आख़िर बीजेपी क्यों नहीं देती मुसलमानों को टिकट?
उत्तर प्रदेश में बीजपी ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। एक बार फिर यह सवाल उठा है कि आख़िर बीजपी विधानसभा चुनावों में मुसलमानों को टिकट क्यों नहीं देती? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस बारे में कई बार सवाल पूछा गया। उन्होंने कभी इसका सीधा जवाब नहीं दिया। हर बार उनके जवाब में तल्ख़ी और मुसलमनों के प्रति हिकारत का भाव देखने को मिला। योगी कभी मुसलमानों के प्रति अपनी नापसंद को छिपाने की कोशिश भी नहीं करते।
हाल ही में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में योगी ने साफ कह दिया कि मुसलमानों से उनका वही रिश्ता है जो मुसलमानों का उनसे है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तर प्रदेश का मुसलमान कट्टर हिंदूवादी छवि के चलते बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पसंद नहीं करता।
मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी जिस तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहे हैं उसकी वजह से मुसलमानों में उनके प्रति नफरत का भाव है। तो क्या योगी भी मुसलमानों को पसंद नहीं करते?
एक निजी टीवी चैनल पर हुए इस इंटरव्यू में चैनल के संपादक एंकर ने सीधा सवाल पूछा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा है सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास। इस नारे को आप भी दोहराते हैं। लेकिन अभी तक की जो बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित हुई है उसमें पर एक भी मुसलिम उम्मीदवार आपने नहीं दिया है। मुसलमानों के साथ आखिर आपका क्या रिश्ता है?’ सीधे सवाल का योगी ने भी एकदम सीधा जवाब दिया, ''मेरा वही रिश्ता उनके साथ में है, जो उनका रिश्ता मुझसे है। उत्तर प्रदेश सरकार में एक मुसलिम मंत्री हैं। केंद्र सरकार में मंत्री हैं, नक़वी जी। और भी इस प्रकार के चेहरे हैं। आरिफ़ मोहम्मद ख़ान जी केरल के राज्यपाल के रूप में सेवाएँ दे रहे हैं। किसी व्यक्ति, जाति या मज़हब से विरोध नहीं है। लेकिन हाँ, जिसका विरोध भारत से है, भारतीयता से है, स्वाभाविक रूप से हमारा उससे विरोध है।''
मुसलमानों को बीजेपी का टिकट क्यों नहीं?
बीजेपी ने कभी गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी विधानसभा चुनाव में किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया है। गुजरात में तो बीजेपी 1995 से लगातार विधानसभा चुनाव जीतती रही है। वहाँ बड़े पैमाने पर मुसलमान बीजेपी से जुड़े हुए भी हैं। इसके बावजूद बीजेपी ने कभी किसी मुसलमान को विधानसभा का टिकट नहीं दिया। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बीजपी लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीती। लेकिन कभी मुसलमान को टिकट नहीं दिया।
कई मुसलमानों ने मांगे थे टिकट
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से क़रीब 6 महीने पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भरोसा दिलाया था कि इस बार पार्टी मुसलिम समुदाय से भी कुछ उम्मीदवार उतारेगी।
पार्टी की तरफ़ से चुनाव लड़ने के इच्छुक मुसलिम कार्यकर्ताओं से टिकट के लिए आवेदन भी मांगे गए थे। बड़ी बड़ी संख्या में आवेदन आए भी थे।
बीजपी के संगठन प्रभारी सुनील बंसल के साथ हुई बैठकों में इस मुद्दे पर चर्चा भी हुई थी। बरसों से बीजेपी से जुड़े कई मज़बूत मुसलिम नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को भरोसा भी दिलाया था कि अगर उन्हें टिकट दिया जाता है तो वह जीतकर आएंगे। इसके बावजूद बीजेपी ने एक को भी टिकट देने लायक नहीं समझा। इससे बीजपी से जुड़े तमाम मुसलिम नेता को निराशा और हताशा है।
एनडीए का एकमात्र मुसलिम उम्मीदवार
बीजेपी ने तो मुसलमानों को टिकट नहीं दिया। लेकिन उसके सहयोगी अपना दल ने रामपुर की सवार टांडा सीट से आजम ख़ान के बेटे अब्दुल्ला आजम के ख़िलाफ़ हैदर अली उर्फ हमजा मियां को उम्मीदवार बनाया है। ज़ाहिर है, यहां बीजेपी का उम्मीदवार नहीं है। अगर बीजेपी यहां अपना दल को अपने वोट ट्रांसफर करा पाने में सक्षम होती है तो उसका सहयोगी यह सीट जीत सकता है। अपना दल ने भी विधानसभा चुनाव में पहली बार मुसलिम उम्मीदवार उतारा है। इस तरह देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी और उसके सहयोगी दोनों की तरफ़ से हमज़ां मियां ही एकमात्र मुसलिम उम्मीदवार हैं। इससे जाहिर होता है कि देश की आबादी में लगभग 14% हिस्सेदारी रखने वाली मुसलिम आबादी को बीजेपी विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की इच्छुक नहीं है।
मुसलमानों क प्रति योगी का तल्ख़ रवैया
मुसलिम समुदाय के प्रति योगी आदित्यनाथ का रवैया हमेशा से तल्ख़ रहा है। इसका अंदाजा उनके हाल ही में दिए बयानों से लगाया जा सकता है। कुछ दिन पहले एक और टीवी चैनल पर उनसे मुसलमानों को टिकट देने के बारे में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने जवाब दिया था कि समाजवादी पार्टी हर सीट पर मुसलिम उम्मीदवार उतार दे। उसे कौन रोकता है? लेकिन एक बात वह ज़रूर कहते हैं कि उनकी सरकार संसाधनों और योजनाओं में हिस्सेदारी देने में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करती। यही वजह है कि जनकल्याणकारी योजनाओं में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात से भी ज़्यादा हिस्सेदारी मिल रही है। वह कहत हैं कि उनकी सरकार तुष्टीकरण में यकीन नहीं रखती। कुछ दिन पहले योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रधानमंत्री आवास योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजना में 19% आबादी वाले मुसलमानों को 35% हिस्सा मिल रहा है। लिहाज़ा उन पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करने का आरोप गलत है।
क्या मुसलमानों को टिकट देना तुष्टीकरण है?
