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आरएसएस पर पहले लग चुका है बैन!

आरएसएस पर पहले लग चुका है बैन!

पीएफआई पर प्रतिबंध क्या लगा, अब आरएसएस पर प्रतिबंध लगाए जाने की बहस छिड़ गई है। बीजेपी के मंत्री संघ पर प्रतिबंध लगाने की चुनौती क्यों दे रहे हैं? क्या इसका कुछ ऐसा इतिहास है? 

आरजेडी नेता लालू यादव ने जब कहा कि पीएफ़आई से पहले आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए था तो बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भड़क गए। उन्होंने लालू को चुनौती दे डाली कि वे आरएसएस पर प्रतिबंध लगाकर दिखाएँ।

गिरिराज सिंह ने कहा, 'हमें आरएसएस का स्वयंसेवक होने पर गर्व है, क्या लालू यादव कह सकते हैं कि वह पीएफ़आई के सदस्य हैं? बिहार में उनकी सरकार है, हिम्मत है तो बिहार में आरएसएस को बैन कर दो।' तो क्या उनकी इस चुनौती को स्वीकार की जा सकती है? क्या आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का कुछ आधार है? क्या आरएसएस पर पहले किन्हीं वजहों से प्रतिबंध लगाया गया था? आइए, हम आपको बताते हैं कि आख़िर आरएसएस का इतिहास क्या है। संघ पर अब तक तीन बार प्रतिबंध लग चुके हैं। 

संघ पर पहला प्रतिबंध डेढ़ साल का

वैसे तो आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का इतिहास शुरू होता है 1925 में नागपुर से। उस साल 27 सितंबर को उसका गठन किया गया था। लेकिन इसके इतिहास में नया मोड़ तब आया जब  30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी। नाथूराम गोडसे ने हत्या की थी। नाथूराम गोडसे का आरएसएस में शामिल होने का दाग कभी संघ धो नहीं सका है। आरोप संघ पर लगा था। संघ प्रमुख एमएस गोलवलकर गांधीजी की हत्या के बाद गिरफ्तार हुए थे। यह बहुत बड़ा दाग है जो मिटाए नहीं मिटता। लेकिन, सच यह भी है कि महात्मा गांधी की हत्या में न तो आरएसएस की संलिप्तता प्रमाणित हो सकी और न ही एम.एस गोलवलकर की। यही बात संघ और संघ समर्थक अपने बचाव में पेश करते रहे हैं।

गांधी जी की हत्या के क़रीब 5 महीने बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक चिट्ठी लिखी थी। लल्लनटॉप की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने उस चिट्ठी में लिखा, 'गांधी जी की हत्या का केस अभी कोर्ट में है इसीलिए आरएसएस और हिंदू महासभा, इन दोनों संगठनों के शामिल होने पर मैं कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन हमारी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि होती है कि जो हुआ, वो इन दोनों संगठनों की गतिविधियों का नतीजा है। खासतौर पर आरएसएस के किये का। देश में इस तरह का माहौल बनाया गया कि इस तरह की भयानक घटना मुमकिन हो पाई। मेरे दिमाग में इस बात को लेकर कोई शक नहीं कि हिंदू महासभा का कट्टर धड़ा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल था। आरएसएस की गतिविधियों के कारण भारत सरकार और इस देश के अस्तित्व पर सीधा-सीधा खतरा पैदा हुआ।'

गांधी की हत्या के बाद 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था। यह प्रतिबंध 18 महीने यानी डेढ़ साल बाद ही 11 जुलाई 1949 को सरकार ने संघ पर से सशर्त हटाया।

प्रतिबंध हटाने के लिए संघ को ये शर्तें मानने के लिए कहा गया-

  • आरएसएस अपना संविधान बनाएगा और संगठन का चुनाव करवाएगा।
  • आरएसएस किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेगा।
  • वह खुद को सांस्कृतिक गतिविधियों तक सीमित रखेगा।

इन शर्तों के बाद आरएसएस कभी सीधे तौर पर राजनीति में नहीं कूदा, लेकिन उसने अपना एक राजनीतिक दल बनवा लिया। 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ बना जो कि आगे चलकर क़रीब 30 साल बाद भारतीय जनता पार्टी में बदल गया। 

आपातकाल में संघ पर दूसरा प्रतिबंध

संघ पर दूसरी बार प्रतिबंध 1975 में आपातकाल के समय लगा था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक शिष्टाचार तथा सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर अपनी सत्ता बचाने के लिए आपातकाल थोप दिया था। सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘समग्र क्रांति आंदोलन’ चल रहा था। उस आंदोलन में अन्य संगठनों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शामिल था। तब कई संगठनों के साथ संघ पर भी 4 जुलाई 1975 को प्रतिबंध लगा दिया गया था। आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस को भी गिरफ़्तार किया गया था। 

आख़िर में देश में हो रहे भारी विरोध और दबाव के कारण आपातकाल को हटाना पड़ा और आम चुनाव की घोषणा कर दी गई। इंदिरा गांधी चुनाव में हारीं और जनता पार्टी की सरकार आई। इसके सत्ता में आते ही संघ पर से प्रतिबंध हटा लिया गया। 

 - Satya Hindi

बाबरी विध्वंस के बाद तीसरा प्रतिबंध

आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध तब लगा था जब इसका राजनीतिक संगठन बीजेपी भारतीय राजनीति में अपना पैर फैलाने की कोशिश कर रही थी। 1984 के चुनाव में उसे दो सीटें मिली थीं। वह किसी बड़े मुद्दे की तलाश में थी। तभी 1986 में अयोध्या में विवादित परिसर का ताला खुल गया। आरएसएएस और बीजेपी ने इस मुद्दे को लपक लिया। हिंदू-मुसलिम की राजनीति अब तेज हो गई थी। इस बीच 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढाँचे का गुंबद ढहा दिया गया। इसके बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। आरोप विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस पर लगा। इसी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरहिंव राव ने 10 दिसंबर 1992 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में जब इस मामले की जाँच हुई तो संघ के ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत नहीं मिले। इसके बाद 4 जून 1993 को सरकार ने संघ पर से प्रतिबंध हटा लिया। 

बहरहाल, अब संघ का नाम इसलिए चर्चा में आया है क्योंकि पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया गया है। कई विपक्षी दलों के नेता मांग कर रहे हैं कि पीएफ़आई की तरह ही आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। और इसी को लेकर बीजेपी के मंत्री गिरिराज सिंह ने चुनौती दी है कि हिम्मत है तो बिहार सरकार प्रतिबंध लगाकर दिखाए। तो सवाल वही है कि क्या इस चुनौती को स्वीकार किया जाएगा?

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