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गुजरात बचाने के लिए केजरीवाल को दिल्ली में फँसाने में बीजेपी सफल?

गुजरात बचाने के लिए केजरीवाल को दिल्ली में फँसाने में बीजेपी सफल?

गुजरात विधानसभा चुनाव और दिल्ली नगर निगम चुनाव एक साथ होने के पीछे क्या कोई रणनीति है? और यदि यह बीजेपी की रणनीति थी तो वह अपने मक़सद में कितनी कामयाब हुई है?

गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ ही दिल्ली नगर नगर निगम के भी चुनाव कराने का बीजेपी का दाँव सफल होता दिख रहा है। आम आदमी पार्टी के ज़्यादातर नेता गुजरात छोड़ कर दिल्ली आ गए हैं या दिल्ली आने वाले हैं। एक तरह से पार्टी ने गुजरात का चुनाव अभियान पूरी तरह से प्रदेश के दो नेताओं गोपाल इटालिया और पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार इसुदान गढ़वी पर छोड़ दिया है। पूरी पार्टी का ध्यान अब गुजरात से ज़्यादा दिल्ली के चुनाव पर केंद्रित है, क्योंकि पार्टी के लिए दिल्ली जीतना ज़्यादा अहम है।

जब तक दिल्ली नगर निगम के चुनाव घोषित नहीं हुए तब तक आम आदमी पार्टी ने अपनी पूरी ताक़त गुजरात में झोंक रखी थी। खुद पार्टी सुप्रीमो और दिल्ली और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार गुजरात के दौरे कर रैलियाँ और रोड शो कर रहे थे। उनके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी गुजरात का दौरा कर रहे थे। लेकिन अब सब का ध्यान दिल्ली पर केंद्रित है।

हालाँकि केजरीवाल बीच-बीच में गुजरात भी आ रहे हैं चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं, लेकिन पहले की तरह अब आम आदमी पार्टी के नेता गुजरात में डेरा डाले हुए नहीं हैं।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की भी अब ज़्यादा रैलियाँ और रोड शो दिल्ली में होंगे और वे गुजरात शायद ही आएँ। गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रभारी और सह प्रभारी गुलाब यादव और राघव चड्ढा को भी दिल्ली में ही ज़्यादा समय बिताना है क्योंकि पार्टी के लिए दिल्ली नगर निगम का चुनाव बहुत अहम हो गया है और उसे यह भी अंदाजा हो गया है कि गुजरात में उसे बहुत ज़्यादा हासिल होने वाला नहीं है। सो, ऐसा लग रहा है कि बीजेपी अपने मक़सद में कामयाब हो गई है।

दरअसल, अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी टीम को गुजरात से निकालने के लिए ही गुजरात विधानसभा के साथ दिल्ली नगर निगम के चुनाव की घोषणा की गई। गुजरात में एक और पांच दिसंबर को मतदान होगा और उसके बीच चार दिसंबर को दिल्ली में नगर निगम की 250 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। 

बीजेपी को पता था कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव की घोषणा हुई तो केजरीवाल गुजरात छोड़ेंगे क्योंकि उनके लिए दिल्ली नगर निगम बहुत अहम है। हालाँकि बीजेपी को उनकी ज़रूरत गुजरात में भी थी।

बीजेपी चाहती थी कि वे गुजरात में कांग्रेस के कुछ वोटों में सेंध लगा लें ताकि बीजेपी आसानी से जीत सके। शुरू में केजरीवाल ऐसा करते दिखे भी। केजरीवाल सरकार के विज्ञापनों से उपकृत टीवी चैनलों ने भी माहौल ऐसा ही प्रस्तुत किया कि गुजरात में मुक़ाबला भाजपा बनाम आम आदमी पार्टी है और कांग्रेस मुकाबले से बाहर है। लेकिन केजरीवाल के हिंदू कार्ड खेलने और मुफ्त सुविधाओं की घोषणा से जब भाजपा को अपने वोटों में सेंध लगती दिखी तो उसने रणनीति बदल दी।

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