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'फ़ेक न्यूज़' फैलाने के लिए चर्चा में क्यों हैं बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय?

'फ़ेक न्यूज़' फैलाने के लिए चर्चा में क्यों हैं बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय?

अमित मालवीय बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख हैं। और यह वह पार्टी है जो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। क्या ऐसी पार्टी के आईटी सेल के हेड से उम्मीद की जा सकती है कि वह 'फ़ेक न्यूज़' सोशल मीडिया पर पोस्ट करें?

अमित मालवीय को तो जानते ही होंगे। अमित शाह की पार्टी बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख हैं। मतलब बीजेपी में पार्टी अध्यक्ष की तरह वह भी बीजेपी आईटी सेल के सर्वेसर्वा हैं। और यह वह पार्टी है जो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। क्या ऐसी पार्टी के आईटी सेल के हेड से उम्मीद की जा सकती है कि वह 'फ़ेक न्यूज़' सोशल मीडिया पर पोस्ट करें वह भी कभी-कभी नहीं, बल्कि एक के बाद एक लगातार ऐसी पोस्ट करते रहें और जब फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइटें साफ़ कर दें कि उन्होंने जो शेयर किया है वह फ़ेक है या तोड़मरोड़कर पेश किया गया है तब भी वह अधिकतर पोस्ट को न हटाएँ। ऐसे में क्या कहेंगे

हो सकता है कि आप में से कई लोग उन्हें बीजेपी से जुड़े होने के कारण जानते हों और यह भी हो सकता है कि आप कई बार उनके द्वारा 'फ़ेक न्यूज़' पोस्ट करने पर ख़बरों में बने रहने के कारण उन्हें जानते हों। फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज़', 'न्यूज़लाउंड्री इन्वेस्टिगेशन' और दूसरी वेबसाइटें कई बार मालवीय के पोस्ट को फ़ेक बता चुकी हैं। 'स्क्रॉल डॉट इन' ने भी ऐसे फ़ेक न्यूज़ को लेकर रिपोर्ट छापी है। 

अमित मालवीय ने कई बार बिना किसी आधार के ही या बिना जाँच पड़ताल किए सोशल मीडिया पर वीडियो या मैसेज शेयर किए हैं। 15 जनवरी को मालवीय ने नागरकिता क़ानून के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रहे लोगों के बारे में दावा किया था कि वे पैसे लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।  'ऑल्ट न्यूज़', 'न्यूज़लाउंड्री इन्वेस्टिगेशन' ने इन आरोपों को निराधार बताया था। 

पिछले साल 28 दिसंबर को मालवीय ने लखनऊ में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के वीडियो को शेयर करते हुए दावा किया था कि वे 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगा रहे हैं।

'ऑल्ट न्यूज़' ने इस दावे को झूठा पाया। प्रदर्शन करने वालों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारे नहीं लगाए थे, बल्कि वे 'काशिफ साब ज़िंदाबाद' के नारे लगा रहे थे। वे ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुसलिमीन पार्टी के लखनऊ के प्रमुख काशिफ अहमद का ज़िक्र कर रहे थे। पार्टी के उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष हाजी शौकत अली ने  'ऑल्ट न्यूज़' से कहा था कि काशिफ अहमद ने लखनऊ में 13 दिसंबर को प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। 

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ ही प्रदर्शन करने वाले अलीगढ़ मुसलिम यूनिर्सिटी के बारे में अमित मालवीय ने 16 दिसंबर को एक वीडियो शेयर किया था। वीडियो के साथ कैप्शन में उन्होंने लिखा था, 'एएमयू के छात्र हिंदुओं की कब्र खुदेगी, एएमयू की धरती पर...' 

