भाजपा की नॉर्थ ईस्ट में हारः क्या मणिपुर और हिन्दुत्व का मुद्दा उसे भारी पड़ा?
नागालैंड, मणिपुर और मेघालय के चुनाव नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों ने एक बार फिर एनडीए के मुकाबले प्रभावी नियंत्रण हासिल कर लिया है। पूर्वोत्तर (नॉर्थ ईस्ट) में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की हार हैरान कर देने वाली है। नतीजों के बाद इन राज्यों के भाजपा प्रभारी और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने एक्स पर इसका अलग ही कारण पेश कर दिया। सरमा ने लिखा कि “एक विशेष धर्म के नेताओं जो आमतौर पर राजनीति में नहीं आते हैं ने एनडीए से लड़ने का फैसला किया। हम राजनीतिक विरोधियों से लड़ सकते हैं लेकिन धार्मिक नेताओं से नहीं।”
Regarding results in Nagaland, Manipur and Meghalaya my specific observation is that leaders from a particular religion - who usually do not get into politics - decided to fight the NDA. We can fight political opponents but not religious leaders. #PressMeet
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) June 5, 2024
📍Guwahati pic.twitter.com/byPyJs9SG2
नॉर्थ ईस्ट के नागालैंड, मेघालय और मिजोरम में ईसाई भारी संख्या में रहते है। यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश में आदिवासी ईसाइयों की ठीकठार मौजूदी है। जबकि भाजपा अरुणाचल में जीती है। सिविल सोसाइटी और राजनीतिक विश्लेषक मीडिया को बता रहे हैं कि सरमा ने अंधेरे में तीर चलाया है, ताकि पता लगा सकें कि इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। शिलांग ऑल फेथ फोरम के अध्यक्ष बिशप प्योरली लिंगदोह ने कहा कि उम्मीद है कि सरमा की टिप्पणी "निराशा में बाहर" नहीं आई होगी। मेघालय में वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी (वीपीपी) और कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती है।
बिशप लिंगदोह ने कहा कि “उम्मीद है, उन्होंने (सरमा) ने जो कहा उसका वो मतलब नहीं होगा। क्योंकि सभी धर्मों के लोग यहां लंबे समय से रह रहे हैं। हम एकसाथ हैं। हमने कभी किसी से पार्टी या उम्मीदवारों के लिए अपील भी नहीं की। लेकिन हमने लोगों से यह जरूर कहा कि वोट देने से पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल करें।''
अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान सलाहकार टोको टेकी ने कहा, “सरमा ने जो भी कहा वह सच है। हालांकि हमने ऐसा नहीं किया। लेकिन, आप इस बारे में क्या कर सकते हैं? आप जो कर सकते हैं वह उस 'विशेष धर्म' से जुड़े लोगों के गुस्से, शिकायतों का समाधान करना है, चाहे वह पूर्वोत्तर हो या पूरे देश में हो।'
जरा नॉर्थ ईस्ट के नतीजों पर नजर डालें। एनडीए वहां 16 सीटों पर आ गया, जो 2019 की तुलना में तीन कम है। कांग्रेस ने 7 सीटें जीतीं जो 2019 की तुलना में तीन ज्यादा है। नागालैंड में उसने वापसी की, जहां उसने 20 साल बाद एकमात्र लोकसभा सीट जीती। भाजपा को सोचना होगा कि नॉर्थ ईस्ट में एनडीए के पक्ष में क्या गलत हुआ। हैरानी की बात है कि ऐसा तब हुआ जब मिजोरम के सत्तारूढ़ ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) और मेघालय के वीपीपी को छोड़कर, पूर्वोत्तर में अधिकांश क्षेत्रीय दल एनडीए के साथ हैं, जो तटस्थ हैं। ये सारे दल तो ईसाई बहुलता वाले हैं। इसके बावजूद भाजपा या एनडीए को वोट नहीं मिले।
क्षेत्र की 25 लोकसभा सीटों में से भाजपा की सहयोगी पार्टियां तीन सीट जीतने में कामयाब रहीं। जिसमें असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) ने क्रमशः असम की बारपेटा और कोकराझार सीटें जीतीं, जबकि एनडीए सदस्य सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ( एसकेएम) ने सिक्किम में एकमात्र सीट जीती।
दूसरी तरफ मेघालय की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), मणिपुर की नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), और नागालैंड की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) जैसे एनडीए सदस्य क्रमशः तुरा, बाहरी मणिपुर और नागालैंड सीटें जीतने में नाकाम रहे। भाजपा ने मिजोरम में भी चुनाव लड़ा, लेकिन एनडीए सदस्य मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के साथ गठबंधन नहीं किया। यह सीट क्षेत्रीय जेडपीएम के पास चली गई।
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कुल मिलाकर नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा। उसने मणिपुर की दोनों सीटें, नागालैंड और मेघालय में 1-1 सीट और असम में 3 सीटें जीती हैं। एनडीए ने 16 सीटों पर जीत हासिल की हैं। लेकिन ये वही सीटें हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा और उसकी 'हिंदुत्व' विचारधारा के साथ गठबंधन करने वाले सत्तारूढ़ दलों को आदिवासी मतदाताओं ने पसंद नहीं किया है। अरुणाचल में आदिवासी संगठनों की शीर्ष संस्था नागा होहो के महासचिव के. एलु एनदांग ने कहा, "लोगों ने नागालैंड, असम, मणिपुर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) सरकार को नहीं, बल्कि भाजपा को उसके ईसाई विरोधी और धार्मिक असहिष्णुता के लिए खारिज किया है।" असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा फरवरी 2024 में ईसाई विरोधी असम हीलिंग (बुराइयों की रोकथाम) प्रथा विधेयक 2024 लाए थे। उस विधेयक से भी ईसाइयों ने असहज महसूस किया।
एक हिंदू संगठन कुटुंबा सुरक्षा परिषद ने ईसाई स्कूलों से यीशु और मैरी की तस्वीरों और मूर्तियों सहित सभी ईसाई प्रतीकों को हटाने का आदेश दिया और नहीं हटाने पर कार्रवाई की धमकी दी। इसने भी पूरे पूर्वोत्तर में ईसाइयों की भावनाओं को आहत किया। मणिपुर में जिस तरह से आदिवासी ईसाइयों का नरसंहार हुआ, उसके लिए भी वहां की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है। लोगों का कहना है कि मणिपुर में एक समुदाय को दूसरे से लड़ाया गया। वहां सदियों पुराना भाईचारा खत्म हो गया।