसी आधार वाली पार्टियों को बीजेपी ने कम सीटें दी हैं, जबकि वो खुद ओबीसी राजनीति में अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहती है। इसके मुक़ाबले सपा के ओबीसी राजनीति करने वाले दल फ़ायदे में हैं।

निषाद पार्टी और अपना दल से सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी पिछले एक महीने से बातचीत कर रही थी। इस दौरान बीजेपी कोर कमेटी की मीटिंग भी कई दिन चली लेकिन तीनों दल कोई सर्वमान्य हल नहीं खोज पाए। अपना दल ने 35 सीटें और निषाद पार्टी ने 25 सीटें माँगी थीं। बीजेपी ने 35 सीटें देने से अपना दल को मना कर दिया। इससे बात रूक गई। लेकिन तीनों दल अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करने में नहीं चूक रहे थे।

आज जो सूचनाएँ आ रही हैं, उसके मुताबिक़ बीजेपी ने निषाद पार्टी को 15 सीटें दी हैं। इसमें से 11 सीटें निषाद पार्टी अपने चुनाव चिह्न पर लड़ेगी लेकिन 3 सीटें उसे बीजेपी के चुनाव चिह्न पर लड़ना पड़ेगी। इसी तरह अपना दल (अनुप्रिया पटेल) को बीजेपी ने क़रीब 18 सीटें दी हैं।

दोनों दल जितनी सीटें माँग रहे थे, उसके मुक़ाबले दोनों दलों को जितना हिस्सा मिला, वो घाटे का सौदा रहा। जबकि बीजेपी खुद 175 ओबीसी प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। अभी तक 80 से ज़्यादा सीटों पर वो ओबीसी प्रत्याशी उतार चुकी है। दूसरी तरफ़ सपा जो खुद एक ओबीसी पार्टी है, उसने ओमप्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल (अपना दल), शिवपाल यादव, रालोद आदि से सम्मानजनक समझौता किया है।

सूत्रों का कहना है कि संजय निषाद ने बीजेपी नेतृत्व से कहा था कि उन्हें अगर डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान पहले ही कर दिया जाए तो इससे अच्छा संकेत जाएगा। लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने केशव प्रसाद मौर्य की क़ीमत पर संजय निषाद को डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा से मना कर दिया।

संजय निषाद ने इस पर सार्वजनिक रोष तो नहीं जताया लेकिन उन्होंने टीवी चैनल पर आज कहा कि इस समय हमारी पार्टी का एजेंडा लागू कराना ज़रूरी है।

उन्होंने कहा कि हम अपने समुदाय को ज़्यादा अधिकार दिलाने के लिए उसे अनुसूचित जाति की श्रेणी में लाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। निषाद ने यह भी आरोप लगाया कि 27 फ़ीसदी आरक्षण पर सपा का क़ब्ज़ा था लेकिन अब हमने आरक्षण को सपा के क़ब्ज़े से आज़ाद करा लिया है। सपा सिर्फ़ यादवों की पार्टी बनकर रह गई।

संजय निषाद के बयानों से लग रहा है कि वो सीट शेयरिंग के इस फ़ॉर्मूले पर सहमत हैं लेकिन अपना दल ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। बहुत मुमकिन है कि दोनों दल 29 जनवरी के बाद अपनी प्रतिक्रिया खुलकर दें।

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