यहां यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या मुसलिमों को टिकट देना तुष्टीकरण है? उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और बहुजन समाज पार्टी सभी ने मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में टिकट दिए हैं तो क्या ये पार्टियां मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही हैं या फिर मुसलिम समाज को विधानसभा में प्रतिनिधित्व दने की कोशिश। क्या बीजेपी को नहीं लगता कि विधानसभा में उसकी तरफ़ से भी मुसलिम समाज को प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए? इस सवाल पर बीजेपी के तमाम बड़े नेता चुनाव जीतने की योग्यता की बात करते हैं। लेकिन टिकटों के बंटवारे में अगड़ी, पिछड़ी और दलित जातियों के बीच संतुलन का खास ख्याल रखते हैं। ख़्याल नहीं रखा जाता तो सिर्फ मुसलमानों का।
यह बात सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि उन तमाम राज्यों में लागू होती है जहां बीजेपी की सरकारें हैं या पहले रह चुकी हैं।
सवाल पैदा होता है कि क्या 10-15 साल से बीजेपी के लिए काम कर रहे मुसलिम नेताओं में से एक भी इस लायक नहीं है कि वह किसी विधानसभा से चुनाव जीतकर आ सके?
निराश हैं बीजेपी से जुड़े मुसलिम नेता!
क़रीब 25 साल से बीजेपी से जुड़े पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक नेता टिकट के प्रबल दावेदार थे। उनका दावा था कि अगर बीजेपी किसी एक मुसलमान को टिकट देगी तो वो टिकट उन्हें मिलेगा। लेकिन नहीं मिला। वह कहते हैं कि कौन जीताऊ उम्मीदवार है और कौन नहीं है, इसका फ़ैसला तो उम्मीदवार के चुनाव मैदान में उतरने के बाद ही होगा। अगर रामपुर जैसी मुसलिम बहुल सीट से 1998 में मुख्तार अब्बास नक़वी लोकसभा का चुनाव जीत सकते हैं तो फिर ऐसी ही किसी मुसलिम बहुल सीट से बीजेपी का मुसलिम उम्मीदवार चुनाव क्यों नहीं जीत सकता?
क्या मुसलमान को चुनाव नहीं लड़ाना नीति है?
जब भी इस बारे में बीजेपी के शीर्ष नेताओं से पूछा जाता है तो वो इसकी वजह बताने के बजाय नगर निगमों और नगर पालिकाओं में जीते बीजेपी के पार्षद और सभासद गिनाने लगते हैं। पिछले साल गुजरात के स्थानीय निकाय के चुनाव के बाद बीजेपी ने इस बात को बहुत प्रचारित किया कि सूरत और अहमदाबाद में उसके कई मुसलिम पार्षद जीते हैं। इसी तरह 2017 में यूपी में बीजेपी के टिकट पर एक नगर पालिका का चेयरमैन जीता था। नगरनिगम में पार्षद और नगरपालिका में चेयरमैन के लिए तो बीजेपी मुसलमानों को टिकट देती है लेकिन विधानसभा चुनाव में नहीं। इससे ये सवाल पैदा होता है कि क्या किसी मुसलमान को विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ाना बीजेपी की अघोषित नीति है?
उत्तर प्रदेश में चुनाव के ऐलान के बाद से मुसलमानों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चिढ़ाने वाले ही बयान दिए हैं। उनके कई बयानों पर चुनाव आयोग से उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की भी मांग की गई है। क्या योगी आदित्यनाथ मुसलमानों को चिढ़ाने वाले बयान देकर बीजेपी के कट्टर हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका 80% बनाम 20% वाला बयान भी इसी तरफ़ इशारा करता है। शायद यही वजह है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति में बीजपी का किसी मुसलमान को उम्मीदवार बनाना फिट नहीं बैठता। इससे उसके कट्टर हिंदुवादी मतदाताओं के खिसकने का डर रहता है। इसलिए सवाल उठता है कि योगी और मुसलमानों के बीच का ये रिश्ता आख़िर क्या कहलाता है?