लेकिन सचाई इससे अलग थी। वास्तव में छात्र हिंदुत्व, सावरकार, बीजेपी, ब्राह्मणवाद और जातिवाद के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी कर रहे थे। वे वीडियो में कहते हैं, 'हिंदुत्व की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर..., सावरकर की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर..., ये बीजेपी की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर..., ब्राह्मणवाद की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर..., ये जातीवाद की कब्र....।'

'द वायर' की आरफ़ा ख़ानम के अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में दिए संबोधन के वीडियो को अमित मालवीय ने 26 जनवरी को शेयर किया था। इसमें उन्होंने दावा किया था कि आरफ़ा एक इसलामिक समाज की स्थापना को बढ़ावा दे रही थीं और प्रदर्शनकारियों से आग्रह कर रही थीं कि जब तक ऐसे समाज का निर्माण नहीं हो जाता तब तक ग़ैर-मुसलिमों को समर्थन करने का ढोंग करना चाहिए।

'स्क्रॉल डॉट इन' ने लिखा है कि आरफ़ा का कहने का मतलब इसके उलट था- उन्होंने लोगों से आग्रह किया था कि वे धार्मिक नारों का उपयोग न करें और इस आंदोलन के धर्मनिरपेक्ष रूप को बरकरार रखें।

नेहरू पर निशाना

नवंबर 2017 में मालवीय ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अलग-अलग महिलाओं के साथ तसवीरों का कोलाज बनाकर एक ट्विट किया था। जबकि सचाई यह है कि नेहरू की वे सारी तसवीरें बहन, भतीजी या दुनिया की बड़ी हस्तियों के साथ की हैं। 'स्क्रॉल डॉट इन' ने लिखा है कि बाद में मालवीय ने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था।

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फ़ोटो साभार: 'स्क्रॉल डॉट इन'

27 नवंबर 2018 को बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख मालवीय ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक वीडियो से छोटे से क्लिप को काटकर ट्वीट किया था। इसमें मनमोहन सिंह को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि 'मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारें काफ़ी अच्छी थीं।' इस वीडियो को शेयर कर यह संदेश देने की कोशिश की गई थी कि तब इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार अच्छी थी और मनमोहन सिंह ख़ुद तारीफ़ कर रहे थे। 

'स्क्रॉल डॉट इन' के अनुसार, वीडियो की पड़ताल में पाया गया कि क्लिप को काटकर सिंह के बयान को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया। जबकि वीडियो में मनमोहन सिंह ने पूरी बात यह कही थी, 'मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों के साथ मेरे संबंध काफ़ी अच्छे थे।'

नवंबर 2017 में अमित मालवीय ने दावा किया था कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर में एक ग़ैर हिंदू के रूप में दस्तख़त किए थे। मालवीय ने लिखा था कि 'राहुल गाँधी ने तो ख़ुद को ग़ैर हिंदू घोषित किया है लेकिन चुनाव घोषणा पत्र में वे हिंदू होने का दावा करते हैं। गाँधी परिवार के लोग अपनी आस्था के बारे में झूठ बोल रहे हैं'

'ऑल्ट न्यूज़' ने इसकी पड़ताल कर लिखा है, 'हालाँकि उनकी हैंडराइटिंग विश्लेषण से पता चलता है कि उस रजिस्टर में लिखी गई हैंडराइटिंग सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध राहुल गाँधी की हैंडराइटिंग से मैच नहीं करती है। 

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फ़ोटो साभार: ऑल्ट न्यूज़

अमित मालवीय ने 15 नवंबर 2017 को राहुल गाँधी के ही एक वीडियो क्लिप को शेयर किया था। इस वीडियो में राहुल गाँधी यह कहते सुने जा सकते हैं, 'ऐसी मशीन लगाऊंगा इस साइड से आलू घुसेगा उस साइड से सोना निकलेगा …' इस क्लिप के साथ मालवीय ने कैप्शन लिखा था, 'लोग इसे मेरे पास भेज रहे हैं और भौंचक्के होकर पूछ रहे हैं कि क्या वास्तव में उन्होंने यह कहा है...। बिल्कुल उन्होंने कहा!'

