2024 में एनडीए के भरोसे बीजेपी, पूर्व सहयोगियों के संपर्क में क्यों?
क्या अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी भी विपक्षी दलों की तरह अपने एनडीए गठबंधन को मज़बूत करने में जुट गई है? जेडीएस, टीडीपी और अकाली दलों के साथ ही बीजेपी अपने अन्य पूर्व सहयोगियों को भी साथ लाने की तैयारी में जुटी हुई है।
कहा जा रहा है कि बीजेपी ने भी 2024 के चुनाव से पहले एनडीए में एक नई जान फूंकने के लिए अपने पूर्व सहयोगियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। हाल के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हार के साथ तेजी से बदलती राजनीतिक स्थिति ने भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। पहले जहाँ वह अपने सहयोगी दलों के साथ सख्ती से पेश आती हुई दिखती थी वह अब अपने पूर्व सहयोगियों के खिलाफ सख्त रुख को त्यागने के लिए मजबूर है। कहा जाता है कि हाल के वर्षों में बीजेपी के सख्त रुख की वजह से कई दल एनडीए छोड़कर चले गए थे।
बीजेपी के सामने 2024 की चुनौती है। अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए कई विपक्षी दल बड़ी तैयारी के साथ आ रहे हैं और उनके बीच में एक महागठबंधन बन रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी विपक्षी दलों से बातचीत कर रहे हैं और माना जा रहा है कि वह इसमें सफल भी होते दिख रहे हैं। विपक्षी दलों की बैठक 23 जून को पटना में होने वाली है।
एक संकेत मिल रहे हैं कि क़रीब 15 प्रमुख विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि यदि अधिकतर विपक्षी दल एकसाथ आ गए तो बीजेपी के लिए 2024 में मुश्किल हो जाएगी। यही वजह है कि बीजेपी भी एनडीए गठबंधन में शामिल करने के लिए कई दलों को जोड़ने का प्रयास कर रही है।
इसी प्रयास के तहत बीजेपी ने कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर), आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन वार्ता फिर से शुरू कर दी है। बीजेपी महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ तो पहले से ही गठबंधन में है और कहा जा रहा है कि 2024 के चुनाव को लेकर एकनाथ शिंदे ने हाल ही में दिल्ली जाकर अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाक़ात की थी। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के साथ पार्टी के संबंध बने हुए हैं और उसका भी एनडीए के साथ जाना तय माना जा रहा है।
अब अन्य जगहों पर भी छोटे-छोटे दलों को एनडीए में जोड़े जाने का प्रयास किया जा रहा है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि बीजेपी जल्द ही उत्तर प्रदेश और बिहार सहित अन्य राज्यों में छोटे सहयोगियों के साथ बैठक करेगी और चर्चा करेगी। हाल ही में दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों के साथ एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा को सलाह दी थी कि क्षेत्रीय दलों के साथ संबंध बनाकर उन्हें समायोजित करने के लिए खुले रहें।
बीजेपी को एनडीए को फिर से एकजुट करने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। ऐसा इसलिए कि हाल के कुछ सालों में विपक्षी दलों में यह संकेत गया है कि बीजेपी सहयोगी दलों के साथ सही से पेश नहीं आती है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि इन वर्षों में एनडीए से कई प्रमुख दल अलग हो गए। रिपोर्ट के अनुसार कई भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया है कि वर्षों से एनडीए से टीडीपी, उद्धव सेना, एसएडी और जेडीयू जैसे दलों के बाहर निकलने से पार्टी की सार्वजनिक रूप से एक छवि बनी है कि वह क्षेत्रीय दलों को स्वीकार नहीं करना चाहती है।
कहा जा रहा है कि बीजेपी के मित्र दल - आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी और ओडिशा में बीजद औपचारिक गठबंधन के लिए तैयार नहीं रहे हैं और केंद्र में पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा बनने के इच्छुक नहीं रहे।
मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व ने अब निरस्त हो चुके विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर एनडीए छोड़ने वाले अकाली दल से बातचीत करने को तैयार है। एसएडी हाल के विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया है और यह 117 सदस्यीय राज्य विधानसभा में केवल तीन सीटें जीत सका। अब कहा जा रहा है कि वह एनडीए के पाले में लौटने का इच्छुक है। इसी तरह से कर्नाटक में जेडीएस से बीजेपी का गठबंधन होना तय माना जा रहा है। दोनों दलों के नेताओं के कुछ हालिया बयानों से संकेत मिलता है कि 2024 के चुनाव के लिए दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हो सकता है।
इधर टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू के साथ गठबंधन वार्ता फिर से शुरू हो गई है। नायडू ने पहले भी अपने संबंधों में नरमी लाने के कई प्रयास किए थे, लेकिन भाजपा नेतृत्व तब अनिच्छुक था। पिछले हफ्ते नायडू ने भाजपा के शीर्ष नेताओं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की। दोनों पक्षों ने स्पष्ट रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एक साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की। यूपी और बिहार में भी छोटे दलों को एनडीए के पाले में लाने का प्रयास किया जा रहा है। तो क्या 2024 का मुकाबला दो गठबंधनों के बीच ही रहेगा?