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भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा 60 सीटों पर कुछ कर भी पाएगा ?

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा 60 सीटों पर कुछ कर भी पाएगा ?

भाजपा इस रणनीति के जरिए उस तबके तक पहुंचने की कोशिश कर रही है जो लंबे समय तक उससे दूर रहा है। भाजपा की राजनीति का बड़ा हिस्सा इस तबके के विरोध पर टिका हुआ है। संघ प्रमुख मोहन भागवत औऱ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालिया बयानों में इस तबके तक पहुंचने के प्रयास किए हैं।

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ज़मीनी स्तर पर कितना प्रभावी है, इसका पता जल्द ही चल जाएगा। बीजेपी आलाकमान ने अल्पसंख्यक मोर्चा को 60 ऐसी लोकसभा सीटों की ज़िम्मेदारी सौंपी है, जहां मुस्लिम वोटों को खींचकर भाजपा के पाले में लाने की कोशिश की जाएगी। बीजेपी 2024 आम चुनाव के लिए अपने तरकश के हर तीर को आज़मा रही है। यह सिर्फ़ भाजपा जानती है कि वह कितनी सफल होगी। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में डेढ़ साल से कम का समय बचा है। लेकिन इसकी तैयारियां अभी से शुरु हो गई हैं। हर राजनीतिक पार्टी और नेता अपने स्तर से चुनाव में जाने की तैयारियां कर रहा है।

एक तरफ विपक्ष के क्षेत्रीय दल हैं, जो लगातार तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस है, जो अपने नीचे किसी मोर्चे की संभावनाएं तलाश रही है। इस सबके बीच भाजपा है, जो हर समय चुनाव के मोड में रहती है। लोकसभा चुनाव को देखते हुए उसने भी अपने लिए नई संभावनाओं की तलाश शुरु कर दी हैं। इन संभावनाओं के पीछे की सोच यह कि दस साल सत्ता में रहने के बाद उसको जो नुकसान होगा उसे इन सीटों के जरिए पूरा किया जाए। इसके लिए वह वहां तक भी पहुंचने का प्रयास कर रही है, जहां उसकी पकड़ काफी कमजोर मानी जाती है।

भाजपा इस रणनीति के जरिए उस तबके तक पहुंचने की कोशिश कर रही है जो लंबे समय तक उससे दूर रहा है। भाजपा की राजनीति का बड़ा हिस्सा इस तबके के विरोध पर टिका हुआ है। संघ प्रमुख मोहन भागवत औऱ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालिया बयानों में इस तबके तक पहुंचने के प्रयास किए हैं। भाजपा का यह अभियान, प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी कार्यकर्ताओं से ज्यादा से ज्यादा अल्पसंख्यकों तक पहुंचने के आह्वाहन के बाद शुरु हुआ है।

भाजपा का यह अभियान शुरु हुआ है, उसके अल्पसंख्यक मोर्चा के तहत। जिसके लिए भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने 10 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 60 ऐसे लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की है,  जहां अल्पसंख्यकों की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है। पार्टी अगले चार महीनों में इन साठ सीटों पर अल्पयंख्यों तक पहुंचने की कोशिश करेगी। इसमें वह अल्पसंख्यक समाज से आने वाले प्रबुद्ध तबके को भी शामिल करेगा। भाजपा की इस लिस्ट में राहुल गांधी के प्रतिनिधित्व वाली वायनाड सीट को भी शामिल किया गया है।

भाजपा के कार्यकर्ता इन साठ सीटों में से हर एक पर 5,000 ऐसे लोगों की पहचान करेंगे जो प्रधानमंत्री मोदी या उनकी योजनाओं का समर्थन करते हैं। पार्टी ऐसे लोगों का प्रयोग समाज तक पहुंचने के लिए प्रचारकों के रूप में करेगी। भाजपा का यह अभियान मतदाताओं को प्रचारक के तौर पर इस्तेमाल करने जैसा है। पार्टी इसके लिए मार्च-अप्रैल में स्कूटर यात्रा और स्नेह यात्रा का आयोजन करेगी। चार महीने तक चलने वाले इस अभियान का समापन मई महीने में दिल्ली में प्रधानमंत्री की रैली से होगा। इस रैली में सभी साठ सीटों के सभी प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। 

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि ‘हमने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी जी द्वारा दिए गए संदेश को पूरा करने के लिए यह योजना तैयार की है।