जबकि सचाई यह है कि राहुल गाँधी प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध रहे थे। वीडियो में पूरी बात इसके ठीक उलट है। वीडियो में राहुल गाँधी कहते हैं, 'कुछ महीने पहले यहाँ बाढ़ आयी 500 करोड़ रुपये दूँगा, (पीएम मोदी ने) एक भी रुपया नहीं दिया। आलू के किसानों को कहा ऐसी मशीन लगाऊँगा इस साइड से आलू घुसेगा उस साइड से सोना निकलेगा… मेरे शब्द नहीं हैं, नरेंद्र मोदीजी के शब्द हैं।' यानी जो बात वह तंज में प्रधानमंत्री के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे उसे क्लिप में काट दिया गया था। 

अगस्त 2017 में अमित मालवीय ने एक ख़बर के स्क्रीनशॉट को पोस्ट करते हुए दावा किया था कि राहुल गाँधी ने समर्थन माँगने के लिए हाल ही में जनवरी 2017 में डेरा सचा सौदा का दौरा किया था। बाद में मालवीय ने उसे डिलीट कर दिया था।

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जो स्क्रीनशॉट मालवीय ने पोस्ट किया था वह दरअसल 'इंडियन एक्सप्रेस' की 29 जनवरी 2017 की ख़बर का था। उन्होंने उस ख़बर के उस हिस्से को दिखाया जिससे इसको तोड़मरोड़कर पेश किया जा सके। 'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर में साफ़ लिखा था कि राहुन ने जालंधर में डेरा सच खंड बलान का दौरा किया। यानी राहुल ने डेरा सचा सौदा का दौरा नहीं किया था जिसका प्रमुख गुरमीत राम रहीम बलात्कार और हत्या के मामले में जेल में है। 

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले इसी साल 31 जनवरी को मालवीय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का एक वीडियो ट्वीट किया था। उसमें उन्होंने दावा किया कि केजरीवाल के रोडशो में एक व्यक्ति को लिंच कर दिया गया।

यह घटना लोकसभा चुनाव से पहले की चुनावी रैली की है। 'ऑल्ट न्यूज़' के अनुसार, मालवीय ने पूरे वीडियो को नहीं दिखाया। पूरे वीडियो की सचाई यह है कि केजरीवाल को एक व्यक्ति ने थप्पड़ मारा था और फिर केजरीवाल के समर्थकों ने उसकी पिटाई कर दी थी। उस व्यक्ति को लिंच नहीं किया गया था, बल्कि बुरी तरह ज़रूर पीटा था। 

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अमित मालवीय ने कथित रूप से कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज के एक छात्र के मैसेज को ट्वीट किया था। इसमें दावा गया था कि तब बीजेपी के प्रमुख अमति शाह की रैली के दौरान कॉलेज कैंपस में हिंसा और ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा को तोड़ने के लिए टीएमसी ज़िम्मेदार थी।

लेकिन वह मैसेज कई अन्य लोगों द्वारा मैसेज को शेयर करते हुए यही दावा किया गया था। ऐसे कई मैसेजों के बाद एक ट्विटर यूज़र ने लिखा था- 'आज पूरी फ़ेसबुक कह रही है- मैं विद्यासागर का छात्र हूँ।' ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी पूरी पड़ताल की थी और पाया था कि कोई भी तथ्य अमित मालवीय के ट्वीट का समर्थन नहीं करते हैं और उनके द्वारा लगाए गए आरोप तथ्यपरक नहीं थे।

2018 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को बड़ा झटका लगा था। इसके बाद मालवीय ने ट्वीट किया था- 7 फ़ीसदी वोट होने के बावजूद बीजेपी को एक सीट मिली जबकि एआईएमआईएम को सिर्फ़ 2.7 फ़ीसदी वोट मिले और सात सीटें जीत लीं। 

