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दिल्ली में जल्दी चुनाव कराने से क्यों डर रही है बीजेपी?

दिल्ली में जल्दी चुनाव कराने से क्यों डर रही है बीजेपी?

महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों के बाद बीजेपी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि वह झारखंड के साथ दिल्ली में भी चुनाव करा ले। दिल्ली में उसे अब राम मंदिर पर कोर्ट के फ़ैसले से ही उम्मीद है।

हरियाणा में सीधे-सीधे बहुमत खोने और महाराष्ट्र में हो रही फजीहत ने बीजेपी को बैकफ़ुट पर ला खड़ा किया है। जिस दिन इन दोनों राज्यों के एग्जिट पोल आए थे, उस दिन बीजेपी के नेता बल्लियों उछल रहे थे लेकिन अब हालत यह है कि वे तय समय से एक महीना पहले भी दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। बहुत-से लोग यह मान रहे थे कि झारखंड के साथ ही दिल्ली में भी चुनाव का ऐलान हो जाएगा। मगर, चुनाव आयोग ने दिल्ली का जिक्र तक नहीं किया। जाहिर है कि अब दिल्ली में विधानसभा चुनाव जनवरी के आख़िर में या फिर फ़रवरी के शुरू में ही होंगे।

हरियाणा में बीजेपी बहुमत से छह सीटें दूर रह गई थी और इससे उसे काफ़ी झटका लगा था लेकिन महाराष्ट्र में उसे सरकार बनाने में किसी तरह का शक-शुबहा नहीं था। अगर महाराष्ट्र में आराम से सरकार बन जाती तो फिर शायद बीजेपी हरियाणा के जख़्मों को भुला सकती थी। लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना ने जिस तरह बीजेपी की नाक में दम किया हुआ है, उससे वाकई उसका दम फूल रहा है और वह दिल्ली में ऐसा कोई जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है कि लेने के देने पड़ जाएं।

बीजेपी में बहुत-से नेता यह कह रहे थे कि पीएम मोदी के ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के नारे को विधानसभा चुनावों में तो सार्थक किया ही जाएगा। इसीलिए यह माना जा रहा था कि हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ-साथ दिल्ली में भी चुनाव करा लिए जाएंगे लेकिन बीजेपी ने ऐसी हिम्मत नहीं जुटाई। इसकी एक वजह यह भी नजर आती है कि शीला दीक्षित की मौत के बाद दिल्ली में कांग्रेस वेंटिलेटर पर पहुंच गई थी। 

यह बीजेपी को भी पता है कि अगर दिल्ली में उसे चुनाव जीतना है तो फिर कांग्रेस का इतना मजबूत होना ज़रूरी है कि वह कम से कम 25 फ़ीसदी वोट बटोर सके। शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस में जिस तरह जूतों में दाल बंटने लगी थी, उससे बीजेपी को यह आभास हो गया कि उसका सीधा मुक़ाबला आम आदमी पार्टी से हो जाएगा।

केजरीवाल ने लोकसभा चुनावों के बाद जिस तरह दिल्ली में मुफ्तखोरी और खैरात बांटने को लोगों के घरों तक पहुंचा दिया है, इसके बाद उन्हें किसी और मुद्दे की ज़रूरत ही नहीं रह गई है। बीजेपी अब किसी भी तरह ‘आप’ के सामने टिकती नजर नहीं आ रही है। बीजेपी को यह भी बड़ा ख़तरा था कि अगर ‘आप’ ने अपने आपको ‘बेचारा’ साबित कर दिया तो फिर 2015 के नतीजे दोहराए जा सकते हैं।

2015 में पीएम मोदी समेत बीजेपी के सारे नेताओं ने केजरीवाल को जिस तरह घेरा था, उससे जनता के मन में केजरीवाल के प्रति बड़ी हमदर्दी पैदा हो गई थी। इसीलिए बीजेपी हाईकमान को लगा कि महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों के साथ ही दिल्ली के चुनाव भी करा लिए गए तो केजरीवाल अपने आपको शहीद कहने से बाज नहीं आएंगे। 

‘आप’ की तरफ़ से बाक़ायदा ट्वीट भी किये गए थे जिनमें कहा गया था कि मोदी जी दिल्ली में केजरीवाल सरकार को पूरे पांच साल भी नहीं चलने देना चाहते और वह ‘आप’ सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए जोखिम यह था कि कहीं हमदर्दी का फायदा ‘आप’ को मिल गया तो फिर बाक़ी सारा प्रचार 2015 की ही तरह धरा का धरा रह जाएगा।

