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पालघर वारदात को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में बीजेपी, हिन्दुत्ववादी संगठन

पालघर वारदात को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में बीजेपी, हिन्दुत्ववादी संगठन

महाराष्ट्र के पालघर में तीन लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की वारदात का वीडियो फ़ुटेज आने के बाद इसे सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।

महाराष्ट्र के पालघर में तीन लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की वारदात का वीडियो फ़ुटेज आने के बाद इसे सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। 

भारतीय जनता पार्टी और हिन्दुत्ववादी संगठनों के लोग सोशल मीडिया के ज़रिए इस पूरे मामले को ‘एक धर्म बनाम दूसरे धर्म’ का मामला साबित करने की कोशिश में हैं। इसे ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ का नतीजा भी बताया जा रहा है। 

मामला क्या है

एक फ़ोर्ड इकोस्पोर्ट गाड़ी में 16 अप्रैल को 3 लोग मुंबई के कांदीवली से केंद्र शासित क्षेत्र सिलवासा जा रहे थे। लॉकडाउन की वजह से राजमार्ग बंद था और इस कारण इस गाड़ी के ड्राइवर ने हाईवे छोड़ दिया और पतले रास्तों को चुना। पालघर ज़िले के दहानू तालुका के  एक गाँव ने 70-80 लोगों ने गाड़ी रुकवा दी और उस पर हमला कर दिया। 

पुलिस का कहना है कि हमलावर स्थानीय लोग थे और उन्होंने यह समझा था कि गाड़ी में कुछ चोर जा रहे हैं। 

पालघर पुलिस ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है। इनमें से 9 नाबालिग हैं, जिन्हें बाल गृह भेज दिया गया है। बालिग अभियुक्तों को 30 अप्रैल तक की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है।

गिरफ़्तार किए गए लोगों में अधिकतर लोग दहानू तालुका के गढ़चिंचाले गाँव के हैं। इस गाँव में साक्षरता दर सिर्फ 30 प्रतिशत है और अधिकतर लोग औद्योगिक इकाइयों में मज़दूर हैं या खेतिहर मज़दूर हैं। ये तमाम लोग अनुसूचित जनजाति के हैं।

सांप्रदायिक रंग

रविवार शाम तक इस मामले को साप्रदायिक रंग दे दिया गया और यह कहा गया कि मारे गए तीन लोगों में एक आदमी ‘गेरुआ कपड़ों’ में कोई ‘साधु’ था। यह भी कहा गया कि हिन्दू साधु होने के कारण ही उन पर हमला किया गया।

रविवार शाम को ट्विटर पर हैशटैग ‘जस्टिस फ़ॉर हिन्दू साधूज’ (#JusticeforHinduSadhus) ट्रेंड करने लगा। बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बिजयंत पान्डा ने ट्वीट किया, ‘महाराष्ट्र के पालघर में पुलिस की मौजूदगी में मॉब लिन्चिंग का भयावह वीडियो। कुछ दिन पहले ही एक पुलिस वाले और एक डॉक्टर पर हमला किया गया था। मीडिया ने इस मामले को कम कर दिखाया और इसे भूल से डाकू का संदेह कह कर दिखाया, मीडिया ने इस मामले को दबा दिया कि मारे गए लोग हिन्दू पहचान वाले धार्मिक कपड़ों में थे। इस तरह का दोमुहांपन क्यों’

कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इसे ‘मुसलमान एंगल’ भी देने की कोशिश की और संकेतों में यह साबित करना चाहा कि हमला करने वाले मुसलमान थे और हमला इसलिए किया गया कि गाड़ी में भगवा कपड़ों में हिन्दू साधु थे।

सरकार की चेतावनी

मामला इतना बढ़ गया कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने ट्वीट कर कहा कि हमला करने वाले और मारे गए लोग एक ही धार्मिक समुदाय के थे। उन्होंने कहा, ‘पुलिस को निर्देश दिया गया है कि उन लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए तो बेवज़ह इसे सांप्रदायिक रूप दे रहे हैं।’

सच क्या है

इस वारदात में मारे गए 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरि और 35 वर्षीय सुशील गिरि गोसावी घुमक्कड़ आदिवासी समुदाय के हैं। ये दोनों वाराणसी के पंच दशनाम जूना अखाड़ा से भी जुड़े हुए हैं। गाड़ी में मौजूद तीसरा आदमी ड्राइवर नीलेश तलगाडे था। 

कल्पवृक्ष गिरि ने गेरुआ रंग का गमछा गले में लगा रखा था और इसी आधार पर ट्विटर पर उन्हें ‘हिन्दू साधु’ बता दिया गया।

समाजविज्ञानी कालिदास शिंदे ने ‘द वायर’ से कहा, ‘गोसावी समुदाय में कम से कम 16 उप समुदाय हैं। गिरि उप समुदाय उनमें से एक है और इसके ज़्यादातर लोग किसी न किसी अखाड़ा से जुड़े हुए हैं।’ 

गोसावी समुदाय पर हमले

यह पहला मौका नहीं है जब गोसावी समुदाय के किसी व्यक्ति पर भीड़ ने हमला किया है। महाराष्ट्र के ही धुले ज़िले के सकरी तालुका स्थित रैनपदा गाँव में 2018 में उत्तेजित भीड़ ने 5 लोगों को पीट-पीट कर मार डाला था। मारे गए सभी लोग गोसावी समुदाय के ही थे। 

यह वारदात भी आदिवासी इलाक़े में ही हुआ था। पुलिस ने कहा था कि अफ़वाह फैलने के कारण स्थानीय लोगों ने यह समझा था कि वे लोग बच्चा चुराने आए हैं और उन पर हमला कर दिया था। 

गोसावी समुदाय के लोगों के साथ पहले भी भेदभाव हुए हैं, उनका बहिष्कार किया गया है और उनके साथ हिंसा हुई है। इस समुदाय के लोग महाराष्ट्र में एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं।

लेकिन इस पूरे मामले में दिलचस्प सवाल यह है कि इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशश क्यों की गई और यह साबित करने की कोशिश क्यों की गई कि एक दूसरे धर्म के लोगों ने हिन्दू साधुओं को पीट-पीट कर मार डाला।

बीजेपी उपाध्यक्ष पान्डा का यह ट्वीट करना कि ‘कुछ दिन पहले ही पुलिस वालों और डॉक्टर पर हमले हुए थे, उनकी मंशा साफ़ करता है।’

अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले पहले भी होते रहे हैं, पर कोरोना संक्रमण के दौरान जिस तरह मुसलमानों को निशाने पर लिया गया है, पालघर वारदात के बाद सोशल मीडिया पर चला अभियान उसका ही हिस्सा है।

तबलीग़ी जमात के बहाने पूरे मुसलिम समुदाय को कोरोना के लिए ज़िम्ममेदार ठहराया जा रहा है और कई जगह उन पर हमले भी हुए हैं। पालघर वारदात उससे अलग नहीं है, उसी का हिस्सा है। 

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