पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी को ‘देशद्रोही’ बताने का अभियान और अब खुलेआम हत्या की धमकी! पीएम मोदी विदेश जाकर भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ बताते नहीं थकते, लेकिन उनके राज में भारत माँ के उस बेटे की जान ख़तरे में है जिसे देश की जनता ने विपक्ष के सबसे बड़े नेता की कुर्सी पर बैठाया है। राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ बीजेपी नेताओं की ओर से जैसा घृणा प्रचार चलाया जा रहा है, उसकी तुलना सिर्फ़ आरएसएस की ओर से महात्मा गाँधी के ख़िलाफ़ चलाये गये घृणा-अभियान से की जा सकती है। जिसे सरदार पटेल ने महात्मा गाँधी की हत्या का मूल कारण बताया था।
दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक तरविंदर सिंह मारवाह ने 11 सितंबर को राहुल गाँधी के आवास के बाहर किये गये बीजेपी के एक प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सीधे हत्या की धमकी दी। देश की राजधानी में भरी दोपहर बीजेपी नेता ने सैकड़ों लोगों के सामने तरविंदर सिंह मारवाह ने कहा- “राहुल गांधी बाज आ जा, नहीं तो आने वाले टाइम में तेरा भी वही हाल होगा जो तेरी दादी का हुआ!”
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की शहादत इस देश की ‘एकता और अखंडता’ के लिए दिया गया सर्वोच्च बलिदान था। हर सच्चे भारतीय का सिर इस शहादत के सामने झुकता है। स्वतंत्रता सेनानी रही लौह महिला इंदिरा का बलिदान आधुनिक भारत के इतिहास में साहस और संकल्प का ऐसा चमकता अध्याय है जिसे कभी भुलाया नहीं सकता। लेकिन बीजेपी नेता कह रहे हैं कि राहुल गाँधी का भी ‘वही अंजाम’ होगा!
राहुल गाँधी को दी गयी धमकी में ये बात शामिल है कि बीजेपी नेता इंदिरा गाँधी के ‘अंजाम’ से ख़ुश हैं और उनके तार उन्हीं खालिस्तानी आतंकवादियों से जुड़े हैं जिन्होंने इंदिरा गाँधी के ‘बाज़ न आने पर’ उनकी हत्या कर दी थी। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल (एसपीजी) का गठन हुआ था। यह भुलाया नहीं जा सकता कि 2019 में मोदी सरकार ने गाँधी परिवार को मिली एसपीजी सुरक्षा हटा ली थी। ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी नहीं किया था क्योंकि उसे पता था कि इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की हत्या करने वालों के निशाने पर पूरा गाँधी परिवार है। लेकिन ख़ुद को ‘ईश्वरीय अवतार’ मान चुके पीएम मोदी को लगता है कि इस विशेष सुरक्षा के हक़दार केवल वही हैं, वह परिवार नहीं जिसके दो सदस्य देश पर क़ुर्बान हो गये।
बीजेपी का प्रचार-तंत्र याद दिला रहा है कि तरविंदर सिंह मारवाह पहले कांग्रेस में थे और राहुल गाँधी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान उनकी तारीफ़ की थी। यह कोई बचाव नहीं बल्कि सबूत है कि बीजेपी में जाने पर नेताओं और कार्यकर्ताओं को घृणा का राजनीतिक दर्शन और प्रचार आत्मसात करना होता है। राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ हुआ प्रदर्शन इसी घृणा-प्रचार का नमूना है।
गोदी मीडिया के नफ़रती एंकरों और बीजेपी के पूरे प्रचारतंत्र की ओर से बीते कुछ दिनों से लगातार यह असत्य प्रचार किया जा रहा है कि राहुल गाँधी ने अमेरिका में कहा कि ‘भारत में सिख पगड़ी और कड़ा पहनकर गुरुद्वारों में नहीं जा सकते।”
राहुल ने यह बात अंग्रेज़ी में कही थी। हो सकता है प्रधानमंत्री मोदी का हाथ अंग्रेज़ी में तंग हो, लेकिन उनके इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अंग्रेज़ी जानते-समझते हैं। फिर यह झूठ कैसे फैला?