भाजपा ने इस सूची जिन राज्यों की सीटों का चयन इस अभियान के लिए किया है उनमें पश्चिम बंगाल की बहरामपुर (64 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी), जंगीपुर (60 प्रतिशत), मुर्शिदाबाद (59 प्रतिशत) और जयनगर (30 प्रतिशत) शामिल हैं। बिहार की किशनगंज (67 प्रतिशत), कटिहार (38 प्रतिशत), अररिया (32 प्रतिशत), और पूर्णिया (30 प्रतिशत) सूची में हैं, जबकि केरल की जिन संसदीय सीटों पर भाजपा ध्यान केंद्रित करेगी, उनमें वायनाड (57 प्रतिशत अल्पसंख्यक), मलप्पुरम (69 प्रतिशत), पोन्नानी (64 प्रतिशत), कोझीकोड (37 प्रतिशत) शामिल हैं। वडकारा (35 प्रतिशत) और कासरगोड (33 प्रतिशत)। उत्तर प्रदेश की सीटों में बिजनौर (38.33 प्रतिशत), अमरोहा (37.5 प्रतिशत), कैराना (38.53 प्रतिशत), नगीना (42 प्रतिशत), संभल (46 प्रतिशत), मुजफ्फरनगर (37 प्रतिशत) और रामपुर (49.14 प्रतिशत) शामिल हैं। पार्टी ने हरियाणा से गुरुग्राम (38 प्रतिशत अल्पसंख्यक) और फरीदाबाद (30 प्रतिशत) को चुना है, जबकि हैदराबाद (41.17 प्रतिशत) और सिकंदराबाद (41.17 प्रतिशत) तेलंगाना की लोकसभा सीटें हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम को भी भाजपा की इस लिस्ट में शामिल किया गया है।

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तौर पर भाजपा जहां अल्पसंख्यकों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है, तो वहीं कांग्रेस धीरे-धीरे ही सही इस दिशा आगे बढ़ रही है। वह भी चुनावी तैयारियों में पीछे नहीं रहना चाहती है। इसके लिए उसने सालों पहले कांग्रेस से दूर छिटक गए दलित वोटर को अपने पाले में लाने के लिए प्लान तैयार किया है। उसने देश भर की 121 दलित वोटर बहुल वाली 56 ऐसी सीटों का चयन किया है जहां पर उसकी हार का मार्जिन कम था।

कांग्रेस ने इसको 'नेतृत्व विकास मिशन' का नाम दिया है। इस दौरान कांग्रेस अनुसूचित जाति, अनजनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के बीच से विधानसभा-वार ऐसे व्यक्तियों की पहचान करेगी जिनके पास पार्टी की मदद करने के लिए चुनावी कौशल औऱ जन समर्थन का आधार है। एससी-एसटी बहुलता वाली यह 56 सीटें 12 अलग-अलग राज्यों में फैली हुई हैं। अलग राज्यों में बिखरी ये सीटें वह सीटें हैं जहां कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर थी। रणनीतिकारों का मानना है कि वे कांग्रेस के लिए सबसे यहां अच्छी संभावनाएं हैं। संसाधनों को देश भर में लगाने से ज्यादा बेहतर है कि हम यहां फोकस करें।

कांग्रेस इस मिशन के तहत संसद-सीट प्रभारियों का एक ऐसा ढांचा खड़ा करेगी जो प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में समन्वयकों के जरिए काम करेगा। इनका काम क्षेत्र में दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के बीच समर्थन जुटा सकने में सक्षम व्यक्तियों की पहचान करेगा। इन लोगों को कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं की एक सूची सौंपी जाएगी। ऐसे लोगों को इस स्थिति में होमा चाहिए कि वह उम्मीदवार की प्रचार योजना को भी संभाल सकें। इन लोगों के पास घर घर तक पहुंने के लिए एक महीने का ही समय है।

कांग्रेस का यह मिशन राहुल गांधी के प्रमुख सहयोगी के. राजू की देखरेख में शुरु होगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे 'उच्च प्राथमिकता' पर रखा है।

कांग्रेस की अनुसूचित जाति की सीटों वाली लिस्ट में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान से चार-चार सीटें ली गई हैं, इसके अलावा तेलंगाना में तीन, बिहार, गुजरात और हरियाणा में दो-दो सीटें चुनी गई हैं। एसटी के लिए आरक्षित सीटों में मध्य प्रदेश से छह,  गुजरात में चार, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तीन-तीन, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में दो-दो सीटें चुनी गई हैं।

कांग्रेस अगर इस वोटर समूह तक पहुंच जाती है तो उसके लिए बेहतर स्थिति होगी क्योंकि दलित औऱ आदिवासी लंबे समय तक कांग्रेस का वोटर बेस रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से छिटका हुआ है। माना जाता है कि सवर्ण वोटर अभी भी उसके साथ है, पिछड़ा वर्ग का भी कुछ हिस्सा उसके साथ है। लेकिन दलित वोटर है जो उसके पाले में आ सकता है।

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