दरअसल वह इस ट्वीट से संदेह जता रहे थे। जबकि ऐसा करने का कोई कारण नहीं था। बीजेपी 119 विधानसभा सीटों में से 118 पर लड़ी थी। एआईएमआईएम सिर्फ़ आठ सीटों पर लड़ी थी। इसकी पकड़ आठों सीटों पर काफ़ी अच्छी थी और इसलिए इसने 7 सीटों पर जीत दर्ज की। यानी स्ट्राइक रेट क़रीब 87 फ़ीसदी रही। बीजेपी की पकड़ कहीं अच्छी नहीं थी, लेकिन हर उम्मीदवारों को कुछ न कुछ वोट मिले थे। हालाँकि इसने एक सीट भी जीती थी। इसकी स्ट्राइक रेट 0.85 फ़ीसदी थी। इस हिसाब से मालवीय का संदेह निराधार था। 

24 जनवरी 2019 को प्रयागराज के कुंभ मेले के दौरान गंगा में प्रधानमंत्री मोदी ने डुबकी लगाई थी। इस पर अमित मालवीय ने ट्वीट किया था कि मोदी राष्ट्र के पहले प्रमुख हैं जो इतने वर्षों में कुंभ में पहुँचे हैं।

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फ़ोटो साभार: स्क्रॉल डॉट इन

'ऑल्ट न्यूज़' ने फ़ैक्ट चेक कर बताया कि इनका दावा दो आधार पर ग़लत था। पहला यह कि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र के प्रमुख नहीं हैं, बल्कि देश के राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख होते हैं। इस हिसाब से कुंभ पहुँचने वाले पहले राष्ट्र प्रमुख भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे। 

और दूसरा यह कि मोदी पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जिन्होंने कुंभ की यात्रा की है। इससे पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 1954 में कुंभ में पहुँचे थे। 

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फ़ोटो साभार: ऑल्ट न्यूज़

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख मालवीय ने दावा किया था कि 2017 में अर्थशास्त्र में नोबेल जीतने वाले रिचर्ड थेलर ने मोदी की नोटबंदी के निर्णय का समर्थन किया था। 

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लेकिन जब थेलर को कहा गया कि 500 और 1000 के नोटों को बंद कर 2000 रुपये का नया नोट ला दिया गया है तो उनकी प्रतिक्रिया इसके उलट थी। लेकिन अमित मालवीय ने उनकी इस प्रतिक्रिया को जगह नहीं दी। ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार, पूरी नोटबंदी पर थेलर का बयान था- 'कैशलेश सोसाइटी और भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में यह कॉन्सेप्ट अच्छा था, लेकिन इसको लागू करने में भारी गड़बड़ियाँ थीं और 2000 रुपये का नया नोट शुरू करना पूरी प्रक्रिया को ही जटिल बना देता है।'

पिछले साल एक टीवी डिबेट में मालवीय ने राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव पर जाति की राजनीति करने का आरोप लगाया था। यादव ने चुनौती दी थी कि यदि ऐसा कोई भी सबूत मिले तो वह सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेंगे। इसी संदर्भ में अमित मालवीय ने योगेंद्र यादव के एक एडिटेड वीडियो को ट्वीट किया था। इसमें यादव को मुसलिम बाहुल्य मेवात क्षेत्र में मुसलिम पहचान की बात कहते सुना जा सकता है। इस वीडियो क्लिप के आख़िर में एक सवाल पूछा गया है कि आप सार्वजनिक जीवन से संन्यास कब ले रहे हैं

इसको योगेंद्र यादव ने ही ट्वीट कर साफ़ कर दिया। उन्होंने ट्वीट किया कि बीजेपी की झूठ की फ़ैक्ट्री ने चार चीजें छुपाईं। 

उन्होंने सवाल पूछे कि 'क्या 2014 में उन्होंने मुसलिम के नाम पर वोट माँगे' उन्होंने इस वीडियो की तारीख़ बताई कि यह वीडियो चुनाव के 3 साल बाद का है। संदर्भ है- हिंदू भीड़ द्वारा लिंचिंग के विरोध में प्रदर्शन का। 'स्क्रॉल डॉट इन' ने लिखा कि जो किसी चुनावी रैली का हिस्सा भी नहीं था उसके एक वीडियो के हिस्से को मालवीय ने एडिट कर ग़लत संदेश देने की कोशिश की।

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