बीजेपी इसलिए भी इन दो राज्यों के साथ दिल्ली में चुनाव नहीं कराना चाहती थी क्योंकि उसे महाराष्ट्र और हरियाणा में तो वॉकओवर की उम्मीद थी लेकिन उसे लग रहा था कि झारखंड और दिल्ली में स्थिति मुक़ाबले वाली है। बीजेपी को लग रहा था कि महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत दर्ज करके फिर से देश ‘मोदी-मोदी’ हो जाएगा। इसलिए दिल्ली में बाद में ही चुनाव कराए जाएं।

राम मंदिर पर फ़ैसले से उम्मीद

बीजेपी इन दिनों उम्मीद के सहारे है। उम्मीद यह है कि जल्दी ही अयोध्या का फ़ैसला आ जाएगा और जिस तरह बीजेपी के नेता अभी से खुशी जाहिर कर रहे हैं, उससे उन्हें पक्का विश्वास है कि फ़ैसला मंदिर के पक्ष में ही आने वाला है। अगर वाक़ई मंदिर के पक्ष में फ़ैसला आ गया तो फिर बीजेपी पूरे देश में ‘जय श्रीराम’ की हुंकार भर सकती है और जाहिर है कि उसका भरपूर राजनीतिक फायदा भी उठा सकती है। 

बीजेपी को लगता है कि उस माहौल में किसी भी राज्य में चुनाव होंगे तो फिर उसे जीतने से कोई रोक नहीं सकेगा। हालांकि बीजेपी को यह उम्मीद भी थी कि महाराष्ट्र और हरियाणा के एकतरफ़ा नतीजों से भी माहौल बनेगा लेकिन वह तो हो नहीं सका। इसलिए अब बीजेपी सिर्फ़ झारखंड में ही मैदान में उतर रही है। हालांकि यह सच है कि झारखंड के साथ दिल्ली में भी चुनाव कराए जा सकते थे। 

केजरीवाल ने कुछ दिन पहले ट्वीट किया था कि ‘आप’ कार्यकर्ता चुनावों के लिए तैयार हो जाएं क्योंकि झारखंड के साथ दिल्ली के चुनावों का भी भी एलान होने वाला है लेकिन बीजेपी इसकी हिम्मत भी नहीं जुटा पाई। 

बीजेपी केजरीवाल को इस बारे में एक भी शब्द नहीं बोलने देना चाहती कि मोदी जी ने उनकी सरकार को वक़्त से पहले ही हटा दिया, भले ही वह एक महीना ही क्यों न हो।

अब बीजेपी को भी यह साफ़ पता है कि अगर दिल्ली में चुनाव जीतना है तो फिर मोदी जी के नाम पर जीता जा सकता है क्योंकि दिल्ली की लीडरशिप काफी बंटी हुई और कमजोर है। हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे बीजेपी को ज़्यादा उत्साहित नहीं कर रहे हैं। ऐसे में उसे किसी और बड़े मुद्दे का या नारे का इंतजार है। हो सकता है कि राम मंदिर वह नारा बन जाए या फिर कुछ और ऐसा हो जाए जिससे दिल्ली में चुनाव जीता जा सके। 

2014 और 2019 की शानदार सफलताओं के बीच अगर बीजेपी को कहीं मुंह की खानी पड़ी है तो वह बिहार और दिल्ली ही थे। बिहार में तो बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करके नीतीश से दोस्ती कर ली और वह जख़्म भी धुल गया। मगर, दिल्ली में 2015 का जख़्म अभी तक ताजा ही लग रहा है। उस जख़्म पर अब बीजेपी कोई और चोट बर्दाश्त नहीं कर सकती, इसलिए वह फूंक-फूंक कर क़दम रख रही है। 

अगर दिल्ली में चुनाव का एजेंडा केजरीवाल ने तय कर दिया यानी चुनाव दिल्ली में बांटी जा रही खैरात पर हुआ तो फिर बीजेपी के लिए ख़ासी मुश्किल हो जाएगी। इसीलिए बीजेपी अभी वक्त ले रही है। जय श्रीराम का नारा भी आ जाए, कांग्रेस को भी संभलने के लिए थोड़ा वक्त मिल जाए तो फिर बीजेपी अपने आपको बेहतर स्थिति में महसूस कर सकती है।

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