राहुल गाँधी वर्जीनिया में भारतीय समुदाय को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने वहाँ मौजूद एक सिख से नाम पूछा और कहा “First of all, you have to understand what the fight is about. Fight is not about politics. It is superficial. What is your name? The fight is about whether...he as a Sikh is going to be allowed to wear his turban in India. Or he as a Sikh is going to be allowed to wear a kada in India. Or a Sikh is going to be able to go to Gurdwara. That's what the fight is about and not just for him, for all religions.” (सबसे पहले आपको ये समझना होगा कि लड़ाई किस बात को लेकर है। लड़ाई राजनीति के बारे में नहीं है। यह सतही है। आपका क्या नाम है? लड़ाई इस बात को लेकर है कि क्या...एक सिख के रूप में उन्हें भारत में अपनी पगड़ी पहनने की अनुमति दी जाएगी? या फिर उन्हें एक सिख के तौर पर भारत में कड़ा पहनने की इजाजत दी जाएगी? या फिर कोई सिख गुरुद्वारे में जा सकेगा? लड़ाई इसी बारे में है और सिर्फ इनके लिए नहीं, सभी धर्मों के लिए है।)
स्पष्ट है कि राहुल गाँधी यह नहीं कह रहे हैं कि भारत में सिख गुरुद्वारे नहीं जा सकते या कड़ा और पगड़ी नहीं पहन सकते हैं। राहुल गाँधी बता रहे हैं कि उनकी लड़ाई उस विचारधारा से है जो ऐसी स्थिति ला सकती है! क्या यह सच नहीं है कि आरएसएस और बीजेपी के तमाम नेताओं की ओर से बार-बार भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को नष्ट करने और हिंदू राष्ट्र बनाने की बात खुलेआम कही जाती है? क्या यह सच नहीं है कि आरएसएस के तमाम सिद्धांतकारों ने यह बात डंके की चोट पर कही और लिखी है जिनमें आरएसएस प्रमुख रहे गुरु गोलवलकर से लेकर के.सी.सुदर्शन तक शामिल रहे हैं जो मोहन भागवत से पहले सरसंघचालक के पद पर थे? वरिष्ठ पत्रकार करन थापर को दिये गये एक इंटरव्यू में के.सी.सुदर्शन ने साफ़ कहा था कि संघ भारत के संविधान को नहीं मानता। सुदर्शन ने भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बताते हुए अल्पसंख्यक की अवधारणा और उनके अधिकारों को मानने से इंकार कर दिया था। सिख भारत में अल्पसंख्यक समुदाय है और उसका भविष्य अल्पसंख्यकों को मिले संवैधानिक अधिकार से जुड़ा हुआ है। बीजेपी के तमाम नेताओं की ओर से दिल्ली घेरने वाले किसानों को ‘खालिस्तानी’ कहा गया था। यह वही ख़तरा है जिसकी ओर राहुल गाँधी इशारा कर रहे हैं।
बीजेपी में सिखों की अल्पसंख्यक पहचान को अपमानित करने की प्रवृत्ति इतनी स्पष्ट है कि इसी साल फ़रवरी में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल में तैनात एक आईपीएस अफ़सर जसप्रीत सिंह को भी खालिस्तानी कह दिया था। जसप्रीत सिंह उनके प्रदर्शन को रोकने का प्रयास कर रहे थे। जसप्रीत सिंह का वीडियो पूरे देश ने देखा था जिसमें वे कह रहे थे-
‘सिर्फ इसलिए कि मैंने पगड़ी पहनी है, आप लोग मुझे खालिस्तानी कह रहे हैं? क्या आपने यही सीखा है? यदि कोई पुलिस अधिकारी पगड़ी पहनता है और अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाता है, तो वह आपके लिए खालिस्तानी बन जाता है? आपको शर्म आनी चाहिए… मैं तो बस अपना काम कर रहा हूँ। क्या मैंने आपके धर्म के बारे में कुछ कहा? आप मेरे धर्म के बारे में क्यों बोल रहे हैं?’
वर्जीनिया में राहुल गाँधी जसप्रीत सिंह की पीड़ा को ही स्वर दे रहे थे। वे ‘हिंदूराष्ट्र’ के प्रोजेक्ट के बरक्स अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठा रहे थे। सामने बैठे सिख सज्जन को उन्होंने उदाहरण के बतौर पेश किया लेकिन बात सभी धर्मों की आज़ादी के लिए की थी। यानी वे संविधान की उसी प्रस्तावना को दोहरा रहे थे जिसमें देश के हर नागरिक को धार्मिक आज़ादी की गारंटी देने की बात कही गयी है और जिसे आरएसएस और बीजेपी बदलने की कोशिशों में जुटे हैं। यह कोई हवाई आरोप नहीं है, अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते बाक़ायदा संविधान समीक्षा आयोग गठित किया गया था।
ऐसे में राहुल के बयान को ‘भारत में सिखों की पगड़ी और कड़ा पहनने पर पाबंदी’ बताना सिर्फ़ शैतानी दिमाग़ की उपज है। ऐसा दुष्प्रचार जो लोगों में किसी के प्रति ऐसी नफ़रत भर देता है कि वे किसी की जान भी ले सकते हैं। साज़िश रचने वालों को ख़ुद चाकू या बंदूक़ चलाने की ज़रूरत नहीं होती, उनके द्वारा तैयार ‘जॉम्बी’ ही ये काम कर देते हैं।
महात्मा गाँधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे प्रतिबंध को सही बताते हुए सरदार पटेल ने 11 सितंबर 1948 को गुरु गोलवलकर को लिखे पत्र में कहा था- ‘‘हिंदुओं को संगठित करना और उनकी सहायता करना एक बात है, लेकिन अपनी तकलीफों के लिए बेसहारा और मासूम पुरुषों, औरतों और बच्चों से बदला लेना बिल्कुल दूसरी बात… इसके अलावा ये भी था कि उनके कांग्रेस विरोध ने, वो भी इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख्याल, न सभ्यता का, न शिष्टता का, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा कर दी। इनके सारे भाषण सांप्रदायिक विष से भरे थे, हिंदुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबंध करने के लिए आवश्यक न था कि जहर फैले। इस जहर का फल अंत में यही हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को सहनी पड़ी। सरकार व जनता की रत्ती भर सहानुभूति आरएसएस के साथ न रही बल्कि उनके ख़िलाफ़ ही गई। गांधी जी की मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया और मिठाई बांटी, उससे यह विरोध और भी बढ़ गया। इन हालात में सरकार को आरएसएस के खिलाफ कदम उठाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था।”
सरदार पटेल के इस पत्र में आरएसएस का मूल चरित्र झलकता है। समाज में ज़हर फैलाने, विरोधियों के प्रति दुष्प्रचार में सभ्यता की हर सीमा पार कर जाने और हत्या के बाद मिठाई बाँटने की वही शैतानी प्रवृत्ति आज राहुल गाँधी को निशाना बना रही है। लेकिन देश अब एक और गाँधी का बलिदान बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। इस शैतानी प्रवृत्ति को रोकना ही सच्ची देशभक्ति है!