साधना जी! फटी साड़ी वाली औरत ने ही गिरा दी थी वाजपेयी सरकार
एक महिला दूसरी महिला का सामान्य रूप से तीन तरीक़े से अपमान कर सकती है-
- कथित शक्ल के आधार पर
- कथित चरित्र के आधार पर
- कथित जाति के आधार पर
विडंबना यह है कि ये तीनों तरीक़े पितृसत्तात्मक समाज की ही देन हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद सुश्री मायावती को लेकर कई बार औरतों ने ही इन तरीक़ो से अपमान किया है। ताज़ा उदाहरण मुगलसराय की बीजेपी विधायक साधना सिंह का है।
साधना सिंह ने कहा था, ‘जिस महिला का चीर-हरण होता है। उसका ब्लाउज फट जाए, पेटीकोट फट जाए, वो महिला सत्ता के लिए आगे आती है तो वो कलंकित है। उसे महिला कहने में भी संकोच लगता है। वो किन्नर से भी बदतर है, क्योंकि न तो वो नर है, न महिला है।’
ये शब्द उन्होंने मायावती के लिए कहे हैं। उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती दलित हैं और साधना कथित उच्च जाति की जो कि पहली बार विधायक बनी हैं। साधना जी यह भूल गईं कि मायावती का संघर्ष एक महिला का संघर्ष ही नहीं है बल्कि ‘कास्ट’ और ‘क्लास’ का भी है।
साधना जी यह भी भूल गईं कि जिस साल वो पंचायत सदस्य बनी थीं उसके एक साल पहले 1999 में बीजेपी के सिरमौर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिरी थी और इसे गिराने वाली नेता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता थीं जिनकी साड़ी 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में फाड़ दी गई थी। वो महिला सत्ता के लिए आगे आई, सत्ता को हासिल भी किया और एक दूसरी महिला सोनिया गाँधी के साथ एक कप चाय पीते हुए तत्कालीन राजनीति के शिखर पुरुष को अचंभित कर दिया।
- अचंभित तो साधना सिंह भी करती हैं 2017 के यूपी चुनाव के दौरान वायरल हुए एक वीडियो में। यहाँ पर देखा जा सकता है कि वह किस तरह एक हिंसक नेता की तरह गालियाँ और धमकियाँ देती नज़र आ रही हैं। सारी गाली-गलौज के बाद बड़े जोश से वह ‘हर हर महादेव’ कहकर अपनी सारी बातों पर पर्दा डाल निकल जाती हैं।
साधना सिंह से हमें सहानुभूति है
वह उसी पितृसत्तात्मक समाज की शिकार हैं जिसमें आपको जीवन-यापन के लिए 'बुली' बनना पड़ता है। अगर आप उस क्रूरता को आत्मसात नहीं करते हैं तो आपके उस लीग से बाहर हो जाने का ख़तरा बना रहता है। ऐसा नहीं है कि साधना सिंह के लिए विधायक बनने का रास्ता आसान रहा होगा। मुगलसराय के स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि साधना सिंह को 2017 में विधायकी का टिकट मिलने को लेकर बीजेपी के लोगों में ही नाराज़गी थी और उनका चरित्र-हनन भी किया गया था। इसके बावजूद साधना जी एक महिला और देश की वरिष्ठ नेता के बारे में अपशब्द कहने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाती हैं। ठीक वैसे ही जैसे दो साल पहले बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए वेश्या जैसे शब्द इस्तेमाल किये थे। जयललिता ने उस वक्त मायावती का जम के समर्थन किया था। एक दशक पहले यूपी के ही नेता राजा भैया ने भी मायावती के लिए जातिसूचक शब्द इस्तेमाल किए थे। हालाँकि मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजा भैया को समझ आया कि ये नहीं बोलना चाहिए था।
- साधना जी यह भी भूल जाती हैं कि मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी और सुषमा स्वराज जैसी महिला नेताओं के भारतीय राजनीति में आने के बाद ही बाक़ी महिलाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
साधना सिंह ने एक और ग़लती की
साधना जी यह भी भूल गईं कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को वे सारे अधिकार दे दिए हैं जो बहुत पहले मिल जाने चाहिए थे और अब किन्नरों को लेकर अपशब्द कहना अपराध है। अगर किन्नरों को साधना जी बदतर समझती हैं तो उनको अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। ‘हर हर महादेव’ कहने से काम नहीं चलेगा। मिथकों में महादेव ने भी अर्द्ध-नारीश्वर के रूप में ख़ुद को दिखाया था।
तमाम नेता होमोसेक्सुअलिटी और ट्रांसजेंडर के मुद्दों पर नासमझी वाले बयान देते रहते हैं। साधना सिंह ने भी ख़ुद को उनमें शामिल कर लिया है।
बयानों से जातिगत श्रेष्ठता की बू आती है
इनके तमाम बयानों से जातिगत श्रेष्ठता की बू आती है। अगर जातिगत श्रेष्ठता नहीं रहती इनके मन में तो एक औरत और सनातन सताये हुए किन्नर समाज के प्रति इतने नफ़रत भरे बोल नहीं निकलते इनके। औरत होते हुए इन्होंने भी समाज की तमाम प्रताड़नाओं को झेला होगा पर इसके बावजूद ये इतने कड़वे बोल बोल गईं। ऐसी स्थिति में जातिगत दंभ ही ऐसा बोलने को मजबूर कर सकता है।
- राजनीति में पढ़ाई-लिखाई उतना मायने नहीं रखती। पर मायावती ने साधना जी से ज़्यादा पढ़ाई की है और राजनीति का ज़्यादा अनुभव है उनके पास। 1974 में साधना जी का जन्म हुआ था, उस वक्त मायावती ग्रेजुएशन कर रही थीं। 1977 में मायावती ने तत्कालीन क्रांतिकारी नेता राजनारायन को स्टेज पर चढ़कर धमका दिया था हरिजन शब्द को लेकर। इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ बढ़त बना रही जनता पार्टी की सभा में जनता पार्टी मुर्दाबाद के नारे लगने लगे।
उम्मीद है कि इस घटना के बाद बाक़ी नेताओं को भी समझ आएगा कि क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं। पर 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसकी संभावना कम ही नज़र आ रही है।
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